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SYL Canal Dispute: पंजाब और हरियाणा के बीच पानी की जंग फिर से चर्चा में

9 जुलाई 2025 को दिल्ली में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। इस बैठक में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने भाग लिया। बैठक का मुख्य उद्देश्य था – सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर विवाद को सुलझाने के लिए दोनों राज्यों के बीच सहमति बनाना।

SYL Canal Dispute
SYL Canal Dispute: पंजाब और हरियाणा के बीच पानी की जंग फिर से चर्चा में

SYL Canal Dispute: 9 जुलाई 2025 को दिल्ली में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। इस बैठक में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने भाग लिया। बैठक का मुख्य उद्देश्य था – सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर विवाद को सुलझाने के लिए दोनों राज्यों के बीच सहमति बनाना।

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क्या है SYL नहर विवाद?

एसवाईएल यानी सतलुज-यमुना लिंक नहर का उद्देश्य हरियाणा को सतलुज नदी का पानी देना था। यह विवाद 40 वर्षों से भी ज्यादा पुराना है। हरियाणा ने अपनी तरफ से नहर का निर्माण लगभग पूरा कर लिया है, लेकिन पंजाब लगातार इसके निर्माण से इनकार करता रहा है। पंजाब का तर्क है कि उसके पास कोई अतिरिक्त पानी नहीं है, और अगर यह नहर बनी, तो पंजाब के किसानों के हितों को नुकसान होगा।

बैठक में क्या हुआ?

बैठक सौहार्द्रपूर्ण माहौल में हुई, लेकिन कोई ठोस फैसला सामने नहीं आया। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने आशा जताई कि बातचीत से समाधान संभव है। वहीं, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने दोहराया कि पंजाब किसी भी हालत में यह नहर नहीं बना सकता क्योंकि इससे उनके किसानों का नुकसान होगा।

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न्यायिक पहल और सुप्रीम कोर्ट की भूमिका

इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही केंद्र सरकार को निर्देश दे चुका है कि वह दोनों राज्यों के बीच मध्यस्थता कर हल निकाले। कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर पंजाब निर्माण नहीं करता तो केंद्र सरकार खुद काम पूरा करे। अगली सुनवाई 13 अगस्त 2025 को होनी है, जिसमें इस बैठक की रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी।

एसवाईएल का इतिहास

1982: SYL नहर का निर्माण शुरू हुआ।
1990: राजनीतिक और सामाजिक तनाव के कारण निर्माण कार्य बंद।
1996: हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
2002 और 2004: सुप्रीम कोर्ट ने निर्माण पूरा करने के निर्देश दिए।
2004: पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जल समझौते रद्द किए।
2016: पंजाब सरकार ने अधिग्रहीत जमीन को डि-नोटिफाई कर दिया।

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अब क्या?

2020, 2022 और 2023 में केंद्र की ओर से इस विवाद को सुलझाने के लिए बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन कोई समाधान नहीं निकल पाया। यह चौथी बैठक भी बेनतीजा रही है। सुप्रीम कोर्ट के आगामी फैसले पर सभी की निगाहें टिकी हैं।

अगर केंद्र सरकार कोई स्पष्ट समाधान नहीं रख पाती, तो यह मामला फिर से न्यायिक प्रक्रिया में उलझ सकता है। पानी की यह लड़ाई क्या अब भी राजनीतिक जिद और क्षेत्रीय स्वार्थों में फंसी रहेगी, या कोई स्थायी समाधान निकलेगा – इसका जवाब शायद 13 अगस्त की सुनवाई में मिले।

एसवाईएल नहर विवाद सिर्फ पानी का नहीं, बल्कि राजनीति, पर्यावरण और कृषि हितों का भी गंभीर मुद्दा है। पंजाब और हरियाणा के बीच विश्वास बहाली के बिना कोई समाधान संभव नहीं लगता। अब देखना है कि सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार मिलकर इस दशकों पुराने झगड़े को कैसे सुलझाते हैं।

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Sarita Maurya

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