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Maharashtra News of Election: महाराष्ट्र के नतीजों का राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ेगा असर, जानें 6 अहम बातें

महाराष्ट्र की 288 सीटों में से महायुति गठबंधन ने 229 सीटें जीती हैं, जबकि एमवीए 47 पर सिमट गई है। इस बड़ी जीत में कई फैक्टर रहे हैं जो अब दूसरे राज्यों में भी देखने को मिलेंगे।

Maharashtra News of Election: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों ने ऐसी राजनीतिक हवा बनाई है जो सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित नहीं रहेगी, यह हवा आने वाले समय में दूसरे राज्यों के चुनावों में भी देखने को मिल सकती है। राजनीतिक जानकारों का मानना ​​है कि आने वाले समय में ये नतीजे राष्ट्रीय राजनीति को भी प्रभावित कर सकते हैं।

दरअसल, 288 सीटों में से महायुति गठबंधन ने 229 सीटें जीती हैं, जबकि एमवीए सिर्फ 47 पर सिमट गई है। भाजपा ने 149 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से उसे 132 सीटों पर जीत मिली है, यह स्ट्राइक रेट 89% है और विरोधियों को धूल चटाने वाला है। यहां हम आपको इन नतीजों की 6 बड़ी बातें बता रहे हैं।

1. सुधारों की रूपरेखा तय होगी, इसमें वक्फ बिल भी शामिल होगा

लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने लगातार तीसरी बार जीत दर्ज कर इतिहास रच दिया। हालांकि, उसकी सीटें जरूर कम हुई हैं। बीजेपी फिलहाल एनडीए के सहयोगी दलों की मदद से सरकार चला रही है। हालांकि, जानकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने सुधार के मोर्चे पर कोई कमजोरी नहीं दिखाई है और आयुष्मान भारत मेडिकल इंश्योरेंस कवर को बढ़ाया है। इसके अलावा संयुक्त पेंशन योजना शुरू की गई है।

वक्फ बिल, जिसका मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध किया है। वक्फ बिल को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा गया था, जो अब अपनी रिपोर्ट के साथ तैयार है। हरियाणा में ऐतिहासिक जीत के तुरंत बाद महाराष्ट्र में भाजपा के शानदार प्रदर्शन से केंद्र सरकार का आत्मविश्वास बढ़ेगा। मोदी सरकार अब पूरे आत्मविश्वास के साथ वक्फ विधेयक पर आगे बढ़ेगी, जिसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के तरीके में सुधार करना है। इससे समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को आगे बढ़ाने में भी मदद मिल सकती है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता के रूप में पुनः ब्रांड किया है। वक्फ बिल पर जेपीसी की रिपोर्ट पर शीतकालीन सत्र में ही बहस हो सकती है।

2. हिंदू एकता का नया फॉर्मूला

लोकसभा चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर मिली। मुस्लिम वोट विपक्षी दलों को मिले, वहीं जाति जनगणना को लेकर कांग्रेस के अभियान ने भाजपा के वोटों में सेंध लगाई। 2014 और 2019 के आम चुनावों में भाजपा सभी जातियों और समुदायों के वोट पाने में सफल रही, जो 2024 में नहीं हुआ। इस चुनाव में भाजपा ने ‘बटेंगे तो कटेंगे’ और ‘एक हैं तो सुरक्षित हैं’ जैसे नारों के सहारे हिंदुओं को अपने खेमे में एकजुट किया। इसके अलावा जाति के आधार पर हिंदू वोटों के बंटवारे को रोकने के लिए आरएसएस ने ‘सजग रहो’ अभियान के लिए 65 संगठनों को शामिल किया। इस तरह महाराष्ट्र हिंदुत्व 2.0 की प्रयोगशाला बन गया है और यहां वोटों को एकजुट करने में आरएसएस-भाजपा की सफलता राष्ट्रीय स्तर पर दोहराई जाएगी।

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3. कांग्रेस से सीधे मुकाबले में भाजपा काफी आगे

