Kedarnath by-poll: केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव को लेकर उत्तराखंड की राजनीति में हलचल मच गई है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस ने अपने प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया है। जहां कांग्रेस ने पूर्व विधायक मनोज रावत को मैदान में उतारा है, वहीं बीजेपी ने अपने पुराने और अनुभवी चेहरे, आशा नौटियाल पर विश्वास जताया है। आशा नौटियाल केदारनाथ क्षेत्र में पहली महिला विधायक का गौरव हासिल कर चुकी हैं और उनका राजनीतिक सफर संघर्ष और सफलता की कहानियों से भरा हुआ है।
जिला पंचायत सदस्यता से विधायक बनने का सफर
आशा नौटियाल का राजनीतिक करियर जिला पंचायत सदस्यता से शुरू हुआ। 1996 में वे ऊखीमठ वार्ड से निर्विरोध जिला पंचायत सदस्य चुनी गईं। इसके बाद उनका नाम बीजेपी के शीर्ष नेताओं की नजर में आया, जिन्होंने उनके नेतृत्व और प्रभाव को पहचान कर उन्हें 1997-98 में जिला उपाध्यक्ष नियुक्त कर दिया। बीजेपी महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष बनने के बाद आशा की लोकप्रियता में लगातार वृद्धि हुई।
पहली बार विधायक बनने का गौरव
उत्तराखंड के गठन के बाद, 2002 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए। बीजेपी ने केदारनाथ सीट से आशा नौटियाल को प्रत्याशी घोषित किया। आशा नौटियाल ने भी पार्टी के भरोसे को सही साबित किया और कांग्रेस की उम्मीदवार शैलारानी रावत को हराकर जीत हासिल की। इस जीत के साथ ही वे केदारनाथ क्षेत्र से पहली महिला विधायक बनने का गौरव प्राप्त करने वाली नेता बनीं।
2007 में फिर से मिली जीत, बढ़ी लोकप्रियता
2007 में हुए विधानसभा चुनावों में एक बार फिर बीजेपी ने आशा नौटियाल को प्रत्याशी बनाया। इस बार कांग्रेस ने कुंवर सिंह नेगी को टिकट दिया, लेकिन आशा नौटियाल ने उन्हें भी मात दे दी। लगातार दूसरी बार विधायक बनने के बाद उनका प्रभाव क्षेत्र में और अधिक मजबूत हुआ और बीजेपी के भीतर भी उनकी राजनीतिक पकड़ मजबूत हो गई।
012 में पराजय, कांग्रेस की जीत
2012 के विधानसभा चुनावों में आशा नौटियाल को लगातार तीसरी बार टिकट मिला, लेकिन इस बार किस्मत उनके साथ नहीं थी। कांग्रेस की शैलारानी रावत ने उन्हें हरा दिया और केदारनाथ विधानसभा सीट पर कब्जा जमा लिया। इस हार के बावजूद, आशा नौटियाल की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई, और वे सक्रिय राजनीति में बनी रहीं।
कांग्रेस की बगावत का असर, बीजेपी में हलचल
2012 के चुनावों के बाद उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार बनी और विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री बने। इसके बाद 2013 में आई केदारनाथ आपदा के बाद राज्य सरकार की आलोचना शुरू हो गई। इस दौरान कांग्रेस में गुटबाजी बढ़ी, और अंततः 2016 में कई असंतुष्ट विधायकों ने पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया, जिसमें शैलारानी रावत भी शामिल थीं।
2017 में टिकट न मिलने पर बगावत, निर्दलीय लड़ा चुनाव
2017 में विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने शैलारानी रावत को केदारनाथ से उम्मीदवार बना दिया, जो कि अब बीजेपी में शामिल हो चुकी थीं। आशा नौटियाल ने इसे अपना अपमान समझा और पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ा। हालांकि, इस बगावत का परिणाम यह हुआ कि वोटों का विभाजन हो गया और कांग्रेस के मनोज रावत ने जीत हासिल की। आशा नौटियाल तीसरे स्थान पर रहीं, लेकिन उनकी राजनीतिक सक्रियता बनी रही।
बीजेपी में वापसी और प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी
2017 के चुनाव के बाद आशा नौटियाल ने बीजेपी में दोबारा वापसी की और पार्टी ने उन्हें उत्तराखंड बीजेपी महिला मोर्चा का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। यह उनके लिए एक नई शुरुआत थी और उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया।
2023 के उपचुनाव में फिर मैदान में, बीजेपी ने जताया भरोसा
अब, 2023 में शैलारानी रावत के निधन के बाद केदारनाथ विधानसभा सीट पर उपचुनाव हो रहा है। 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे और बीजेपी ने एक बार फिर आशा नौटियाल को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। बीजेपी का यह फैसला काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि आशा नौटियाल केदारनाथ क्षेत्र में एक जानी-मानी नेता हैं और उनका लंबा राजनीतिक अनुभव है।
आशा नौटियाल का राजनीतिक करियर और क्षेत्र में पकड़
आशा नौटियाल का राजनीतिक सफर उनके संघर्ष, आत्मनिर्भरता और जनता के प्रति उनकी सेवा भावना को दर्शाता है। 1996 में जब उन्होंने जिला पंचायत चुनाव जीता था, तब से लेकर अब तक वे लगातार सक्रिय राजनीति में हैं। दो बार विधायक बनने के बाद वे जनता में अपनी पकड़ को मजबूत कर चुकी हैं। उनके समर्थकों का कहना है कि आशा नौटियाल का संघर्षशील व्यक्तित्व और दृढ़ निश्चय ही उन्हें दूसरे नेताओं से अलग बनाता है।
बीजेपी को क्षेत्र में महिलाओं का समर्थन मिलने की उम्मीद
आशा नौटियाल के प्रत्याशी बनाए जाने से बीजेपी को क्षेत्र की महिलाओं का समर्थन मिलने की संभावना है। एक महिला नेता के रूप में उनका व्यक्तित्व और उनके अनुभव को देखते हुए बीजेपी को उनसे काफी उम्मीदें हैं। महिलाओं के प्रति उनकी संवेदनशीलता और उनकी समस्याओं के समाधान में उनकी सक्रिय भूमिका ने उन्हें इस क्षेत्र में एक लोकप्रिय नेता बना दिया है।
क्या इस बार इतिहास दोहरा पाएंगी आशा नौटियाल?
अब देखना यह होगा कि 2023 के इस उपचुनाव में क्या आशा नौटियाल अपनी जीत का इतिहास दोहरा पाती हैं या नहीं। उनके सामने कांग्रेस के मनोज रावत हैं, जो पहले भी विधायक रह चुके हैं और क्षेत्र में एक मजबूत जनाधार रखते हैं। इस बार का मुकाबला रोमांचक होने की पूरी संभावना है, और परिणाम यह तय करेगा कि क्षेत्र की जनता किसे अपनी आवाज के रूप में चुनती है।