India Alliance VS NDA: आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पटखनी देने के लिए विपक्षी दलों ने एक गठबंधन का निर्माण किया है। नाम दिया है इंडिया गठबंधन (India alliance)। ऊपर से देखने में यह गठजोड़ काफी लाभकारी तो दिख रहा है लेकिन इसके भीतर भी विद्रोह कम नहीं है। सबसे बड़ी बात तो यही है कि इस गठबंधन (India alliance) में जितनी पार्टियां शामिल हैं उनमें से कई पार्टियां कई राज्यों में सरकार चला रही है। जो पार्टियां सरकार नहीं भी चला रही है वह उस राज्य में बड़ी पार्टी है और मुख्य विपक्षी है।
28 दलों का यह विपक्षी गठबंधन है। संभव है इसमें आए दिन और दल भी शामिल होंगे। बसपा भी इसमें शामिल हो सकती है। पूर्वोत्तर के भी कई दल इसमें अभी शामिल हो सकते हैं। लेकिन सबसे बड़ी समस्या सीट बंटवारे को लेकर हो रही है। इस गठबंधन की अभी तक तीन बैठके हो गई है। हर बैठक में यही कहा गया कि सीटों का बंटवारा जल्द ही किया जा जाएगा। मुंबई बैठक के बाद तो समय भी निर्धारित किये गए। कहा गया कि महीना भर के भीतर सब ठीक हो जाएगा। लेकिन अभी तक सीटों को लेकर कोई बड़ी बात सामने नहीं आयी है।
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इंडिया गठबंधन की सबसे बड़ी समस्या हिंदी पट्टी राज्यों में है। उत्तरप्रदेश, बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, झारखण्ड, मध्यप्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों में सीटों को लेकर आपसी सहमति नहीं बन रही है। बंगाल में ममता की सरकार है। ममता बनर्जी चाहती है कि वह अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़े। ममता जानती है कि उसकी ताकत बंगाल तक ही सीमित है और बंगाल में उसकी ताकत नहीं बढ़ती है तो आगामी राजनीति में उसकी पूछ भी कम हो जाएगी। ऐसे में ममता के सामने खुद को मजबूत दिखाने की चुनौती है। इसी तरह की राजनीति यूपी की भी है। यूपी में बीजेपी की सरकार है लेकिन मुख्य विपक्षी सपा है। अखिलेश यादव को लगता है कि 80 में से करीब 50 सीटों पर उसे लड़ना चाहिए। लेकिन इंडिया गठबंधन में कांग्रेस और जयंत चौधरी की पार्टी रालोद भी है। कांग्रेस भी अच्छी खासी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है ताकि पार्टी को जीवित रखा जाए। लेकिन सपा ऐसा नहीं चाहती।
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बिहार में अधिकतर सीटें राजद और जदयू बांटना चाहती है। लेकिन कांग्रेस भी यही चाहती है कि उसे भी संतोष जनक सीटें मिले। राजस्थान, मध्यप्रदेश और तेलंगाना में भले ही कांग्रेस की सीधी लड़ाई बीजेपी से है लेकिन अब इन राज्यों में भी इंडिया गठबंधन की पार्टियां मैदान में उतर गई है। जाहिर है सबको कुछ चाहिए। यही कुछ चाहने की राजनीति गठबंधन को आगे नहीं बढ़ने दे रही है।
अब कहा जा रहा है कि सीट बंटवारे का असली खेल पांच राज्यों के विधान सभा चुनाव के बाद ही संभव है। अगर पांच राज्यों के इस चुनाव में कांग्रेस की सरकार बनती है तो वह अधिक सीटों की मांग कर सकती है। वरना इंडिया गठबंधन के भीतर सीटों का बंटवारा किया जाएगा। जहां कांग्रेस और बीजेपी की सीधी लड़ाई है वहां की सीटें कांग्रेस के लिए छोड़ी जा सकती है।
बता दे कि अभी कांग्रेस के भीतर की चाहत यह है कि वह 350 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है लेकिन विपक्षी पार्टियां उसे ढाई सौ से ज्यादा सीटें देना नहीं चाहती। लेकिन पांच राज्यों के चुनाव में कांग्रेस कुछ बेहतर कर जाती है तो संभव है कि कांग्रेस लगभग तीन सौ सीटों पर चुनाव लड़े। लेकिन यह सब पांच राज्यों के चुनाव के बाद ही संभव हो सकता है।