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UTTARAKHAND PLANT SURVIVAL RATE: उत्तराखंड में पौधारोपण का हाल बेहाल, कैग रिपोर्ट में खुलासा – वन विभाग की कार्यशैली कठघरे में

UTTARAKHAND PLANT SURVIVAL RATE: उत्तराखंड में पौधारोपण को लेकर विभिन्न अभियान तो चलाए जाते हैं, लेकिन उनकी सफलता बेहद सीमित नजर आती है। हाल ही में जारी कैग रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि बड़े पैमाने पर किए गए वृक्षारोपण के बावजूद उनका सर्वाइवल रेट बेहद कम है। इससे वन विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, भारी भरकम बजट खर्च करने के बावजूद पौधे अधिक समय तक जीवित नहीं रह पाते, जिससे पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों की प्रभावशीलता पर गंभीर चिंताएं उत्पन्न हो रही हैं।

UTTARAKHAND PLANT SURVIVAL RATE: उत्तराखंड में हर साल वन महकमा लाखों पौधे लगाने का दावा करता है, लेकिन इनमें से बहुत कम पौधे जीवित बचते हैं। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की हालिया रिपोर्ट ने इस सच्चाई को उजागर किया है कि राज्य में वनीकरण योजनाएं महज कागजी खानापूर्ति बनकर रह गई हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि 2017 से 2020 के बीच वन विभाग द्वारा किए गए पौधारोपण का सर्वाइवल रेट केवल 33.51% था, जबकि यह दर 60 से 65% होनी चाहिए थी।

वन विभाग के लाखों के खर्च के बावजूद खराब नतीजे

रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में 21.28 हेक्टेयर भूमि पर पौधारोपण किया गया, जिसमें 22.008 लाख रुपए खर्च किए गए, लेकिन जीवित पौधों की संख्या बेहद कम रही। वन अनुसंधान संस्थान (FRI) द्वारा किए गए सर्वे के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि वनीकरण के नाम पर बड़ा घोटाला हो रहा है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि कई स्थानों पर तो वनीकरण सिर्फ कागजों में ही किया गया, जबकि धरातल पर वास्तविकता कुछ और ही थी।

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वन मंत्री सुबोध उनियाल का बयान

उत्तराखंड सरकार में वन मंत्री सुबोध उनियाल ने भी स्वीकार किया कि वन विभाग के अधिकारी सिर्फ 30-35% सर्वाइवल रेट की बात करते हैं। उन्होंने इस पर चिंता जताते हुए अधिकारियों को निर्देश दिया कि पौधारोपण की लाइव लोकेशन डिजिटल रूप में दर्ज की जाए, ताकि फर्जीवाड़े को रोका जा सके। इसके साथ ही, उन्होंने अधिकारियों को पौधारोपण का सर्वाइवल रेट बढ़ाने के लिए कड़े निर्देश दिए हैं।

UTTARAKHAND PLANT SURVIVAL RATE: The condition of plantation in Uttarakhand is pathetic, CAG report reveals – Forest department’s working style in the dock

कैग रिपोर्ट में उजागर हुई प्रमुख खामियां

कैग रिपोर्ट में वनीकरण में हो रही गड़बड़ियों की प्रमुख वजहों का भी उल्लेख किया गया है:

  1. मिट्टी की गुणवत्ता की अनदेखी:

वृक्षारोपण से पहले मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार के लिए जरूरी कार्य ही नहीं किए गए।

नैनीताल संभाग में 2019-2021 के दौरान सड़क किनारे वृक्षारोपण के लिए 78.80 हेक्टेयर भूमि को तैयार किया गया, लेकिन अगले वर्ष कोई वृक्षारोपण नहीं किया गया।

  1. गलत प्रमाण पत्र जारी किए गए:

1204.04 हेक्टेयर भूमि को वनीकरण के लिए अनुपयुक्त करार दिया गया, बावजूद इसके वन विभाग ने इसे उपयुक्त बताया।

जांच में पाया गया कि 5 वन प्रभागों में भूमि चयन गलत तरीके से किया गया था।

डीएफओ अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रमाण पत्र गलत पाए गए, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।

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  1. वन विभाग का बचाव:

जब इस मामले पर वन विभाग से जवाब मांगा गया तो उन्होंने कहा कि वनीकरण खड़ी ढलान और घने जंगलों में हुआ था, इसलिए सफलता दर कम रही।

केवल कागजों में हुआ वनीकरण, धरातल पर हकीकत कुछ और

कैग रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि 5 वन प्रभागों में 43.95 हेक्टेयर भूमि पर वनीकरण दिखाया गया, जबकि असल में सिर्फ 23.82 हेक्टेयर भूमि पर ही पौधारोपण हुआ। यानी, 20.13 हेक्टेयर भूमि पर वनीकरण केवल कागजों में ही किया गया। इसके लिए विभाग ने 18.77 लाख रुपए खर्च किए थे।

जिन क्षेत्रों में गड़बड़ी उजागर हुई:

नैनीताल

अल्मोड़ा

मसूरी

रुद्रप्रयाग

चकराता

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सरकार को उठाने होंगे ठोस कदम

उत्तराखंड में वन महकमे द्वारा किए गए पौधारोपण में पारदर्शिता लाने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने होंगे। यदि इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो यह अभियान केवल कागजों तक ही सीमित रह जाएगा और लाखों रुपए की बर्बादी होती रहेगी। वन मंत्री सुबोध उनियाल ने इसके समाधान के लिए डिजिटल ट्रैकिंग की बात कही है, लेकिन यह देखना होगा कि यह सिस्टम कितना प्रभावी साबित होता है।

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Written By। Mansi Negi । National Desk। Delhi

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