Jhansi Tragedy:अपनी ही जुड़वा बेटियों को खोकर कई बच्चों के लिए देवदूत बना ये सख्श… झांसी अग्निकांड का किस्सा झकझोर देगा
अपनी ही जुड़वा बेटियों को खोकर कई बच्चों के लिए देवदूत बना ये सख्श… झांसी अग्निकांड का किस्सा झकझोर देगा
Jhansi Tragedy: झांसी मेडिकल कॉलेज में लगी आग का किस्सा आपको झकझोर देगा है। इस एनआईसीयू वार्ड में लगी आग ने दस बच्चों की जान ले ली। हालाँकि वह अपनी बच्चियों को नहीं बचा पाया, लेकिन एक व्यक्ति ने कुछ अन्य को बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी। कोई बेबस होकर आंखों के सामने ही बच्चे को मरता देखता रहा। किसी ने नवजात के शरीर पर लगे टैग से शिनाख्त की।
कई नवजात शिशुओं और उनके परिवारों के लिए 25 वर्षाय याकूब मंसूरी देवदूत बनकर सामने आया। उसने अन्य शिशुओं की जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल दी। सभी को याकूब पर फख्र है। लेकिन खुद याकूब की 2 जुड़वा बेटियां कभी भी यह बात नहीं जान पाएंगी क्योंकि उनके पिता काल के गाल में समाने से नहीं बचा पाए। यह घटना उत्तर प्रदेश के झांसी मेडिकल कॉलेज में लगी आग की है, जो तमाम लोगों को कभी ना भर पाने वाला गहरा जख्म दे गया।
हमीरपुर के निवासी याकूब ठेला लगाकर जीवनयापन करते हैं। वह उन बदकिस्मत लोगों में शामिल रहे, जिनके बच्चे झांसी के महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज की NICU में लगी आग में बचाए नहीं जा सके। याकूब की पत्नी नजमा ने कुछ दिन पहले ही 2 जुड़वा बच्चियों को जन्म दिया था। दोनों वहां पर ऐडमिट थीं। शुक्रवार की रात याकूब वार्ड के बाहर ही सोए हुए थे।
याकूब ने खिड़की तोड़ दी और अपार्टमेंट में घुस गया, तभी अचानक आग लग गई और धुआं फैल गया। उसने एक-एक करके कई बच्चों को बचाकर बहादुरी दिखाई। लेकिन इनमें खुद की दोनों बेटियां शामिल नहीं थीं। अगले दिन शनिवार को दोनों बच्चियों की बॉडी की शिनाख्त हो सकी।
अस्पताल के बाहर याकूब और नजमा ने पूरा दिन एक दूसरे का हाथ थामे और आंसू पोंछते हुए बिताया। झांसी की घटना से पूरा देश हिल गया था। इस घटना ने सरकारी तंत्र की लापरवाही और मेडिकल संस्थानों में सुरक्षा मानकों की अनदेखी को भी सामने ला दिया है। मेडिकल कॉलेज के नीकू वार्ड में 10 परिवारों के सपने परवान चढ़ने से पहले ही धराशायी हो गए। अस्पतालों के बाहर चीखते-चिल्लाते परिजनों के आंसू हालात को बयां कर रहे हैं।
कुछ ऐसा ही दर्द संजना कुमारी का भी है, जिन्होंने हाल ही में पहले बच्चे को जन्म दिया था। संजना ने कहा- मेरी आंखों के सामने ही मेरा बच्चा खत्म हो गया और मैं असहाय केवल देखती रही। मैं अपने बच्चे को गोद में नहीं उठा सकी। मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई। वहीं निरंजन महाराज नामक शख्स ने अपने नाती को उसके शरीर पर लगे टैग से पहचाना। उन्होंने कहा कि अस्पताल की लापरवाही ने हम सबको तबाह कर डाला।