Waqf Bill Update: वक्फ कानून की पहली राजनीतिक परीक्षा बिहार में होगी, क्या करेंगे मुसलमान?
बिहार में 2025 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले नया वक्फ कानून राजनीतिक समीकरण बदलता नजर आ रहा है। मुस्लिम बहुल इलाकों में यह कानून मुख्य मुद्दा बन गया है। भाजपा समर्थक दल इसके समर्थन में हैं, जबकि विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं। मुस्लिम वोट बैंक का रुख चुनाव नतीजों पर असर डाल सकता है, जिसके चलते सभी दल मुस्लिम वोटरों को लुभाने की कोशिश में जुटे हैं।
Waqf Bill Update: नया वक्फ कानून बन चुका है। मोदी सरकार ने देश में कानून लागू करने के लिए अधिसूचना भी जारी कर दी है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों ने भी वक्फ कानून के खिलाफ आंदोलन का ऐलान कर दिया है, जबकि भाजपा यह समझाने में जुटी है कि नया कानून किस तरह मुसलमानों के हित में है। ऐसे में वक्फ कानून की पहली राजनीतिक परीक्षा बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में होगी, जहां मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में हैं। ऐसे में देखना यह है कि बिहार चुनाव में मुसलमानों का राजनीतिक रुख क्या होगा?
बिहार में छह महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। इस तरह बिहार में वक्फ कानून के बाद पहला चुनाव होना है। वक्फ कानून पर बिहार की राजनीति दो धड़ों में बंट गई है। भाजपा नीत एनडीए के घटक दल नीतीश कुमार की जेडीयू, चिराग पासवान की एलजेपी (आर) और जीतन राम मांझी की हम वक्फ कानून का समर्थन कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस, आरजेडी, वामपंथी दल और प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी इसके विरोध में हैं। इस तरह बिहार में वक्फ कानून पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच शह-मात का खेल शुरू हो गया है। इससे माना जा रहा है कि वक्फ कानून का राजनीतिक असर बिहार चुनाव पर पड़ सकता है।
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बिहार में कैसी मुस्लिम राजनीति है?
जातिगत सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार में करीब 17.7 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, जिसे राजनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। राज्य की कुल 243 विधानसभा सीटों में से करीब 48 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका काफी अहम है। इन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी 20 से 40 प्रतिशत या उससे भी अधिक है। बिहार में 11 सीटें ऐसी हैं, जहां 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं और 7 सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा। इसके अलावा 30 सीटों पर 20 से 30 फीसदी के बीच मुस्लिम वोटर हैं। सीमांचल इलाके खासकर किशनगंज में मुस्लिम वोटर 70 फीसदी से ज्यादा हैं। इस लिहाज से बिहार चुनाव में मुस्लिम समुदाय किसी भी पार्टी का खेल बनाने या बिगाड़ने की ताकत रखता है।
वक्फ कानून का पड़ेगा असर
मुस्लिम वोटों की राजनीतिक अहमियत को देखते हुए माना जा रहा है कि वक्फ कानून का बिहार की राजनीति पर खासा असर पड़ सकता है। संसद से वक्फ बिल पास कराने में नीतीश कुमार की जेडीयू, चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी, जयंत चौधरी की आरएलडी, चिराग पासवान की एलजेपी और जीतन राम मांझी की हम पार्टी की अहम भूमिका रही। मुस्लिम समुदाय का मानना है कि अगर बीजेपी को नीतीश-चिराग-मांझी का साथ नहीं मिलता तो मोदी सरकार के लिए बिल पास कराना आसान नहीं होता।
विपक्षी दल और मुस्लिम समुदाय भी मानते हैं कि बीजेपी अपने संख्याबल के आधार पर वक्फ बिल पास नहीं करा पाती। नीतीश-नायडू-चिराग चाहते तो संसद में वक्फ बिल पास होने से रोक सकते थे। अगर उन्होंने बीजेपी का साथ नहीं दिया होता तो मोदी सरकार कभी बिल पास नहीं करा पाती। बीजेपी के सहयोगी दलों को अब मुस्लिम वोट छिटकने का खतरा सता रहा है। विपक्ष और मुस्लिम संगठन यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि मोदी सरकार का मकसद सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाना और हिंदुत्व की विचारधारा को लागू करना है, जिसमें नीतीश-चिराग-मांझी ने बीजेपी की मदद की है। ऐसे में मुस्लिम वोटों के बिखराव का डर नीतीश से लेकर चिराग पासवान तक सभी को सता रहा है।
