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Gujarat Chandipura Virus: जानें क्या है चांदीपुरा वायरस और इसके लक्षण?

Know what is Chandipura virus and its symptoms?

Gujarat Chandipura Virus: डेंगू और मलेरिया के साथ-साथ चांदीपुरा वायरस का भी खौफ फैलने लगा है। गुजरात और राजस्थान में इस वायरस की वजह से महज दो दिन में छह बच्चों की जान जा चुकी है। वहीं, इस खतरनाक वायरस ने राजस्थान में भी दस्तक दे दी है। आइए आपको बताते हैं कि यह वायरस कितना खतरनाक है, कैसे मौत का कारण बनता है और इसका नाम चांदीपुरा वायरस क्यों रखा गया? आइए एक्सपर्ट से जानते हैं इस वायरस के बारे में सबकुछ।

चांदीपुरा वायरस क्या है?

चांदीपुरा वायरस रैबडोविरिडे परिवार का एक आरएनए वायरस है, जिसके कारण बच्चे दिमागी बुखार (इंसेफेलाइटिस) के शिकार हो सकते हैं। यह वायरस खास तौर पर 2 महीने से 15 साल की उम्र के बच्चों पर हमला करता है। इस समय गुजरात में चांदीपुरा वायरस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। शुरुआत में एक ही अस्पताल में चार मामले सामने आए थे, लेकिन अब इनकी संख्या दसियों तक पहुंच गई है। गुजरात में पांच दिनों में चांदीपुरा वायरस के कारण छह बच्चों की मौत हो चुकी है, जिसके कारण मामलों की संख्या बढ़कर 12 हो गई है। इनमें से चार मरीज साबरकांठा जिले के, तीन अरावली के और एक-एक महिसागर और खेड़ा के हैं। दो मरीज राजस्थान और एक मध्य प्रदेश का है।

इस वायरस का नाम कैसे पड़ा?

साल 1996 में महाराष्ट्र के नागपुर के चांदीपुरा गांव में 2 महीने से लेकर 15 साल तक के बच्चों की मौत होने लगी थी। जांच के दौरान पाया गया कि इसकी वजह एक वायरस है। ऐसे में गांव के नाम पर ही इस वायरस का नाम चांदीपुरा वायरस रखा गया।

चांदीपुरा वायरस कैसे फैलता है?

गाजियाबाद के डॉ. आशीष प्रकाश ने बताया कि चांदीपुरा वायरस कीड़ों और मच्छरों से फैलता है। यह वायरस वेसिकुलोवायरस परिवार का सदस्य है। इस वायरस से सबसे पहले मच्छर संक्रमित होते हैं और जब ये मच्छर बच्चों को काटते हैं तो वे दिमागी बुखार की चपेट में आ जाते हैं। माना जाता है कि यह वायरस सैंडफ्लाई फ्लेबोटोमस पापाटासी से फैलता है, जो कुछ कीड़ों और मच्छरों में पाया जाता है। जब ये कीड़े बच्चों को काटते हैं तो संक्रमण फैलता है। हालांकि, इसके संक्रमण के कई और कारण भी हो सकते हैं।

चांदीपुरा वायरस के लक्षण क्या हैं?

चांदीपुरा वायरस के कारण बच्चों को अचानक तेज बुखार आ जाता है। इसके बाद उन्हें दौरे और उल्टी आदि होने लगते हैं, जिससे बच्चे कमज़ोर महसूस करते हैं। बुखार के कारण जब बच्चों के दिमाग में सूजन आ जाती है, तो यह जानलेवा हो जाता है।

क्या इस वायरस के लिए कोई वैक्सीन है?

जब कोई बच्चा इस वायरस से प्रभावित होता है तो सबसे पहले बुखार और फ्लू जैसे लक्षण दिखते हैं। इसके बाद दिमाग में सूजन की समस्या होती है। बीमारी के लक्षण एक जैसे न होने की वजह से इस वायरस से निपटने के लिए अभी तक कोई वैक्सीन नहीं बनी है। इलाज न होने की वजह से इस बीमारी को बहुत गंभीर माना जाता है।

इस बीमारी का इलाज कैसे किया जाता है?

अब सवाल यह उठता है कि जब इस वायरस से निपटने के लिए कोई वैक्सीन नहीं है तो फिर इलाज कैसे किया जाता है? दरअसल, इस बीमारी का इलाज लक्षणों के हिसाब से ही किया जाता है। शुरुआत में जब प्रभावित बच्चे को फ्लू होता है तो वायरल इंफेक्शन के हिसाब से दवा दी जाती है। हालांकि, बुखार या दिमाग में सूजन होने पर इलाज का तरीका बदल जाता है।

इस बीमारी से होने वाली मृत्यु दर कितनी है?

इस बीमारी से मरने वालों की संख्या बहुत डरावनी है। अगर बच्चा शुरुआत में ही ठीक हो जाता है तो उसे कोई परेशानी नहीं होती। अगर बुखार की वजह से बच्चे के दिमाग में सूजन आ जाती है तो मृत्यु दर बहुत बढ़ जाती है। मान लीजिए अगर 100 बच्चों के दिमाग में सूजन आ जाती है तो उनमें से 50 से 70 की मौत हो जाती है। इसका मतलब है कि इस वायरस के हमले को रोकना बहुत मुश्किल है।

हम खुद को कैसे बचा सकते हैं?

इस वायरस से निपटने का एकमात्र तरीका रोकथाम है। इसके लिए अपने घर को साफ रखें। किसी भी परिस्थिति में जलभराव की अनुमति न दें। साथ ही रात को सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें। बच्चों को फुल स्लीव वाले कपड़े पहनकर रखें और कीड़े और मच्छरों से उनकी रक्षा करें।

दुनिया में इस बीमारी के मामले कहां पाए गए हैं?

चांदीपुरा वायरस का पहला मामला 1965 में महाराष्ट्र में पाया गया था। इसके बाद गुजरात के कई इलाकों में इस वायरस के मामले पाए गए। धीरे-धीरे इस वायरस का कहर महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात में दिखने लगा। वहीं, 1996 के दौरान पहली बार इसका नाम तय किया गया। पूरी दुनिया में इस वायरस के मामले सिर्फ भारत में ही पाए जाते हैं।

चांदीपुरा वायरस बुखार और जापानी बुखार में क्या अंतर है?

चांदीपुरा वायरस संक्रमित मच्छर या कीट के काटने से होता है। मरीज को तेज बुखार, उल्टी और दस्त की समस्या होती है। एक-दो दिन बुखार रहने के बाद मरीज काफी कमजोर हो जाता है। इसके बाद दौरे, पेट दर्द, दिमाग में सूजन आदि समस्याएं होने लगती हैं, जिससे मौत भी हो सकती है।

जापानी इंसेफेलाइटिस या जापानी बुखार जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस (जेईवी) के कारण होता है। जेईवी संक्रमित मच्छरों के काटने से ही इंसानों में फैलता है। सूअर, जलपक्षी और घोड़े जैसे जानवर भी जेईवी से संक्रमित हो सकते हैं, लेकिन इनसे इंसानों में वायरस नहीं फैलता। हल्के जापानी बुखार में बुखार और सिरदर्द मुख्य लक्षण होते हैं। गंभीर संक्रमण होने पर तेज बुखार, सिरदर्द और गर्दन में अकड़न होती है। इससे संक्रमित व्यक्ति की मांसपेशियां अचानक सिकुड़ जाती हैं। इस बीमारी से कंपन भी होता है और गंभीर मामलों में लकवा होने की संभावना रहती है।

Chanchal Gole

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