भारत में हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को उन ख़ास लोगो को समर्पित किया जाता है जिनसे हम ज़िंदगी में कुछ न कुछ ज़रूर सीखते हैं। चाहें स्कूल या कॉलेज के शिक्षक हों या फिर कॉलेज के बाद के संघर्ष में आपको राह दिखाना वाला कोई गुरु हो, ये दिन उन सभी को सम्मान देने, उनकी एहमियत को उनको बताने के रूप में मनाया जाता है। भारत में टीचर्स डे 5 सितंबर को मनाया जाता है जबकि भारत के अलावा अन्य देशों में अंतराष्ट्रीय शिक्षक दिवस 5 अक्टूबर को मनाया जाता है।
शिक्षक दिवस हमारे पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जन्मदिन के दिन मनाया जाता है। वैसे तो गुरु का सम्मान हर रोज़ किया जाता है लेकिन 5 सितंबर के दिन शिष्य अपने गुरुओं को बहुत से ख़ास तरीकों से बताते है कि वो उनके लिए कितने अहम है। आज के दिन शिष्य गुरुओं के लिए स्पेशल भाषण तैयार करते है जिसमे वो समाज में एक गुरु के महत्व को बताते हैं। ये तो सभी को पता है की डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के दिन ही हर साल शिक्षक दिवस मनाया जाता है लेकिन क्या आपको पता है की ऐसा क्यों होता है इसके पीछे की क्या कहानी है?
डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जन्मदिन के दिन क्यों मनाते है शिक्षक दिवस?
डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन को एक महान इंसान के साथ ही महान शिक्षक के रूप में भी देखा जाता है। उन्होंने राजनीति में आने से पहले 40 साल तक शिक्षा के क्षेत्र में योगदान दिया था। जब उन्होंने राजनीति में अपने कदम रखे तो उनके राष्ट्रपति बनने के बाद एक बार उनके छात्रों और दोस्तों ने उनसे उनका जन्मदिन मनाने की अनुमति मांगी। इस बात पर डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने उन लोगों से कहा कि आज के दिन जश्न सिर्फ मेरे लिए नही होना चाहिए अगर सभी टीचर्स के लिए भी होगा तो उन्हें बहुत गर्व महसूस होगा जिसके बाद से साल 1962 से 5 सितम्बर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
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डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन की कुछ अहम बातें-
डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्म जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुमनी गांव में हुआ था। उनके पूर्वज सर्वपल्ली गांव में रहते थे लेकिन बाद में वो लोग तिरुमनी गांव में आकर बस गए। उनके पूर्वज अपने गांव सर्वपल्ली से बहुत जुड़े हुए थे जिसके बाद यादों के तौर पर उन लोगों ने इसे अपने नाम के साथ जोड़ना शुरू कर दिया।
डॉ राधाकृष्णन का बचपन तिरुमनी गांव में ही बीता, वहीं से इन्होंने अपनी शिक्षा की शुरुआत की। आगे की शिक्षा के लिए इनके पिता जी ने क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल, तिरुपति में दाखिला करा दिया, जहां वे 1896 से 1900 तक रहे। सन 1900 में डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने वेल्लूर के कॉलेज से शिक्षा ग्रहण की। बाद में, मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज मद्रास से अपनी आगे की शिक्षा पूरी की। वह शुरू से ही एक मेंधावी छात्र थे। इन्होंने 1906 में दर्शन शास्त्र में M.A किया था।
डॉ. राधाकृष्णन ने अपने जीवनकाल में कई किताबें लिखीं, जिनमें से कुछ इस तरह हैं जैसे द हिंदू व्यू ऑफ लाइफ,द आइडियलिस्ट व्यू ऑफ लाइफ, रिलिजन एंड सोसाइटी, ईस्टर्न रिलिजंस एंड वेस्टर्न थॉट और ए सोर्स बुक इन इंडियन फिलॉसफी। उन्होंने कुछ सबसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं के लिए भी लेख लिखा था।
डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने जीवन, शिक्षा व राजनैतिक क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसी कारण से उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। इसके अतिरिक्त उन्हें अन्य क्षेत्रों में सराहनीय कार्यों के लिए अनेक पुरस्कार प्रदान किये गये। इनके उच्च व्यक्तित्व से शिक्षक व छात्र प्रेरित होकर अपने जीवन को एक आदर्श के रूप में स्थापित करने की कोशिश करते हैं। डॉ. राधाकृष्णन जी स्वामी विवेकानंद व वीर सावरकर के चरित्र जीवन से काफी प्रभावित थे। वे उनको अपना आदर्श मानते थे।