बच्चों से मोबाइल की लत छुड़ाने के ये 5 आसान उपाय
नई दिल्ली: पिछले कुछ सालों में छोटे बच्चों में कई तरह की नई बीमारी देखने को मिल रही है। बच्चों की इन बीमारियों का कारण उनका खानपान व रहन सहन तो होता ही है, ज़्यादा लाड़ प्यार और जरूरत के ज़्यादा सुविधाएं भी उन्हें बीमार बना रही हैं और ये बीमारी कोई और नहीं, बल्कि मां-बाप व परिवार के सदस्य दे रहे हैं। जाने अनजाने अधिकांश माता पिता ही अपने बच्चों के पैदा होने वाले ‘साइलेन्ट बीमारियों’ के लिए जिम्मेदार होते हैं। मां बाप को जब तक अपनी गलती का अहसास होता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। बच्चों को हमारे द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं का चस्का उन्हें पूरी तरह से रोगी बना चुका होता है। वे ‘साइलेन्ट बीमारियों’ की गिरफ्त में आ चुके होते हैं।
छोटे बच्चों के हाथों में न दें स्मार्ट फोन
आजकल अधिकांश परिवारों में छोटे बच्चों के हाथों में परिजन उसे अपना स्मार्ट फोन थमा देते हैं। शुरु में हम ही बच्चों को उनकी पसंद के गेम अथवा फनी वीडियो दिखाते हैं और बाद में धीरे-धीरे बच्चे मोबाइल फोन देखने का
आदी हो जाते हैं। आज तीन से पांच साल का छोटा बच्चा मोबाइल फोन चलाना सीख जाता है और खुद ही अपनी पसंद के वीडियो गूगल पर ढूंढकर देखने लगता है।
फोन देखना बच्चों की आदत न बनने दें
मां-बाप समझते हैं कि उनका बच्चा बहुत एक्टिव व होशियार है। इसी खुशफहमी के चलते मां-बाप ही उसे फोन देखने का आदी बना देते हैं, जब फोन देखना उसकी आदत में शामिल हो जाता है, तो उसके मन और शरीर में कई साइलेन्ट बीमारियां घर करने लगती हैं। बच्चे की यह आदत उसे एक दिन जिद्दी बना देते हैं। जब कभी हम उसे फ़ोन नहीं देते तो वह आक्रामक हो जाता है। बच्चे का यह व्यवहार उसके मानसिक और शारारिक विकास के लिए प्रतिकूल असर डालता है।
फोन न मिलने पर बच्चे का रोना रोग लगने के लक्षण
यदि मना करने के बावजूद बच्चा आपका फोन उठाकर भाग जाता है, तो समझ लीजिए कि आपने उसे फोन देखने की लत रोग लग जाने की हद तक लगा दी है। कई बार लाड़ प्यार के चलते पति पत्नी में से कोई भी बच्चे को परिवार के दूसरे सदस्यों से नज़र बचाकर चुपके से उसे फ़ोन थमा देते हैं। यदि आपका बच्चा फ़ोन न मिलने पर, रोने लगे, पैर पटकता हुआ दूसरे कमरे में भाग जाए तो समझ लीजिए कि आपने ‘प्यार’ नो उसे ‘रोगी’ बना दिया है।
हो सकती है आंखों में ड्राईनेस की समस्या
मनोचिकित्सकों का कहना है कि छोटे बच्चों में फोन देखने के लत के कारण उनकी आँखों की रोशनी तो स्वाभाविक रुप के कम हो रही है। साथ ही उनकी आँखों में ड्राईनेस की समस्या भी बढ़ रही है। ऐसे बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुझान कम होता है। वे ज़िद्दी व उदंड बन जाते हैं। वे अपनी पसन्द का खाना ही खाते हैं। वे फास्ट फ़ूड के शौक़ीन बन जाते हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है। ऐसे बच्चे रचनात्मक गतिविधियों से दूर भागते हैं और उनका स्वभाव चिड़चिड़ा बन जाता है।
पूरी न करें बच्चों की ज़िद
बच्चों की इस स्थिति के लिए वे नहीं बल्कि अभिभावक जिम्मेदार होते हैं। बच्चों को प्यार जरूर करें, लेकिन कभी-कभी उनकी वह मांग पूरी न करें जो उनके हित में न हो। इसलिए जहां तक हो सके, पांच साल के बच्चों को स्मार्ट फोन की पहुंच से दूर ही रखें, ताकि उनका स्वाभाविक रुप से मानसिक व शारीरिक विकास हो सके और वे अनचाही बीमारी की चपेट में आने से बच सकें।