मुकदमा लड़ते-लड़ते मर गयी तीन पीढ़ियां, 108 साल चला मुकदमा, चौथी पीढ़ी को मिला इंसाफ
नई दिल्ली: अदालतों से जल्द न्याय पाने की उम्मीद सबको होती है, लेकिन यह काम इतना आसान काम नहीं है। इसके लिए वादी पक्ष को सौ साल से भी अधिक का समय लग सकता है। जी हां, यह सुनने में थोड़ा अजीब जरुर लगता है, लेकिन यह सच है। बिहार में हाल में दो ऐसे मामले प्रकाश में आये हैं, जहां जमीन पर मालिकाना हक पाने के मामले में 108 साल बाद, तो महज 800 रुपये के कर्ज मामले में 75 साल बाद फैसला आया है। इन दोनों ही मामलों के मुकदमा दाखिल करने वाले वादी पक्षों को जीते जी न्याय नहीं मिल सका था, लेकिन उनके वारिसों-अगली पाढियों ने मुकदमे लड़े और जीत हासिल की।
बिहार जनपद के आरा में जमीन पर मालिकाना हक पाने के लिए एक परिवार की तीन पीढियां मुकदमा लड़ते- लड़ते दुनिया से रुखसत हो गयीं, लेकिन अदालत से उन्हें न्याय नहीं मिला। इस परिवार की चौथी पीढी ने हार नहीं मानी और उसने अदालत में मुकदमें की जोरदार पैरवी की, जिसके परिणामस्वरुप करीब 108 साल बाद मुकदमे को खत्म कराकर अपने परिवार को कानून मालिकाना हक दिलाकर अपने पूर्वजों को न्याय दिलाया।
बिहार जनपद के आरा के अधिवक्ता सत्येन्द्र नारायण सिंह ने बताया कि अदालत में वर्ष 1914 में दरबारी सिंह ने जमीन पर मालिकाना हक पाने के लिए वाद दायर किया था। उन्होने नथूनी खान से 9 एकड भूमि खरीदी थी, लेकिन उनके परिजनों ने मालिकाना हक नही दिया था। वर्ष 1947 में यह परिवार पाकिस्तान चला गया था। इसके बाद दूसरे परिजनों ने मुकदमा लडा। इस वाद को तीन पीढियों ने लड़ा, लेकिन फैसला नहीं हो सका।
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अब चौथी पीढी के अतुल सिंह ने मामले की पैरवी की और व्यवहार न्यायालय एडीजे-7 ने मामला का निपटारा करते हुए संबंधित एसडीएम को जमीन पर मालिकाना हक दिलाने का आदेश दिया है।
उधर बिहार की ही बक्सर कोर्ट ने आठ सौ रुपये का कर्ज के 75 साल चले मुकदमे का अब निस्तारण किया है। इस प्रकरण में 1947 में बगला चौक निवासी भिखारी लाल ने तत्कालीन जनपद शाहाबाद के थाना मुफस्सिल के गांव चाकरहंसी निवासी गुप्तेश्वर प्रसाद के खिलाफ उधार लिये आठ सौ रुपये न लौटाने की शिकायत दर्ज करायी थी। इस मामले में 1970 में अदालत ने गुप्तेश्वर प्रसाद को ब्याज सहित रुपये लौटाने का आदेश दिया था, लेकिन उसने रुपये अदा नहीं किये थे।
इस केस में बक्सर के मुंसिफ-2, नितिन त्रिपाठी ने दोनों पक्षों को नोटिस करके बुलाया था, हालांकि वादी और प्रतिवादी दोनों की मौत हो चुकी है। इसलिए गुप्तेश्वर प्रसाद के पौत्र अदालत में पहुंचे थे और उन्होने अदालत से ब्याज सहित रुपये लौटाने का वादा किया था। अदालत ने उसे ब्याज सहित रुपये 3584 सरकारी कोषागार में जमा कराकर मामले को खत्म कराया।