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SC on Bulldozer Action: बुलडोजर कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट बयान

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना केस दर्ज किए मकान गिराने की कार्रवाई गलत है। अगर प्रशासन मनमाने तरीके से मकान गिराता है तो इसके लिए अधिकारियों को जवाबदेह होना पड़ेगा।

SC on Bulldozer Action: सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर बुधवार, 13 नवंबर को सुनवाई के दौरान बड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि सरकारी ताकत का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। जज फैसला पढ़ रहे हैं। जस्टिस गवई ने कवि प्रदीप की एक कविता उद्धृत करते हुए कहा कि घर एक सपना है, जिसे कभी नहीं तोड़ना चाहिए। जज ने आगे कहा कि अपराध की सजा घर को ध्वस्त करना नहीं हो सकती। अपराध का आरोप या दोषी होना घर को ध्वस्त करने का आधार नहीं है।

सुनवाई के दौरान जज ने कहा, “हमने सभी दलीलें सुनीं। लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर विचार किया। न्याय के सिद्धांतों पर विचार किया। इंदिरा गांधी बनाम राजनारायण, जस्टिस पुट्टस्वामी जैसे फैसलों में बताए गए सिद्धांतों पर विचार किया। कानून का राज कायम रखना सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन साथ ही संवैधानिक लोकतंत्र में नागरिक अधिकारों की सुरक्षा भी जरूरी है।”

‘संविधान अपराध के आरोपियों को भी कुछ अधिकार देता है’

जज ने आगे कहा कि लोगों को यह समझना चाहिए कि उनके अधिकार ऐसे ही नहीं छीने जा सकते। सरकारी शक्ति का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता। हमने इस बात पर विचार किया कि क्या हमें दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए। बिना मुकदमे के घर गिराकर किसी को दंडित नहीं किया जा सकता। हमारा निष्कर्ष यह है कि अगर प्रशासन मनमाने तरीके से घर गिराता है तो इसके लिए अधिकारियों को जवाबदेह होना पड़ेगा। संविधान भी अपराध के आरोपी को कुछ अधिकार देता है। बिना मुकदमे के किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

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‘प्रशासन जज नहीं बन सकता’

सुनवाई के दौरान जज ने कहा, एक तरीका यह हो सकता है कि लोगों को मुआवजा मिले। साथ ही गैरकानूनी कार्रवाई करने वाले अधिकारियों को भी सजा मिलनी चाहिए। प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन होना चाहिए। बिना किसी को अपना पक्ष रखने का मौका दिए मकान नहीं तोड़े जा सकते। प्रशासन जज नहीं बन सकता। किसी को दोषी ठहराकर मकान नहीं तोड़ा जा सकता। देश में ताकत का सिद्धांत लागू नहीं हो सकता। अपराध की सजा देना कोर्ट का काम है। निचली अदालत द्वारा दी गई फांसी की सजा भी तभी लागू हो सकती है, जब हाईकोर्ट भी उसकी पुष्टि करे। सिर पर छत होना भी अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) के तहत एक अधिकार है।

Written By। Chanchal Gole। National Desk। Delhi

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