नई दिल्ली: सपा विधायक शिवपाल यादव ने समान नागरिक संहिता को समर्थन करके राजनीति गलियारों में सनसनी फैला दी है। शिवपाल सपा मुखिया अखिलेश यादव के चाचा हैं और पिछले माह ही सपा के टिकट जीतकर विधायक बने हैं।
समान नागरिक संहिता का मुददा भाजपा का रहा, जबकि समाजवादी पार्टी हमेशा से इसकी खिलाफ़त करती रही है। सपा मुखिया के इस मुद्दे पर कोई भी टिप्पणी करना इसलिए मुश्किल हो रहा है, क्योंकि इससे उनके समर्थकों का एक वर्ग नाराज हो सकता है। राजनीतिक मजबूरियों के चलते समान नागरिक संहिता के बारे में बोलने के बचती रही है।
धूमिल हो सकती है सपा की छवि
अब ऐसी स्थिति में यदि अखिलेश यादव शिवपाल के समान नागरिक संहिता पर दिये बयान को निजी बयान बताते हैं तब तो सपा का कुछ बचाव हो सकता है, अन्यथा उनकी चुप्पी साधने से इस मुद्दे पर समाजवादी पार्टी की मूक स्वीकृति प्रचारित करके विरोधी सपा की छवि को धूमिल कर सकते हैं। इससे शिवपाल को तो कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन सपा को नुकसान जरूर उठाना पड़ सकता है।
अखिलेश से नहीं सधा ‘MY’ समीकरण तो सपा को चुकानी होगी भारी कीमत !
1967 में राम मनोहर लोहिया ने बनाया था मुद्दा
दरअसल समान नागरिक संहिता का मुद्दा नया नहीं है। इस मामले को पहली बार कई दशक पूर्व बाबा अंबेड़कर साहब द्वारा संविधान सभा में उठाया था। बाद में इसे सन् 1967 में राम मनोहर लोहिया ने लोकसभा चुनाव मुददा बनाया था। तब से लेकर आज तक ये मुद्दा चला आ रहा है, लेकिन किसी पार्टी ने इसे लागू करने की पहल नही की थी। हालांकि भारतीय जनता पार्टी इस मामले को समय-समय पर उछालती रही है।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री धामी ने की पहल
पिछले माह उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पिछले माह अपना कार्यभार संभालते ही प्रदेश में समान नागरिक संहिता लागू किये जाने की घोषणा की थी। उत्तर प्रदेश सरकार भी इस मामले पर गंभीरता दिखा सकती है। अब सपा विधायक शिवपाल यादव ने समान नागरिक संहिता को समर्थन देकर इस मामले को हवा दे दी है। हालांकि कहा ये भी जा रहा है कि शिवपाल में जाने के इच्छुक हैं। भाजपा नेतृत्व ने अभी उन्हें पार्टी में शामिल होने संबंधी कोई निर्णय नहीं लिया है। शिवपाल का यह बयान भाजपाई सोच होने की दिशा में बढ़ा एक कदम माना जा रहा है।