Joshimath Uttarakhand Cracks:क्या जोशीमठ में हो रहा भू-धसाव, फिर से इतिहास दोहराने की ओर इशारा कर रहा है ?
उत्तराखंड के चमोली में जोशीमठ नगर पालिका क्षेत्र में 500 से ज्यादा घरों में दरारें आना, कई जगहों पर दरारे आना, भू धसाव के साथ साथ दरारों से पानी निकलना, आखिर ये किस ओर इशारा करती है...क्या ये किसी दैवीय आपदा का संकेत है...या फिर मानवीय छेड़छाड़ का नतीजा...कई बार आपदा का दंश झेल चुके उत्तराखंड में एक बार फिर संकट के बादल छा गए हैं
पूजा उपाध्याय: उत्तराखंड जिसे देवस्थली के रूप में भी देखा जाता है.वो देव स्थली जिसके दर्शन करने हर व्यक्ति एक बार तो जरूर जाता है.जो प्रकृति का वरदान भी है.उसी प्रकृति का रौद्ररूप कितना विनाशकारी हो सकता है.इसका अंदाजा तो तब ही लग गया था.जब साल 2013 में केदारनाथ में जल प्रलय आई थी.जिससे चारों ओर तबाही का ही मंजर फैल गया था.उस समय इस तबाही के कई कारण दिए गए थे.जिसमें एक कारण ये भी था.कि ग्लेशियर के एक बड़े टुकड़ों के पिघलने के चलते.ये आपदा आई.वहीं प्रकृति से छेड़छाड़ भी एक बड़ा कारण बना था.जिसने इस तबाही को न्योता दिया था.
उत्तराखंड के चमोली में जोशीमठ नगर पालिका क्षेत्र में 500 से ज्यादा घरों में दरारें आना, कई जगहों पर दरारे आना, भू धसाव के साथ साथ दरारों से पानी निकलना, आखिर ये किस ओर इशारा करती है.क्या ये किसी दैवीय आपदा का संकेत है.या फिर मानवीय छेड़छाड़ का नतीजा.कई बार आपदा का दंश झेल चुके उत्तराखंड में एक बार फिर संकट के बादल छा गए हैं.उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सत्ता में विकास का वादा करके ही आए थे.और उत्तराखंड में कई ऐसी जगह है.जहां पर सड़कों की जरूरत है.विकास की जरूरत है.लेकिन विकास का मापदंड क्या होना चाहिए ये बड़ा सवाल है.क्योंकि उत्तराखंड पेड़ पौधो, पहाड़ों, नदियों से भरा हुआ है.जहां पर कभी लैंडस्लाइड, तो कभी भूस्खलन, तो कभी बाढ़ का आना स्वाभाविक माना जाता है.क्योंकि ऐसी जगह, ऐसी आपदा कई बार आती है.लेकिन छोटी मोटी समस्या होतो उसकी व्यवस्था की जा सकती है.लेकिन जब वहीं प्रकृति मानवीय छेड़छाड़ के रुप में सामने आती है.तो उसका उपाय मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता है.
जोशीमठ में भू-धंसाव के कई कारण माने जा रहे है.जिसमें अव्यवस्थित निर्माण, पानी का रिसाव मानवीय कारणों से जल धाराओं के प्राकृतिक प्रवाह में बाधा, और ऊपरी मिट्टी का कटाव बताया जा रहा है.वहीं इसे लेकर वैज्ञानिकों का कहना है कि बारिश और पूरे साल घरों से निकलने वाला पानी नदियों में जाने के बजाए, जमीन के भीतर समा जा रहा है.जो भूकंप का प्रमुख कारण माना जा रहा है.वहीं राज्य सरकार की तरफ से किए जा रहे कई प्रोजेक्ट भी इस भूस्खलन का मुख्य कारण माने जा रहे हैं.राज्य सरकार की तरफ से कम से कम दो बड़े प्रोजेक्ट है.एक जेपी प्रोजेक्ट .तो दूसरा एनटीपीसी प्रोजेक्ट.इसके अलावा तीर्थ क्षेत्र में बसे हुए होटल और रिसॉर्ट की संख्या बढ़ना.जिसका मिलाजुला असर जोशीमठ में देखने को मिला है.
अब जोशीमठ में आए भू-धंसाव का मुख्य कारण क्या है.यो तो जांच के बाद ही पता चल पाएगा.लेकिन जिस तरह से जोशीमठ में घरों, होटलों में दरारें, जमीन से पानी निकलना, मंदिरोंका धराशायी होना.ये एक बड़े खतरे का संकेत दे रहे हैं.जिससे निपटने के लिए सजग और तैयार रहने की जरूरत है.क्योंकि प्रकृति के द्वारा किया गया विनाश कितना भयावह होता है.ये उत्तराखंडवासियों से बेहतर और कोई नहीं जान सकता.