UTTARAKHAND BHU KANOON: उत्तराखंड में भू-कानून को मिली मंजूरी: पहाड़ी प्रदेश के लिए क्यों जरूरी है यह कानून?
UTTARAKHAND BHU KANOON: उत्तराखंड कैबिनेट ने सख्त भू-कानून को मंजूरी दे दी है, जिससे राज्य में भूमि खरीद-बिक्री के नियमों को और अधिक मजबूत बनाया जाएगा। मुख्यमंत्री ने इस फैसले पर जनता को भरोसा दिलाते हुए कहा कि सरकार लोगों के विश्वास को टूटने नहीं देगी। यह कानून खासतौर पर पहाड़ी प्रदेश के लिए बेहद जरूरी माना जा रहा है, क्योंकि इससे बाहरी लोगों द्वारा अनियंत्रित रूप से जमीन खरीदने पर रोक लगेगी और राज्य की भूमि संरक्षित रहेगी। इस नए भू-कानून के तहत कई अहम प्रावधान किए गए हैं, जो उत्तराखंड की भौगोलिक और सांस्कृतिक संरचना को बनाए रखने में मदद करेंगे।
UTTARAKHAND BHU KANOON: उत्तराखंड में सख्त भू-कानून की लंबे समय से मांग उठ रही थी, जो अब वास्तविकता में बदल गई है। उत्तराखंड सरकार ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर ऐतिहासिक फैसला लेते हुए भू-कानून को मंजूरी दे दी है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि जनता का विश्वास बनाए रखना उनकी सरकार की प्राथमिकता है, और यह कानून इसी दिशा में एक बड़ा कदम है।
उत्तराखंड में भू-कानून की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
उत्तराखंड की जनता और पर्यावरणविद पिछले कई वर्षों से भू-कानून को लेकर आंदोलनरत थे। ‘उत्तराखंड मांगे भू-कानून’ केवल एक नारा नहीं था, बल्कि यह एक व्यापक आंदोलन का रूप ले चुका था। राज्य के लोग इस मांग को कई सरकारों के सामने रख चुके थे, लेकिन 24 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद आखिरकार 2025 में उत्तराखंड सरकार ने इसे साकार किया।
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कैबिनेट का ऐतिहासिक फैसला
उत्तराखंड बजट सत्र 2025 के दूसरे दिन मंत्रिमंडल की बैठक में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में इस कानून को मंजूरी दी गई। इस कानून के लागू होने के बाद बाहरी लोग उत्तराखंड में कृषि और बागवानी के लिए भूमि नहीं खरीद सकेंगे। खासकर, हरिद्वार और उधमसिंह नगर को छोड़कर शेष 11 जिलों में बाहरी व्यक्तियों की भूमि खरीद पर पूरी तरह से रोक लगाई गई है। इसके अलावा, विशेष प्रयोजन के लिए जमीन खरीदने के लिए सरकार से अनुमति लेना अनिवार्य होगा, और सब-रजिस्ट्रार के समक्ष शपथ पत्र देना होगा।
उत्तराखंड को क्यों चाहिए सख्त भू-कानून?
- पहाड़ी संस्कृति और पहचान की रक्षा
पहाड़ों की अपनी अनूठी संस्कृति और परंपराएं होती हैं, जिन्हें बाहरी हस्तक्षेप से बचाने की जरूरत है। यदि बाहरी लोग बड़ी संख्या में जमीन खरीदने लगें, तो इससे स्थानीय लोगों को विस्थापन का खतरा रहेगा और उनकी सांस्कृतिक पहचान प्रभावित होगी। इस कानून से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि उत्तराखंड की पहाड़ी संस्कृति अपनी पहचान बनाए रखे।
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भूमिहीन होने का खतरा टलेगा
उत्तराखंड के सीमांत और छोटे किसान पहले ही कई तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं। यदि बाहरी राज्यों से लोग यहां जमीन खरीदते रहे, तो स्थानीय किसानों की भूमि धीरे-धीरे खत्म हो सकती है। इस कानून के जरिए स्थानीय किसानों की जमीन को सुरक्षित किया जा सकेगा।
बेशकीमती भूमि की सुरक्षा
वरिष्ठ पत्रकार धनंजय शर्मा के अनुसार, उत्तराखंड की कृषि और बागवानी भूमि अत्यंत बेशकीमती है। धन्नासेठों द्वारा इसे खरीदकर व्यावसायिक रूप से उपयोग करने का खतरा था, जिसे इस कानून ने समाप्त कर दिया है। अब यह भूमि स्थानीय लोगों के लिए संरक्षित रहेगी और उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाएगी।
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पर्यावरण संरक्षण को मिलेगा बढ़ावा
उत्तराखंड के प्रसिद्ध पर्यावरणविद अनिल जोशी ने कहा कि राज्य की जलवायु, जंगल, जल और जमीन बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के लिए सख्त भू-कानून आवश्यक था। बाहरी लोगों द्वारा जमीन खरीदने से यहां अंधाधुंध निर्माण कार्य और वनों की कटाई बढ़ रही थी। इस कानून के लागू होने से जंगलों की कटाई पर भी रोक लगेगी और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।
बागवानी और कृषि को मिलेगा प्रोत्साहन
उत्तराखंड की तुलना में हिमाचल प्रदेश बागवानी और कृषि के क्षेत्र में आगे है। वहां का भू-कानून काफी सख्त है, जिससे वहां के किसान और पर्यावरण दोनों को लाभ मिल रहा है। उत्तराखंड की जनता लंबे समय से चाहती थी कि उनके राज्य में भी हिमाचल जैसा सख्त भू-कानून लागू हो। अब इस नए कानून के तहत उत्तराखंड में बागवानी और कृषि को भी प्रोत्साहन मिलेगा।
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