Pakistan News: पाकिस्तान में मजहब के नाम पर चरम पर कट्टरता!
Pakistan News: मजहब के नाम पर बने पाकिस्तान में कट्टरता पूरे चरम पर है…अब पाकिस्तान के मुस्लिमों को दूसरे मजहब के इबादतघर भी रास नहीं आ रहे हैं…पाकिस्तान के फैसलाबाद में मौजूद सिख समुदाय ऐतिहासिक गुरुद्वारे को लेकर दशकों से मांग कर रहा था… पाकिस्तान की पंजाब सरकार ने फैसलाबाद में 76 साल से बंद पड़े गुरुद्वारे को खोलने की इजाजत दे दी।
लेकिन कट्टरता का आग में जल रहे फैसलाबाद के मुस्लमानों को सरकार का ये फैसला रास नहीं आया है… और सरकार के फैसले को मुसलमानों के साथ सरासर ज्यादती बताया। इसके साथ ही धमकी दी कि अगर इसे खोला गया तो तोड़ दिया जाएगा।
गुरुद्वारे को तोड़ने की धमकी देने वाला शख्स का नाम अमीन बट है… वायरल वीडियो में बट यह कहते हुए दिखाई देता है कि सिख मुसलमानों के बलात्कारी और हत्यारे हैं । हम फैसलाबाद में किसी भी सिख गुरुद्वारे की अनुमति नहीं देंगे। अगर सिख इसे बनाने की कोशिश करते हैं, तो उन्हें अल्लाह के लड़ाकों का सामना करना पड़ेगा…
गुरुद्वारा बनाने के लिए लाशों के ऊपर से गुजरना होगा। हम इन्हें किसी भी हालत में गुरुद्वारा नहीं बनाने देंगे। दरअसल ईद के कुछ दिन पहले पाकिस्तान की पंजाब सरकार ने फैसलाबाद के इस गुरूद्वारे को दोबारा खोलने की इजाजत दी थी… लेकिन जैसे ही फैसलाबाद के मुसलमानों को इसकी जानकारी मिली वैसे ही ये लोग सरकार के फैसले का विरोध करना शुरू कर दिया और सिखों को धमकी देने लगे
पूर्व डिप्टी मेयर ने कहा कि मुझे ईद के तीसरे दिन पता चला कि फैसलाबाद में सरकार ने गुरुद्वारा बनाने की इजाजत दे दी है, जो यहां के मुस्लिमों के साथ अन्याय है। जहां यह गुरुद्वारा बना रहे हैं, वहां करोड़ों का कारोबार है। उस जगह पर सैकड़ों गरीब लोग काम करके अपना पेट पाल रहे हैं। यहां गरीब लोगों के बच्चे पढ़ रहे हैं, वे बेचारे कहां से फीस देंगे। हम गुरुद्वारा नहीं बनने देंगे।
पाकिस्तान के फैसलाबाद शहर को कभी लायलपुर के नाम से जाना जाता था, जहां सिखों की बड़ी आबादी रहती थीआज यहां करीब 200 सिख ही रह गए हैं। 1911 में निर्मित यह पवित्र स्थल इस क्षेत्र में सिख विरासत की आधारशिला रहा है। 1947 में देश के बंटवारे के बाद सिख समुदाय से उनका ये पूजा स्थल छीन लिया गया और इसी जगह मॉडल हाई स्कूल बना दिया गया। लेकिन 76 साल पाकिस्तान की पंजाब सरकार ने इसे फिर से खोलने का आदेश दिया।इस तरह की घटना पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ जारी भेदभाव को उजागर करती है ।