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Wayanad landslides: पश्चिमी घाट की साइलेंट वैली में कुदरत का कहर, 4 घंटे में कैसे बहे 4 गांव?

Nature's fury in the Silent Valley of Western Ghats, how did 4 villages get washed away in 4 hours?

Wayanad landslides: केरल के वायनाड जिले में मूसलाधार बारिश के कारण हुए विनाशकारी भूस्खलन में अब तक 168 लोगों की मौत हो चुकी है। कई लोग घायल हुए हैं। कई गांव बह गए हैं तो वहीं सड़कों का नामोनिशान नहीं है। इस भूस्खलन में कई पेड़ उखड़ गए हैं और नदियां उफान पर हैं। लापता लोगों की तलाश और उन्हें वापस लाने के लिए सेना को बुलाया गया है।

कम से कम 168 लोगों  की मौत

केरल के वायनाड में हुए एक बड़े भूस्खलन में कम से कम 168 लोगों की जान चली गई। इस तबाही के बीच, 100 से ज़्यादा लोगों की तलाश अभी भी जारी है क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि वे मलबे के नीचे दबे हो सकते हैं। अब इस मामले में सियासत भी गरमा गई है। राज्यसभा में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा-23 जुलाई को ही केरल को भारी बारिश की चेतावनी दे दी गई थी। राज्य सरकार ने इस चेतावनी को नजरअंदाज किया। अब बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि चेतावनी जारी होने के बाद भी केरल सरकार ने क्यों नहीं पहले एहतियाती कदम उठाए। आइए- समझते हैं कि यह आपदा क्यों आई ?

वायनाड में हुई इस भयानक त्रासदी

केरल के वायनाड में हुई इस भयानक त्रासदी ने कम से कम 4 गांवों को मिटा दिया। मेप्पाडी, मुंदक्कई, चूरलामाला, अट्टामाला और नूलपुझा जैसी जगहों पर हुए भीषण भूस्खलन ने कई बस्तियों को मलबे में दफन कर दिया।  जहाँ कभी वनस्पतियाँ उगती थीं, वहाँ अब सिर्फ़ मलबा है। पूरा इलाका मलबे के ढेर, बह चुकी सड़कों और पुलों और तैरती हुई लाशों से भरा हुआ है। यह तबाही चार बड़े भूस्खलनों के कारण हुई जो सुबह दो से छह बजे के बीच हुए। जब ​​यह तबाही हुई तब लोग सो रहे थे।

2 दशकों में पश्चिमी घाट के 20,000 हेक्टेयर के जंगल खत्म

देश का सबसे दक्षिणी क्षेत्र, पश्चिमी घाट, अविश्वसनीय रूप से शांत और सुंदर है। ये क्षेत्र कई तरह के वन्यजीवों और घने जंगलों का घर हैं। यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में अब पश्चिमी घाट भी शामिल है। अफसोस इस बात का है कि बीते दो दशकों में पश्चिमी घाट के 20 हजार से ज्यादा हेक्टेयर के जंगलों को इंसान ने बर्बाद कर दिया। पर्यावरणविदों (Environmentalists) ने इस बारे में पहले ही चेतावनी दी थी। पर्यावरणविद कई बार केरल में बार-बार भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन की चेतावनी दे चुके हैं। इस वर्ष की शुरुआत में कोडागु में हुए भूस्खलन ने पूरे समुदाय को नष्ट कर दिया था।

पहाड़ी इलाकों में कैसे होते हैं भूस्खलन

पश्चिमी घाटों की पहाड़ों पर दो तरह की परतें होती हैं। एक परत मिट्टी की होती है, जिन पर बड़े-बड़े सख्त चट्टानें टिकी होती हैं। जब भारी बारिश होती है, तब चट्टानों के बीच फंसी मिट्टी नम हो जाती है और पानी चट्टानों तक पहुंच जाता है। पहाड़ की दूसरी परत पत्थरों की होती है, जो मिट्टी से बंधी होती है। भूस्खलन तब होता है जब भारी बारिश के बाद चट्टानों के बीच स्थित यह सीमित सामग्री बाहर निकल जाती है।

भारी बारिश की वजह से पत्थरों के बीच फंसी यह मिट्टी निकल जाती है, जिससे भूस्खलन होने लग जाता है। इस मिट्टी को पेड़-पौधे बांधते हैं। जब हम उन पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं तो पहाड़ और मिट्टी के बीच मजबूत बॉन्डिंग टूट जाती है और नतीजा भूस्खलन के रूप में सामने आता है। केरल में लगभग 17,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में भूस्खलन का खतरा है। इस क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा पश्चिमी घाट की ओर है।

वायनाड में क्यों आई ऐसी आपदा, अनुमान से 5 गुना ज्यादा बारिश

केरल के वायनाड जिले में सोमवार से लेकर मंगलवार सुबह तक 24 घंटे के भीतर 140 मिलीमीटर से ज्यादा बारिश हुई। यह अनुमान से 5 गुना ज्यादा थी। इंडिया मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट के आंकड़ों के अनुसार, वायनाड के कुछ हिस्सों में यह बारिश 300 मिमी से ज्यादा बारिश हुई। केरल में भारी बारिश की वजह से हर साल भूस्खलन होते हैं। केरल का पश्चिमी हिस्से में पहाड़ हैं, जो बेहद ढलान वाले हैं। यहाँ, पहाड़ अक्सर टूट जाते हैं। 2018 में केरल में भी इसी तरह का एक बड़ा भूस्खलन हुआ था जिसमें 500 लोगों की जान चली गई थी।

Prachi Chaudhary

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