महाराष्ट्र में कांग्रेस की हार यह भी दिखाती है कि वह भाजपा से सीधे मुकाबले में कैसे हारती है। महाराष्ट्र की 76 सीटों के नतीजे, जहां दोनों के बीच सीधा मुकाबला था, सबसे ज्यादा उत्सुकता से देखे गए। इनमें से 36 विदर्भ में थे, एक ऐसा क्षेत्र जहां भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति ने जीत हासिल की है। भाजपा का उत्थान और कांग्रेस का पतन सीधे मुकाबलों में पार्टियों के प्रदर्शन से स्पष्ट है, जो पार्टी की संगठनात्मक ताकत और लोकप्रियता को दर्शाता है। भाजपा के साथ सीधे मुकाबले में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट 2019 के लोकसभा चुनाव में 8% से बढ़कर 2024 में 30% हो गया, जबकि भाजपा का स्ट्राइक रेट 92% से गिरकर 70% हो गया। हालांकि, अक्टूबर में हरियाणा में कहानी उलट गई, जहां भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला था। यहां कांग्रेस लगातार तीसरी बार भाजपा को सरकार बनाने से नहीं रोक पाई। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे इस धारणा को पुख्ता करते हैं कि सीधे मुकाबले की बात करें तो भाजपा कांग्रेस से काफी आगे है।

4. सहयोगियों के साथ बातचीत में कांग्रेस की ताकत कम हुई

हरियाणा में कांग्रेस की करारी हार के बाद भारत गठबंधन में उसके सहयोगी दलों की ओर से कांग्रेस पर खूब हमले किए गए। महाराष्ट्र चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद एक बार फिर उसके गठबंधन सहयोगी उस पर हमला बोल सकते हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट करीब 19 फीसदी रहा, जो बेहद खराब है। हरियाणा में कांग्रेस ने भारत गठबंधन में आम आदमी पार्टी को अपने साथ नहीं लिया। इसे लेकर बाद में सवाल भी उठे। शिवसेना के मुखपत्र उद्धव गुट के मुखपत्र सामना के संपादकीय में हरियाणा में कांग्रेस की हार के लिए पार्टी के ‘राज्य नेतृत्व के अति आत्मविश्वास और अहंकार’ को जिम्मेदार ठहराया गया। महाराष्ट्र में भी कांग्रेस ने बड़ा साझेदार बनने की कोशिश की और उद्धव ठाकरे को सीएम चेहरे के तौर पर पेश नहीं होने दिया।

5. लोकलुभावन योजनाओं और इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देने का मिश्रण

महाराष्ट्र में भी बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट दांव पर लगे थे। कांग्रेस की अगुआई वाली एमवीए जहां नकद सहायता का वादा करके वोटरों को लुभाने की कोशिश कर रही थी, वहीं महायुति ने लड़की बहन योजना जैसी नकद गारंटी योजना का वादा किया। जानकारों का कहना है कि महायुति ने इंफ्रास्ट्रक्चर विकास का सही मिश्रण लाकर इस चुनाव में अपने विरोधियों को काफी हद तक मात दे दी है। महायुति के सत्ता में वापस आने के बाद मुंबई की सड़कों को पक्का करने, महालक्ष्मी रेस कोर्स में पार्क खोलने और गरगई पिंजाल जल परियोजनाओं को आगे बढ़ाने जैसी घोषणाएं की गईं। लोगों को यह भी लग रहा था कि अगर एमवीए सत्ता में आती है तो वह धारावी पुनर्विकास परियोजना में बाधा डाल सकती है।

6. अडानी मुद्दा और शीतकालीन सत्र में आतिशबाजी

कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सोमवार (25 नवंबर) से शुरू होने वाले शीतकालीन सत्र को गरमागरम करने का वादा किया है। राहुल गांधी की योजना अडानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी पर अमेरिका में कथित रिश्वत मामले में अभियोग चलाने के मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरने की है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस की हार, जहां उसे केवल 18 सीटें मिलीं, निश्चित रूप से पार्टी नेताओं के आत्मविश्वास को कम करेगी। दरअसल, महाराष्ट्र में हर चुनावी रैली में कांग्रेस नेता मोदी सरकार के अडानी समूह के साथ संबंधों का मुद्दा उठाते रहे, लेकिन नतीजों ने साफ कर दिया है कि ऐसे आरोपों का कोई चुनावी असर नहीं होता।

Written By। Chanchal Gole। National Desk। Delhi

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