राजनीति

RSS Against BJP: RSS के बिना कुछ नहीं है BJP, एक ही चुनाव में खुल गई पोल!

RSS Against BJP: भारतीय जनता पार्टी को देश की सबसे बड़ी पार्टी अगर किसी ने बनाया है तो वो है RSS….वो RSS जो बीजेपी के लिए धुआंधार प्रचार करता है। लेकिन अगर उसी पार्टी के नेता RSS को कुछ समझे ना तो फिर हारना लाजमी हो जाता है औऱ हुआ भी कुछ ऐसा ही है। क्योंकि चाहे कोई भी चुनाव हो…लेकिन आरएसएस हमेशा बीजेपी के साथ साये की तरह रहा है और उसी की ताकत है कि बीजेपी 2 सीटों से इतने बड़े नंबर तक पहुंची। बीजेपी की मेहनत और आरएसएस का तालमेल ऐसा रहा कि 10 साल तक लगातार मोदी सरकार का डंका बजता रहा…और तीसरी बार एक बार मोदी तीसरे टर्म में सरकार बनाने जा रही है…लेकिन मजबूरी है गठबंधन। बीजेपी का नारा था 400 पार…लेकिन हकीकत की जमीन पर मिले जनादेश ने मोदी के नाम पर बीजेपी को सिर्फ 240 सीटों से नवाजा…जो कि पूर्ण बहुमत से 32 नंबर पीछे रह गया…। सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्यों हुआ ?


क्या RSS से दूरी बनी गठबंधन की मजबूरी?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बीजेपी की बैकबोन माना जाता है। संघ के कार्यकर्ता हर चुनाव में जी जान से जुटते हैं।लेकिन सूत्रों के मुताबिक इस बार के चुनाव में बीजेपी की बैकबोन उसके पीछे खड़ी नहीं रही…। संघ चुनाव में भले ही बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए सीधे काम नहीं करता है लेकिन ये तय करने की जिम्मेदारी संघ हमेशा निभाता रहा है..। कम से कम बीजेपी के समर्थक और ऐसे वोटर मतदान के दिन वोट देने जरूर पोलिंग बूथ तक पहुंचे जो बीजेपी के कट्टर वोटर हैं…। लेकिन इस बार ऐसा हो न सका। गर्मी की वजह से वोटिंग प्रतिशत कम होता गया…लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि संघ के स्वयंसेवक हमेशा की तरह एक्टिव नहीं दिखे।


चुनाव के दौरान लगातार वोटिंग प्रतिशत निचले स्तर पर रहा। सूत्रों के मुताबिक शुरुआती पांच चरणों में संघ ने चुनाव पर न तो कोई बैठक की, न ही बीजेपी को उनका कोई संदेश आया। सूत्रों से खबर ये भी आई कि छठे चरण के पहले चीजें बदली…आरएसएस की एक बैठक हुई…आगे काम करने के लिए बातचीत भी हुई। लेकिन छठे दौर की वोटिंग से पहले ही बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का एक बयान आया…। पार्टी उस समय से विकसित हुई है जब उसे आरएसएस की जरुरत थी और अब वो सक्षम है…और अपना काम खुद चलाती है। आरएसएस एक वैचारिक मोर्चा है और अपना काम करता है।
माना यही जा रहा है कि चुनावों के बीच जेपी नड्डा का आरएसएस को लेकर दिया गया बयान स्वयंसेवकों को रास नहीं आया…। सूत्रों की मानें तो ये बयान संघ के भीतर चर्चा में रहा और इसका असर ये हुआ कि संघ के स्वयंसेवक फिर एक्टिव नहीं हुए। जबकि बाहरी नेताओं की फौज को बीजेपी में लाने से संघ पहले से ही नाराज था। महाराष्ट्र इसका बड़ा उदाहरण है…। फिर हुआ वही जिसकी उम्मीद नहीं की जा रही थी…बीजेपी को 24 के चुनाव में इसका खामियाजा भुगतना पड़ा।

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