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Maha Kumbh Mela 2025:महाकुंभ मेला 2025: जानिए शाही स्नान, पेशवाई और नागा साधुओं की परंपराओं के बारे में विस्तार से

Maha Kumbh Mela 2025: महाकुंभ मेला 2025 उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित किया जा रहा है। यह ऐतिहासिक आयोजन हर 12 वर्षों में एक बार होता है। क्या आप जानते हैं कि शाही स्नान का क्या महत्व है और इसे सबसे पहले कौन करता है? आइए, इस प्राचीन परंपरा और इससे जुड़े पहलुओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।

Maha Kumbh Mela 2025 : 2025 में प्रयागराज में महाकुंभ मेला आयोजित किया जा रहा है, जो 13 जनवरी से पौष पूर्णिमा पर शुरू होकर 26 फरवरी को महाशिवरात्रि तक चलेगा। यह मेला धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भारत का सबसे बड़ा पर्व है, जहां लाखों श्रद्धालु और पर्यटक त्रिवेणी संगम पर आस्था की डुबकी लगाने पहुंचते हैं। इस मेले का सबसे महत्वपूर्ण और आकर्षक भाग है शाही स्नान, जिसमें साधु-संत और नागा साधु अपनी परंपराओं और भव्य पेशवाई के साथ हिस्सा लेते हैं।

महाकुंभ का महत्व

महाकुंभ मेले का आयोजन हर 12 वर्षों में चार प्रमुख तीर्थ स्थलों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक—में किया जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, महाकुंभ में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं। प्रयागराज में त्रिवेणी संगम—गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम स्थल—पर स्नान करना विशेष रूप से शुभ माना जाता है।

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क्या है शाही स्नान?

शाही स्नान महाकुंभ की सबसे पवित्र परंपरा है, जिसमें साधु-संत विशेष भव्यता और धार्मिक अनुशासन के साथ त्रिवेणी संगम पर स्नान करते हैं।
हालांकि शास्त्रों और पुराणों में शाही स्नान का जिक्र नहीं मिलता, यह परंपरा 14वीं से 16वीं सदी के बीच शुरू हुई थी। इतिहास के अनुसार, उस समय साधुओं और मुगल शासकों के बीच धार्मिक संघर्ष बढ़ने पर एक समझौता हुआ। इस समझौते के तहत, साधुओं को कुंभ के दौरान शाही सम्मान दिया गया, जिसमें वे हाथी, घोड़ों और पालकियों पर बैठकर संगम की ओर बढ़ते थे। तब से साधुओं के स्नान को शाही स्नान कहा जाने लगा।

पेशवाई: शाही स्नान की भव्य शुरुआत

शाही स्नान से पहले साधु-संतों की पेशवाई निकाली जाती है। यह जुलूस अत्यंत भव्य होता है, जिसमें साधु सोने-चांदी की पालकियों पर सवार होकर, हाथी-घोड़ों के साथ और जयकारों के बीच संगम तट पर पहुंचते हैं।
पेशवाई न केवल साधुओं की गरिमा का प्रतीक है, बल्कि यह महाकुंभ की परंपराओं और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। इस दौरान श्रद्धालु इन संतों के दर्शन कर अपने को धन्य मानते हैं।

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नागा साधु: महाकुंभ के महायोद्धा

महाकुंभ मेले में नागा साधु विशेष आकर्षण का केंद्र होते हैं। ये साधु नग्न रहते हैं और शरीर पर भस्म लगाते हैं। अपनी कठोर तपस्या, संयम और आस्था के लिए प्रसिद्ध नागा साधु महाकुंभ मेले की शाही स्नान प्रक्रिया का नेतृत्व करते हैं।
नागा साधु प्राचीन समय में धर्म और समाज की रक्षा के लिए योद्धा के रूप में कार्य करते थे, इसलिए इन्हें “महायोद्धा साधु” भी कहा जाता है। आज भी शाही स्नान के दौरान उनकी उपस्थिति इस परंपरा को अत्यधिक प्रभावशाली बना देती है।

Maha Kumbh Mela 2025: Know in detail about the royal bath, Peshwai and traditions of Naga sadhus.

कौन करता है सबसे पहले स्नान?

शाही स्नान की प्रक्रिया विशेष नियमों और परंपराओं का पालन करती है। सबसे पहले नागा साधु और प्रमुख संत संगम तट पर स्नान करते हैं। इसे ‘प्रथम स्नान अधिकार’ कहा जाता है। इसके बाद क्रम से अन्य अखाड़ों के साधु और फिर आम श्रद्धालु संगम में स्नान करते हैं।
स्नान के लिए तिथियां पंचांग के अनुसार निर्धारित की जाती हैं, और हर अखाड़ा अपनी तय बारी के अनुसार स्नान करता है।

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शाही स्नान और अखाड़ों की भूमिका

महाकुंभ में 13 प्रमुख अखाड़ों की भागीदारी होती है, जिनके बीच शाही स्नान का क्रम और समय पहले से तय होता है। यह परंपरा ब्रिटिश शासनकाल में स्थापित की गई थी, ताकि अखाड़ों के बीच संघर्ष न हो।
अखाड़े अपनी पेशवाई और शाही स्नान के दौरान अपनी-अपनी विशिष्टताओं का प्रदर्शन करते हैं, जो महाकुंभ के आकर्षण को और भी बढ़ा देता है।

महाकुंभ में भाग लेने का महत्व

मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपराओं और आध्यात्म का संगम है। यहां हर जाति, वर्ग और देश के लोग आकर समान रूप से आस्था और भक्ति का अनुभव करते हैं।
महाकुंभ 2025 में प्रयागराज आने वाले श्रद्धालु शाही स्नान और पेशवाई की भव्यता का हिस्सा बनकर अपने जीवन को धन्य कर सकते हैं।

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Mansi Negi

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