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नीतीश-चिराग को पड़ सकता है भारी नुकसान
मुस्लिम वोटों की राजनीतिक ताकत को देखते हुए लालू प्रसाद यादव से लेकर नीतीश कुमार और चिराग पासवान ही नहीं बल्कि असदुद्दीन ओवैसी से लेकर प्रशांत किशोर तक मुस्लिम वोटों को अपने पाले में जोड़ना चाहते हैं। हाल ही में मुस्लिम वोटों को साधने के लिए उन्होंने रमजान के महीने में इफ्तार पार्टी का सहारा लिया ताकि 2025 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की जा सके। ऐसे में वक्फ कानून का समर्थन करने की वजह से चिराग और नीतीश का मुस्लिम समीकरण गड़बड़ा गया है। इसी के चलते जेडीयू ने अपने मुस्लिम नेताओं को सक्रिय किया है ताकि डैमेज कंट्रोल किया जा सके।
मुस्लिम समुदाय ने साफ संकेत दे दिया है कि वे 2025 के चुनाव में नीतीश कुमार और चिराग पासवान की पार्टी को वोट नहीं देंगे, जिससे दोनों की राजनीतिक तल्खी बढ़ गई है। मुस्लिम वोटों की नाराजगी नीतीश कुमार और चिराग पासवान के लिए महंगी साबित हो सकती है, क्योंकि उन्हें मुस्लिम वोट मिलते रहे हैं। जिस तरह से आरजेडी मुसलमानों को यह बताने की कोशिश कर रही है कि वक्फ कानून नीतीश कुमार की वजह से ही बन पाया, उससे उसका राजनीतिक मकसद समझा जा सकता है। हालांकि, बीजेपी के साथ होने की वजह से नीतीश और चिराग के सामने पहले से ही मुस्लिम वोट बटोरने की चुनौती है और वक्फ कानून की वजह से मुसलमानों की नाराजगी और भी बढ़ गई है।
विपक्ष को क्या राजनीतिक फायदा मिलेगा
बिहार में मुस्लिम वोटों की चाहत में आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव दूसरे नेताओं से काफी आगे नजर आ रहे हैं। आरजेडी खुलकर वक्फ एक्ट के खिलाफ खड़ी हो गई है और लालू यादव मुस्लिम समुदाय के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे हैं। वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ जब मुस्लिम समुदाय सड़कों पर उतरा तो लालू यादव और तेजस्वी यादव भी इसमें शामिल हुए। तेजस्वी यादव ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि वो मुस्लिम संगठनों के साथ हैं। इतना ही नहीं तेजस्वी ने मुस्लिम समुदाय का दिल जीतने के लिए इमोशनल चाल भी चली। लालू यादव के इस सियासी कदम से मुस्लिम समुदाय खुश नजर आ रहा है।
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कांग्रेस भी वक्फ एक्ट के खिलाफ है। अहमदाबाद अधिवेशन में कांग्रेस ने भी वक्फ एक्ट को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए भाजपा की चाल बताया है। इतना ही नहीं, उसने मुसलमानों के मुद्दे पर खुलकर खड़े होने की वकालत की है। कांग्रेस ने संसद से लेकर सड़क तक वक्फ एक्ट के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है और मुस्लिम समुदाय के साथ खड़ी नजर आ रही है। वक्फ बिल को लेकर असदुद्दीन ओवैसी पूरी तरह से आक्रामक हैं, वहीं प्रशांत किशोर भी वक्फ बिल के खिलाफ मुसलमानों के साथ खड़े नजर आ रहे हैं।
बिहार में मुसलमान क्या करेंगे?
बिहार में 17.7 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। 2020 के चुनाव से पहले नीतीश कुमार को मुस्लिम वोट मिलते रहे हैं, लेकिन 2017 में महागठबंधन छोड़कर बीजेपी में शामिल होने के बाद मुस्लिमों का जेडीयू से मोहभंग हो गया। इसी तरह चिराग पासवान की पार्टी को भी मुस्लिम वोट मिलते रहे हैं, लेकिन जिस तरह से वे बीजेपी के पक्ष में खड़े नजर आ रहे हैं, उससे मुस्लिम समीकरण गड़बड़ा सकता है।
हालांकि, 2020 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोटिंग पैटर्न को देखें तो इसका ज्यादा असर नहीं होगा क्योंकि जेडीयू को सिर्फ 5 फीसदी मुस्लिम वोट मिले हैं। ज्यादातर मुस्लिम वोट कांग्रेस और आरजेडी के गठबंधन को गए हैं। ऐसे में देखना होगा कि 2025 के विधानसभा चुनाव में कौन सी पार्टी मुसलमानों की पहली पसंद बनती है?
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