Tahawwur Rana News Update: तहव्वुर राणा को हो सकती है फांसी, मृत्युदंड तय करने में न्यायपालिका के सामने कोई बाधा नहीं
मुंबई 26/11 हमलों के आरोपी तहव्वुर राणा को भारत में मौत की सज़ा दी जा सकती है। दरअसल, इस मामले में प्रत्यर्पण संधि राणा को मौत की सज़ा मिलने से नहीं रोकती। भारत सरकार ने अमेरिका को भरोसा दिलाया है कि भारत में हिरासत के दौरान राणा को पूरी सुरक्षा दी जाएगी, लेकिन इस दौरान मौत की सज़ा से इनकार नहीं किया गया है।
Tahawwur Rana News Update: भारत की न्यायपालिका 2008 के मुंबई आतंकी हमले के मुख्य आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा को उसके जघन्य अपराधों के लिए मौत की सज़ा दे सकती है। राणा पर भारत में देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने, हत्या और आतंकवाद जैसे गंभीर आरोपों के तहत मुकदमा चलाया जाएगा। उसे इसके लिए मौत की सज़ा दी जा सकती है, क्योंकि भारत और अमेरिका दोनों ने प्रत्यर्पण प्रक्रिया के दौरान मौत की सज़ा को स्पष्ट रूप से खारिज नहीं किया है।
भारत और अमेरिका में अपराधियों को अलग-अलग तरीकों से मृत्युदंड दिया जाता है। ऐसी स्थिति में प्रत्यर्पण संधि के प्रावधान भी आड़े नहीं आते। हालांकि, प्रत्यर्पण प्रक्रिया के दौरान मौत की सजा न दिए जाने की शर्त रखी जा सकती है, लेकिन राणा के मामले में अमेरिका की ओर से ऐसी कोई शर्त नहीं रखी गई है। जबकि 2005 में अबू सलेम के प्रत्यर्पण के समय भारत ने पुर्तगाल को गारंटी दी थी कि उसे मौत की सजा नहीं दी जाएगी।
मौत की सजा से नहीं किया गया इनकार
कानूनी जानकारों के मुताबिक भारत सरकार ने अमेरिका को भरोसा दिलाया है कि भारत में हिरासत के दौरान राणा को पूरी सुरक्षा दी जाएगी। उसे प्रताड़ित नहीं किया जाएगा और कानून के मुताबिक सबूतों और गवाहों के आधार पर अदालत सजा तय करेगी। इस दौरान मौत की सजा से भी इनकार नहीं किया गया है।
किन धाराओं के तहत हुआ हुआ मामला दर्ज
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की जिन धाराओं के तहत राणा के खिलाफ मामला दर्ज किया है, उनमें मौत की सजा का भी प्रावधान है, इसलिए देश की न्यायपालिका उसे मौत की सजा जरूर सुना सकती है। याद रहे कि राणा के खिलाफ आईपीसी की धारा 120बी, 121, 121ए, 302, 468, 471 के तहत मामला दर्ज किया गया है। इसके अलावा गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम-यूएपीए की धारा 18 और 20 और आतंकी गतिविधियों के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है।
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इस मामले से जुड़े वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी, सुप्रीम कोर्ट के वकील ज्ञानंत सिंह और अभिषेक राय ने कहा कि प्रत्यर्पण एक न्यायिक प्रक्रिया है, जबकि निर्वासन एक कूटनीतिक प्रक्रिया है। यदि राणा को प्रत्यर्पित किया गया होता तो देश में स्थापित कानून को ध्यान में रखते हुए मृत्युदंड का क्रियान्वयन किया जाता, लेकिन राणा के मामले में, जिसे प्रत्यर्पण की न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से लाया गया था, मृत्युदंड से संबंधित हर पहलू का अनुपालन अनिवार्य है।
दोनों देशों में मृत्युदंड का प्रावधान
प्रत्यर्पण कानून में यह स्पष्ट है कि दोनों देशों के बीच संधि होनी चाहिए, लेकिन अगर एक देश में मृत्युदंड या कोई अन्य सजा प्रतिबंधित है या नहीं है, तो दूसरा देश प्रत्यर्पित किए गए आरोपी पर इसे लागू नहीं कर सकता। राणा के मामले में ऐसा नहीं है, क्योंकि अमेरिका और भारत दोनों देशों में मृत्युदंड का प्रावधान है।
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दूसरा पहलू प्रत्यर्पण के दौरान मृत्युदंड न दिए जाने की शर्त पर लागू होता है, लेकिन मीडिया से अब तक जो जानकारी सामने आई है, उसके अनुसार न तो अमेरिका की ओर से ऐसा कोई आश्वासन मांगा गया है और न ही भारत की ओर से ऐसा कोई आश्वासन दिया गया है।
यहां तक कि आईसीसीपीआर भी लागू नहीं होता
तीसरा पहलू इंटरनेशनल कॉवेनेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स (ICCPR) के दूसरे वैकल्पिक प्रोटोकॉल से जुड़ा है, जिसका उद्देश्य मृत्युदंड को खत्म करना है। भारत को छोड़कर कई देशों ने इस संधि के दूसरे वैकल्पिक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए हैं। ऐसे में राणा के मामले में यह भी लागू नहीं होता।
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