New President of Srilanka: मार्क्सवादी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके श्रीलंका के अगले राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। चुनाव में उन्हें बंपर बढ़त मिली है। वहीं मौजूदा राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को करारी हार का सामना करना पड़ा। 16 फीसदी मतों के साथ रानिल तीसरे स्थान पर हैं।
आर्थिक संकट से जूझ रही श्रीलंका (srilanka) की जनता अनुरा को ‘मसीहा’ के तौर पर देख रही है। अनुरा ने गरीबों के ध्यान में रखकर नीति बनाने और टैक्स में राहत देने का वादा किया है। चुनाव में कुल 75 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया।
श्रीलंका के चुनाव में नेशनल पीपुल्स पावर (NPP) के नेता अनुरा कुमारा दिसानायके श्रीलंका के 9वें कार्यकारी राष्ट्रपति (srilanka president) बनने वाले हैं। शुरुआती डाक मतदान परिणामों के आधार पर उनकी बढ़त देखी जा सकती है। दिसानायके पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (JVP) के नेता हैं। श्रीलंका में शनिवार को राष्ट्रपति पद के लिए मतदान हुआ। स्थानीय समय के मुताबिक सुबह 7 बजे से शाम 4 बजे तक 22 निर्वाचन जिलों के 13,400 से ज्यादा मतदान केंद्रों पर वोट डाले गए। सात निर्वाचन जिलों में डाक मतदान के परिणामों के मुताबिक दिसानायके को 56 फीसदी वोट मिले हैं।
वहीं उनके प्रतिद्वंद्वी सजित प्रेमदासा और वर्तमान राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को 19-19 फीसदी वोट मिले। विश्लेषकों का मानना है कि मतदान के इस रुझान से पता चलता है कि दिसानायके को कुल वोटों में से 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिलने की संभावना है। अगर वह जीतते हैं तो वह श्रीलंका (srilanka new president) के पहले मार्क्सवादी राष्ट्रपति होंगे। श्रीलंका के चुनाव पर भारत की भी नजर है। दिसानायके भारतीय कंपनी अडानी ग्रुप के खिलाफ भी बयान देते रहे हैं।
भारतीय कंपनी का किया विरोध
रिपोर्ट की मानें तो मतदान (srilanka president election 2024) पहले सोमवार को उन्होंने अडानी ग्रुप की पवन ऊर्जा परियोजना को रद्द करने की कसम खाई। एक राजनीतिक चैट शो में उन्होंने कहा कि वह इस परियोजना को रद्द कर देंगे। इस सवाल के जवाब में कि क्या इस परियोजना से श्रीलंका की संप्रभुता को खतरा है, दिसानायके ने कहा, “हां, हम निश्चित रूप से इसे रद्द कर देंगे क्योंकि इससे हमारी ऊर्जा संप्रभुता को खतरा है।” 1987 और 1990 के बीच, श्रीलंका में गृह युद्ध में भारत के हस्तक्षेप के बाद जेवीपी ने भारत के खिलाफ खूनी विद्रोह का नेतृत्व किया।
भारत के पक्ष में होंगे दिसानायके?
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2022 के वित्तीय संकट के बाद उनकी लोकप्रियता में इज़ाफा हुआ। वे गरीबों के लिए अपने मार्क्सवादी कार्यक्रमों और अपने विचारोत्तेजक भाषणों से लोगों को जोड़ने में सफल रहे। उन्हें AKD के नाम से भी जाना जाता है। जेवीपी पार्टी परंपरागत रूप से सरकार के बाजार पर ज्यादा कंट्रोल वाली आर्थिक नीतियों की समर्थक रही है। मार्क्सवादी, लेनिनवादी झुकाव को देखते हुए माना जा रहा है कि वह चीन के समर्थक होंगे।
हालांकि उनकी पार्टी से जुड़े लोगों का कहना है कि वह भारत के साथ भी होंगे। द वीक की रिपोर्ट के मुताबिक NPP की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के सदस्यों में से एक प्रोफेसर अनिल जयंती ने कहा, ‘हमारी पार्टी और नेता भारत से जुड़ना चाहते हैं। भारत निश्चित तौर पर हमारा पड़ोसी और महाशक्ति है। हाल ही में हमें भारत की ओर से एक कृषि सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था। हमने दिल्ली और केरल का दौरा किया। हमारे नेता श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था को स्थिक करने के लिए सभी प्रमुख पावर से जुड़ रहे हैं।’