UTTARAKHAND ADIBADRI TEMPLE: मकर संक्रांति पर श्रद्धालुओं के लिए खुलेंगे उत्तराखंड के आदिबद्री मंदिर के कपाट
UTTARAKHAND ADIBADRI TEMPLE: आदिबद्री को भगवान विष्णु का सबसे पहला निवास स्थान माना जाता है, और मकर संक्रांति के अवसर पर इस मंदिर के कपाट विशेष रूप से श्रद्धालुओं के लिए खोले जाते हैं। इस पावन दिन पर यहां 7 दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें श्रद्धालुओं और पर्यटकों की भारी भीड़ उमड़ती है। यह मंदिर अपनी धार्मिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है, क्योंकि बदरीनाथ से पहले भगवान विष्णु की पूजा यहीं की जाती है। इस आयोजन के दौरान आदिबद्री मंदिर आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक परंपराओं का केंद्र बन जाता है।
UTTARAKHAND ADIBADRI TEMPLE: उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व वाले आदिबद्री मंदिर के कपाट इस वर्ष 14 जनवरी को मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे भगवान नारायण का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। कपाट खुलने के साथ ही यहां एक सप्ताह तक विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।
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मंदिर की वार्षिक परंपरा
आदिबद्री मंदिर के कपाट हर वर्ष पौष माह में बंद कर दिए जाते हैं। बीते वर्ष 15 दिसंबर को मंदिर के कपाट बंद किए गए थे और अब मकर संक्रांति पर श्रद्धालुओं के लिए पुनः खोले जा रहे हैं। इस परंपरा का पालन वर्षों से किया जा रहा है। इस अवधि में मंदिर के भीतर विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
आदिबद्री मंदिर का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
यह मंदिर भगवान विष्णु के प्राचीनतम निवास स्थलों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि सतयुग, त्रेता और द्वापर युगों के दौरान भगवान विष्णु आदिबद्री में निवास करते थे, जबकि कलियुग में बद्रीनाथ में उनकी पूजा होती है। मंदिर परिसर में भगवान नारायण की काले पत्थर से बनी एक अद्भुत मूर्ति स्थापित है, जो श्रद्धालुओं के लिए पूजनीय है।
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स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, बिना आदिबद्री के दर्शन किए बदरीनाथ धाम की यात्रा अधूरी मानी जाती है। यही कारण है कि बदरीनाथ धाम जाने वाले श्रद्धालु पहले आदिबद्री आकर भगवान नारायण के दर्शन करते हैं।
आदि गुरु शंकराचार्य का योगदान
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, आदिबद्री मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य के समर्थन से हुआ था। उनका उद्देश्य पूरे भारत में सनातन धर्म के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार करना था। किसी समय में यह परिसर 16 मंदिरों का समूह हुआ करता था, लेकिन अब यहां 14 मंदिर शेष हैं। ये मंदिर विभिन्न देवताओं को समर्पित हैं, जिनमें भगवान गरुड़, अन्नपूर्णा देवी, कुबेर भगवान, लक्ष्मी नारायण, गणेश भगवान, हनुमान जी, गौरी शंकर, महिषासुर मर्दिनी और सूर्य भगवान के मंदिर प्रमुख हैं।
पर्यटन विकास की जरूरत
स्थानीय निवासियों और मंदिर समिति के अध्यक्ष जगदीश प्रसाद बहुगुणा ने सरकार से आदिबद्री क्षेत्र को पर्यटन के दृष्टिकोण से विकसित करने की मांग की है। उनका कहना है कि ग्रीष्मकाल से लेकर शीतकाल तक बड़ी संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक यहां आते हैं, लेकिन क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं की कमी है।
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सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन
कपाट खुलने के बाद एक सप्ताह तक मंदिर परिसर में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। इन कार्यक्रमों में स्थानीय लोकगीत, नृत्य और धार्मिक प्रवचन शामिल होंगे, जो क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करेंगे।
आदिबद्री मंदिर: आध्यात्म और इतिहास का संगम
उत्तराखंड का आदिबद्री मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है। यहां की वास्तुकला और आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों को आकर्षित करता है। मकर संक्रांति पर कपाट खुलने के साथ इस ऐतिहासिक धरोहर का महत्व एक बार फिर उजागर होगा।
श्रद्धालु बड़ी संख्या में भगवान विष्णु के दर्शन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद लेने के लिए आदिबद्री पहुंचेंगे। यह स्थल उत्तराखंड के धार्मिक पर्यटन को एक नई पहचान देने की क्षमता रखता है।
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