Acharya Satyendra Das Maharaj: 13 साल की उम्र में छोड़ा घर-परिवार, बने संन्यासी, 33 साल तक की रामलला की सेवा… जानिए कौन थे आचार्य सत्येंद्र दस?
12 फरवरी 2025 को राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास का ब्रेन हेमरेज के कारण निधन हो गया। राम मंदिर में सत्येंद्र दास जी का हमेशा से बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे 13 साल की उम्र में ही संन्यासी बन गए थे। उसके बाद वे राम मंदिर के मुख्य पुजारी कैसे बने, आइए जानते हैं सत्येंद्र दास जी की पूरी कहानी...
Acharya Satyendra Das Maharaj: अयोध्या समेत पूरे भारत में आज उस समय शोक की लहर दौड़ गई जब खबर मिली कि राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का निधन हो गया। राम मंदिर में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। सत्येंद्र दास 87 साल के थे। उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ था, जिसके चलते सत्येंद्र दास को 3 फरवरी को अयोध्या से लखनऊ पीजीआई रेफर किया गया था। लेकिन आज सुबह 8 बजे उनकी सांसें हमेशा के लिए थम गईं।
आचार्य सत्येंद्र दास का पार्थिव शरीर आज अयोध्या लाया जाएगा। उनके आश्रम सत्य धाम गोपाल मंदिर में अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। सत्येंद्र दास 33 साल से राम जन्मभूमि पर मुख्य पुजारी के तौर पर सेवा दे रहे थे। सत्येंद्र दास सबसे ज्यादा तब चर्चा में आए थे जब 6 दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस के दौरान वो रामलला को गोद में लेकर भाग गए थे। आज हम सत्येंद्र दास जी की पूरी कहानी जानेंगे। कैसे वो रामलला की भक्ति में इतने लीन हो गए कि अपना पूरा जीवन उन्हीं को समर्पित कर दिया।
आचार्य सत्येंद्र दास को बचपन से ही राम से बहुत लगाव था। गुरु अभिराम दास जी से प्रभावित होकर आचार्य सत्येंद्र दास ने संन्यास ले लिया। 1958 में वे घर छोड़कर आश्रम में रहने लगे। उस समय उनकी उम्र सिर्फ़ 13 साल थी। जब उन्होंने अपने पिता को इस बारे में बताया तो उन्होंने भी कोई आपत्ति नहीं जताई। इसके विपरीत उन्हें इस बात की खुशी थी कि उनका बेटा इतना धार्मिक स्वभाव का है।
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संस्कृत की पढ़ाई की और फिर बन गए शिक्षक
अभिराम दास के आश्रम में पहुंचकर सत्येंद्र दास ने संस्कृत की पढ़ाई शुरू की। गुरुकुल पद्धति से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई संस्कृत में ही पूरी की। वे संस्कृत में आचार्य बन गए। पूजा-पाठ करते हुए वे अयोध्या में नौकरी की तलाश करने लगे। उनकी तलाश साल 1976 में पूरी हुई। उन्हें अयोध्या के संस्कृत महाविद्यालय में व्याकरण विभाग में सहायक शिक्षक की नौकरी मिल गई। उस समय उन्हें 75 रुपये वेतन मिलने लगा। इस दौरान वे राम जन्मभूमि भी जाते थे।
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मंदिर के मुख्य पुजारी के तौर पर किया काम
1992 में जब उन्हें राम मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में काम करने का मौका मिला तो वे रामलला के प्रति समर्पित हो गए। आचार्य दास ने 1992 में बाबरी विध्वंस से पहले ही रामलला की पूजा का जिम्मा संभाल लिया था। उन्हें मुख्य पुजारी नियुक्त किया गया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बने राम मंदिर में भी वे मुख्य पुजारी की भूमिका में नजर आए।
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वे रामलला को छिपाकर भाग गए
करीब 9 महीने बाद अयोध्या में कारसेवकों ने कारसेवा शुरू की। आचार्य सत्येंद्र दास ने राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। उन्होंने विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के साथ भी मोर्चा संभाला। बाबरी विध्वंस के दौरान जब कारसेवक बाबरी ढांचे में प्रवेश कर रहे थे, तब रामलला को बाहर निकालने की बात चल रही थी। इस दौरान आचार्य सत्येंद्र दास रामलला को छिपाकर बाहर निकले थे। वे भगवान रामलला की मूर्ति को सुरक्षित रखने में सफल रहे। उन्होंने बाबरी मस्जिद परिसर से लेकर टेंट तक रामलला की सेवा की। इसके बाद जब साल 2023 में भगवान रामलला अपने भव्य धाम में आए, तो उन्होंने मुख्य पुजारी की भूमिका निभाई।
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