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Maternity Leave: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, तीसरे बच्चे पर भी मातृत्व अवकाश का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय में मद्रास उच्च न्यायालय की खंडपीठ के उस आदेश को खारिज कर दिया है, जिसमें एक सरकारी शिक्षिका को तीसरे बच्चे के जन्म पर मातृत्व अवकाश देने से इनकार कर दिया गया था। यह फैसला न केवल महिला कर्मचारियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि मातृत्व लाभ अधिनियम की व्यापक और मानवीय व्याख्या को भी मजबूती देता है।

Maternity Leave: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय में मद्रास उच्च न्यायालय की खंडपीठ के उस आदेश को खारिज कर दिया है, जिसमें एक सरकारी शिक्षिका को तीसरे बच्चे के जन्म पर मातृत्व अवकाश देने से इनकार कर दिया गया था। यह फैसला न केवल महिला कर्मचारियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि मातृत्व लाभ अधिनियम की व्यापक और मानवीय व्याख्या को भी मजबूती देता है।

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मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला एक सरकारी शिक्षिका से जुड़ा है जिसकी पहली शादी से दो बच्चे थे, जो तलाक के बाद अपने पिता के साथ रहते हैं। महिला ने 2018 में दूसरी शादी की और तीसरे बच्चे के जन्म पर मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया। लेकिन राज्य सरकार ने यह कहते हुए अनुरोध ठुकरा दिया कि यह लाभ केवल दो बच्चों तक सीमित है।

उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट के फैसले

महिला ने पहले मद्रास उच्च न्यायालय की एकल पीठ में याचिका दायर की, जिसने उसके पक्ष में फैसला दिया। लेकिन राज्य सरकार की अपील पर खंडपीठ ने इस आदेश को रद्द कर दिया। अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने खंडपीठ के निर्णय को पलटते हुए महिला को मातृत्व अवकाश देने का रास्ता साफ कर दिया।

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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और कानूनी दृष्टिकोण

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने स्पष्ट किया कि मातृत्व अवकाश केवल सेवा शर्त नहीं, बल्कि एक मौलिक प्रजनन अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि यह स्वास्थ्य, निजता, समानता, गरिमा और गैर-भेदभाव जैसे अधिकारों से जुड़ा है, जो अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों में भी संरक्षित हैं।

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संवैधानिक अधिकार बनाम जनसंख्या नीति

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि किसी महिला कर्मचारी के पहले दो बच्चे सेवा में आने से पहले जन्मे हों और उनके पास उनकी कस्टडी न हो, तो सेवा में रहते हुए जन्मे पहले बच्चे पर मातृत्व लाभ न देना असंवैधानिक है। राज्य की दो बच्चों की नीति जनसंख्या नियंत्रण का प्रयास हो सकती है, लेकिन वह संवैधानिक अधिकारों पर हावी नहीं हो सकती।

महिला सशक्तिकरण की दिशा में प्रेरणादायक फैसला

यह निर्णय महिला सशक्तिकरण, लैंगिक समानता और कार्यस्थल पर महिला अधिकारों की दिशा में एक मजबूत संदेश देता है। सुप्रीम कोर्ट का यह दृष्टिकोण दिखाता है कि कानून को संवेदनशील, मानवीय और समावेशी होना चाहिए, न कि केवल संख्यात्मक सीमाओं तक सीमित।

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