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Judiciary Responsibility: मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई का संदेश, “न्याय केवल नौकरी नहीं, यह समाज और देश के प्रति सेवा है”

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई ने छत्रपति संभाजीनगर में आयोजित समारोह में कहा कि न्याय केवल एक पेशा नहीं, बल्कि समाज के प्रति सेवा है। उन्होंने न्यायाधीशों से समाज से जुड़े रहने और जनता की वास्तविक समस्याओं को समझने की अपील की। मुख्य न्यायाधीश ने अपने संस्कारों और डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के सिद्धांतों को अपनी प्रेरणा बताया।

Judiciary Responsibility: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई ने शुक्रवार को छत्रपति संभाजीनगर (पूर्व में औरंगाबाद) में आयोजित एक भव्य अभिनंदन समारोह में न्याय के व्यापक स्वरूप पर अपनी गहन सोच साझा की। उन्होंने कहा कि न्याय केवल अदालतों में कार्य करने का नाम नहीं, बल्कि यह एक सेवा है, जिसमें समाज की समस्याओं की समझ और उनके प्रति संवेदनशीलता आवश्यक है।

“न्याय एक सती का रूप है”

मुख्य न्यायाधीश ने न्यायपालिका में कार्यरत सभी लोगों को यह संदेश दिया कि न्याय केवल एक 10 से 5 की नौकरी नहीं है। इसे सती के रूप में देखा जाना चाहिए, जिसमें पूर्ण निष्ठा, समर्पण और जिम्मेदारी का समावेश होता है। उन्होंने कहा कि अगर न्यायाधीश समाज से जुड़कर काम करें, तभी वे निष्पक्ष और समझदारी से फैसले दे सकेंगे। “न्यायालय का दरवाजा समाज के लिए हर समय खुला रहना चाहिए, और न्यायाधीशों को समाज से अलग-थलग नहीं होना चाहिए,” उन्होंने स्पष्ट किया।

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समाज से जुड़ाव है आवश्यक

गवई ने इस बात पर बल दिया कि न्यायाधीशों को समाज के वास्तविक दर्द और समस्याओं को समझने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि न्याय केवल कानून की व्याख्या नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय का एक माध्यम है। इसलिए न्यायाधीशों को अपने कार्य को सिर्फ कानूनी दायित्व न समझकर सामाजिक सेवा के रूप में लेना चाहिए।

व्यक्तिगत जीवन और प्रेरणा के स्रोत

मुख्य न्यायाधीश ने अपने जीवन की प्रेरणाओं को साझा करते हुए अपने माता-पिता के आशीर्वाद और संस्कारों को अपनी सफलता का मूल आधार बताया। उन्होंने कहा, “मेरे पिता संत गाडगे बाबा के विचारों से प्रेरित थे। उन्होंने मुझे सिखाया कि जीवन में हर किसी के लिए अच्छा करना चाहिए – यहां तक कि अपने विरोधियों के लिए भी।”

उन्होंने डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर के विचारों को भी अपना मार्गदर्शक बताते हुए कहा कि वे हमेशा सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को ध्यान में रखकर निर्णय लेते हैं।

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नागपुर और औरंगाबाद से आत्मीय जुड़ाव

अपने संबोधन में मुख्य न्यायाधीश ने छत्रपति संभाजीनगर (औरंगाबाद) और नागपुर के साथ अपने पुराने और आत्मीय संबंधों को भी याद किया। उन्होंने कहा कि भले ही वे दिल्ली में कार्यरत हैं, लेकिन नागपुर और औरंगाबाद खंडपीठ उनके दिल के अधिक करीब हैं।

उन्होंने 2008 की एक सड़क दुर्घटना का जिक्र किया, जिसमें स्थानीय लोगों द्वारा उन्हें मिला स्नेह और सहायता आज भी उनके दिल में जीवंत है। इसके अलावा 2015 में उनके पिता के निधन के समय भी उन्हें यहां के लोगों का विशेष सहयोग और अपनत्व मिला, जिसे वे कभी नहीं भूल सकते।

सम्मान समारोह में गरिमामयी उपस्थिति

यह कार्यक्रम औरंगाबाद खंडपीठ के वकील संघ द्वारा एमजीएम विश्वविद्यालय के रुक्मिणी सभागार में आयोजित किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक के रूप में पौधों को जल देने से की गई। समारोह में मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई के साथ उनकी माता कमल गवई और पत्नी डॉ. तेजस्विनी गवई भी मौजूद रहीं।

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इस अवसर पर मुख्य न्यायाधीश ने अधिवक्ता साहित्य सम्मेलन के लोगो का अनावरण किया। वकील संघ ने उन्हें सम्मान पत्र भेंट कर उनके न्यायिक योगदान के लिए सराहना व्यक्त की।

न्याय: सेवा और कर्तव्य का प्रतीक

अपने भाषण के अंतिम हिस्से में गवई ने न्याय की परिभाषा को फिर से स्पष्ट करते हुए कहा कि यह केवल पेशा नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र के प्रति एक सेवा है। उन्होंने न्यायपालिका से जुड़े सभी लोगों से आग्रह किया कि वे इस सेवा भावना को अपनाकर समाज में न्याय की भावना को मजबूत बनाएं।

“जब हम न्याय को सेवा मानकर करेंगे, तब ही समाज में विश्वास और न्यायपालिका की गरिमा दोनों बढ़ेगी,” उन्होंने कहा। यह आयोजन एक प्रेरणादायक उदाहरण बना, जहां कानून की व्याख्या से अधिक, समाज के प्रति उत्तरदायित्व और मानवता की भावना की झलक देखने को मिली।

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