ONE NATION ONE ELECTION: वन नेशन, वन इलेक्शन से विकास को मिलेगी रफ्तार: अर्जुन राम मेघवाल
ONE NATION ONE ELECTION: केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने जयपुर में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' को लेकर मोदी सरकार का रुख स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि अगर पूरे देश में चुनाव एक साथ कराए जाते हैं, तो इसका कोई नुकसान नहीं होगा, बल्कि इससे विकास कार्यों को गति मिलेगी। बार-बार चुनाव होने से पूरे साल आचार संहिता लागू रहती है, जिससे विकास योजनाओं पर असर पड़ता है। एक साथ चुनाव होने से सरकार को पूरे पांच साल तक बिना किसी रुकावट के काम करने का अवसर मिलेगा।
One Nation One Election: जयपुर: भारत में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (एक देश, एक चुनाव) को लेकर बहस लगातार जारी है। इस मुद्दे पर मोदी सरकार का रुख साफ करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने जयपुर में एक सम्मेलन के दौरान कहा कि यदि पूरे देश में चुनाव एक साथ कराए जाते हैं, तो इससे विकास कार्यों को रफ्तार मिलेगी और प्रशासनिक बोझ कम होगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि बार-बार चुनाव होने से पूरे साल कहीं न कहीं आदर्श आचार संहिता लागू रहती है, जिससे कई महत्वपूर्ण विकास योजनाएं प्रभावित होती हैं।
शुक्रवार को जयपुर के चेंबर ऑफ कॉमर्स सभागार में आयोजित एक सम्मेलन में अर्जुन राम मेघवाल और राष्ट्रीय व्यापारी कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष सुभाष सिंघी उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम के दौरान ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर गंभीर चर्चा हुई और इसके लाभों पर प्रकाश डाला गया।
कानून मंत्री ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का किया समर्थन
अर्जुन राम मेघवाल ने अपने संबोधन में स्पष्ट रूप से कहा कि पूरे देश में एक साथ चुनाव होने से कोई नुकसान नहीं है, बल्कि यह देश के विकास के लिए फायदेमंद होगा। उन्होंने कहा कि भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में बार-बार होने वाले चुनाव प्रशासन पर अतिरिक्त दबाव डालते हैं और सरकारी कामकाज को बाधित करते हैं।
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उन्होंने बताया कि बार-बार चुनाव होने के कारण आचार संहिता लागू रहती है, जिससे नई विकास योजनाओं के ऐलान और उनके क्रियान्वयन में देरी होती है। यदि पूरे देश में चुनाव एक साथ कराए जाएं, तो इससे सरकार को बिना किसी रुकावट के पूरे पांच साल तक काम करने का मौका मिलेगा।
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर केंद्र सरकार गंभीर
कानून मंत्री ने यह भी बताया कि केंद्र सरकार इस विषय पर गंभीरता से विचार कर रही है और इस संबंध में एक विधेयक संसद में पेश किया गया है। फिलहाल, यह विधेयक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास विचाराधीन है, और उम्मीद है कि जल्द ही इसे मंजूरी मिलने के बाद सरकार इसे लागू करने की दिशा में आगे बढ़ेगी।
चुनावी खर्च और प्रशासनिक बोझ में आएगी कमी
कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय व्यापारी कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष सुभाष सिंघी ने भी ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि अगर चुनाव एक साथ होते हैं, तो इससे देश में चुनावी खर्च में भारी कमी आएगी। अभी हर राज्य में अलग-अलग समय पर चुनाव कराए जाते हैं, जिससे चुनावी खर्च कई गुना बढ़ जाता है।
इसके अलावा, प्रशासन पर भी अतिरिक्त दबाव पड़ता है, क्योंकि चुनाव के दौरान बड़ी संख्या में सरकारी कर्मचारियों, सुरक्षाबलों और अन्य संसाधनों की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि अगर पूरे देश में एक साथ चुनाव होंगे, तो प्रशासनिक बोझ कम होगा और देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी।
क्या है ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का विचार?
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का मतलब यह है कि लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। वर्तमान में, देश में अलग-अलग समय पर विधानसभा चुनाव होते हैं, जिससे लगभग हर साल किसी न किसी राज्य में चुनावी गतिविधियां चलती रहती हैं। इससे न केवल सरकारी मशीनरी पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, बल्कि विकास योजनाओं को भी रुकावटों का सामना करना पड़ता है।
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मोदी सरकार लंबे समय से इस विचार को लागू करने की दिशा में प्रयास कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई अन्य केंद्रीय मंत्री एक देश, एक चुनाव को लोकतंत्र को अधिक प्रभावी और सुचारू बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम मानते हैं।
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से संभावित लाभ
- आचार संहिता का प्रभाव कम होगा: चुनाव आचार संहिता के लागू होने से सरकारी फैसलों और योजनाओं पर रोक लग जाती है। एक साथ चुनाव कराने से सरकार को पूरे पांच साल तक बिना किसी बाधा के काम करने का अवसर मिलेगा।
- चुनावी खर्च में कटौती: अलग-अलग चुनाव कराने से सरकार को बार-बार चुनावी खर्च करना पड़ता है, जिससे राजकोष पर बड़ा भार पड़ता है।
- प्रशासनिक संसाधनों का प्रभावी उपयोग: चुनाव के दौरान सुरक्षाबलों, चुनाव आयोग और सरकारी कर्मचारियों की बड़ी तैनाती होती है। एक साथ चुनाव होने से इन संसाधनों का प्रभावी उपयोग हो सकेगा।
- अर्थव्यवस्था को बढ़ावा: बार-बार चुनाव से न केवल सरकारी कामकाज प्रभावित होता है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ता है। चुनावों के दौरान बाजार में अनिश्चितता बनी रहती है, जो निवेश और व्यापार को प्रभावित करती है।
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