हेयर स्ट्रेटनिंग के शौकीन लोग हो जाएं सावधान! सीधा सीधा कैंसर को न्यौता दें रहे आप
Hair Straightening: बालों को सीधा करने वाले उत्पादों में पाए जाने वाले फार्मल्डिहाइड और अन्य रसायनों के कैंसरकारी प्रभावों को लेकर चिंता बढ़ रही है। डॉक्टरों का कहना है कि इन उत्पादों के बार-बार इस्तेमाल से नासोफेरींजल, साइनोनेजल कैंसर और ल्यूकेमिया का खतरा बढ़ सकता है। गर्भाशय और स्तन कैंसर से भी इनका संबंध पाया गया है।
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देश में एक बड़ा वर्ग ‘फैशन के लिए कुछ भी करेगा’ इस वर्ग को कोई परवाह नहीं कि शरीर पर कितने खतरनाक असर हो रहे हैं, बस नए-नए प्रॉडक्ट्स इस्तेमाल करते रहना उसका शौक है। उन पर चेतावनियों का भी असर नहीं होता। लेकिन ताजा रिपोर्ट यूं नजरअंदाज नहीं की जा सकती है। अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) ने चेतावनी दी है कि बालों को सीधा करने वाले उत्पादों में रसायनों के बार-बार इस्तेमाल से कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। भारत के डॉक्टर भी ऐसे उत्पादों में फॉर्मेल्डिहाइड और फॉर्मेल्डिहाइड छोड़ने वाले अन्य रसायनों पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष में हैं। दिल्ली स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में क्लीनिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. प्रज्ञा शुक्ला ने बताया कि फॉर्मेल्डिहाइड को इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) और नैशनल टॉक्सिकोलॉजी प्रोग्राम ने मानव कार्सिनोजेन के रूप में क्लासिफाइड किया है। यह नासोफेरींजल और साइनोनेजल कैंसर के साथ-साथ ल्यूकेमिया के हाई रिस्क से जुड़ा है।
बाल सीधे करने के चक्कर में आप
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डॉ. शुक्ला ने बताया कि भारत में बालों को सीधा करने वाले रसायनों में फॉर्मल्डिहाइड का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान निकलने वाला धुआं सांस के जरिए अंदर जा सकता है और ऐसा बार-बार होने पर कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल (RML हॉस्पिटल) में एक त्वचा विशेषज्ञ डॉ. कबीर सरदाना ने बताया कि हेयर रिलेक्सेसर से गर्भाशय और स्तन कैंसर हो सकता है, इन प्रॉडक्ट्स का 15 साल से ज्यादा साल तक और साल में कम से कम पांच बार के इस्तेमाल से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। डॉ. सरदाना ने जोर देकर कहा कि भारत में ये हेयर स्ट्रैटेनिंग बिल्कुल फालतू प्रक्रिया हैं। इनसे बचें तो कैंसर के खतरे को कम करने में मदद मिल सकती है।
हेयर स्ट्रेटनिंग का क्या-क्या खतरा, जान लीजिए
बीएलके सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में मेडिकल ऑन्कोलॉजी के एक वरिष्ठ निदेशक डॉ. सज्जन राजपुरोहित ने फॉर्मल्डिहाइडके संपर्क के तत्काल और दीर्घकालिक प्रभावों पर प्रकाश डाला। अल्पकालिक प्रभावों में सेंसिटाइजेशन रिएक्शंस, आंखों में जलन, नाक और गले में परेशानी और सांस लेने में समस्याएं शामिल हैं। वहीं, लंबे समय तक संपर्क में रहने से स्तन और गर्भाशय के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। डॉ. राजपुरोहित ने इन जोखिमों को कम करने के लिए तुरंत नियम बनाकर इनके प्रयोग पर रोक लगाने पर जोर दिया।
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ऐसे प्रॉडक्ट्स पर लगना चाहिए बैन
उधर, delhi के ही धर्मशीला नारायणा सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में मेडिकल ऑन्कोलॉजी के एक वरिष्ठ सलाहकार डॉ. रजीत चनाना ने रोजमर्रा के उत्पादों में कार्सिनोजेनिक एजेंटों को पहचानकर उससे निपटने की जरूरत बताई। वो कहते हैं कि जैसे अमेरिकी एजेंसी FDA खतरे पहचानकर प्रॉडक्ट्स पर बैन लगाती है, वैसी ही व्यवस्था भारत में भी होनी चाहिए क्योंकि कड़े नियम कैंसर के रिस्क को कम करने और पब्लिक हेल्थ को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राजधानी के शालीमार बाग स्थित फोर्टिस अस्पताल में प्रसूति एवं स्त्री रोग की निदेशक डॉ. अर्पणा जैन ने हेयर प्रॉडक्ट्स का चयन करते समय सावधानी बरतने की सलाह दी है। खोपड़ी पर रासायनिक संपर्क विशेष रूप से खतरनाक होता है क्योंकि शरीर रसायन को ज्यादा आसानी से सोख लेता है।
NIEHS पर्यावरण और कैंसर महामारी विज्ञान ग्रुप के प्रमुख एलेक्जेंड्रा वाइट के नेतृत्व में एक अध्ययन से पता चलता है कि बालों को स्ट्रेट करने वालों का बार-बार प्रयोग करने से गर्भाशय के कैंसर का खतरा अधिक होता है। वहीं, 70 वर्ष की आयु तक बालों को सीधा करने वालों का इस्तेमाल कभी नहीं करने वाली केवल 1.6% महिलाओं को गर्भाशय का कैंसर होता है जबकि बार-बार इस्तेमाल करने वालों के लिए यह जोखिम 4.1% तक बढ़ जाता है। बालों को सीधा करने वाले उत्पादों के इस्तेमाल से जुड़े कैंसर के संभावित खतरे को कम करने के लिए इन निष्कर्षों पर विचार करना और निवारक उपाय करना महत्वपूर्ण है।