नई दिल्ली: एक धर्म युद्ध है. जो कौरवों और पांडवों के बीच लड़ा गया था. लेकिन क्या आप को ये पता है कि कौरव 100 नहीं 101 भाई थे. कौन था धृतराष्ट्र का ये पुत्र और कौन थी उसकी मां. और क्यों सिर्फ वही बचा जीवित Mahabharat के युद्ध में ?
क्या कौरव 101 भाई थे?
कुरुक्षेत्र में एक ऐसा युद्ध हुआ जिसे धर्म युद्ध के नाम से जाना जाता है. इसके बारे में बहुत सारी कहानियां भी हैं. लेकिन शायद आप ये नहीं जानते होगें की कौरव 101 भाई थे. धृतराष्ट्र का एक और भी बेटा था. जिसका नाम युयुत्सु था. जो एक दासी की कोंख से पैदा हुआ था.
यह कहानी तब की है जब गांधारी गर्भवती थी, और दो सालों तक उन्हे कोई बच्चा नहीं हुआ उस दौरान वो धृतराष्ट्र की सेवा नही कर पाती थी. तब धृतराष्ट्र की सेवा के लिए एक दासी को रखा गया था. जिसका नाम सुगन्धा था.
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सुगन्धा और धृतराष्ट्र के पुत्र का नाम युयुत्सु था
सुगन्धा और धृतराष्ट्र से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम युयुत्सु रखा गया. युयुत्सदुर्योधन से छोटा था परंतु बाकी 99 कौरवों से बड़ा था. राजकुमारों की तरह ही उसकी भी शिक्षा-दीक्षा हुई और वह काफी योग्य सिद्ध हुआ.
वह एक धर्मात्मा था, इसलिए दुर्योधन की अनुचित चेष्टाओं को बिल्कुल पसन्द नहीं करता था और उनका विरोध भी करता था. इस कारण दुर्योधन और उसके अन्य भाई उसको महत्व नहीं देते थे और उसका मजाक भी उड़ाते थे.
कौरव और पांडव के बीच लड़े गये युद्ध में युयुत्सु नेसत्य का साथ देते हुए पांडवों की तरफ से युद्ध लड़ा. Mahabharat का युद्ध आरम्भ होने से पूर्व धर्मराज युद्धिष्ठिर ने आह्वान किया और कहा जो हमारे साथ हैं.
उनका स्वागत है और जो मेरे खिलाफ हैं वो जा सकते है. जिस पर युयुत्सु ने कौरवों की सेना का साथ छोड़कर पाण्डव सेना के साथ मिलने का निर्णय लिया था.
Mahabharat युद्ध में युयुत्सु की भूमिका
Mahabharat युद्ध में युयुत्सु ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. युधिष्ठिर ने उसको सीधे युद्ध के मैदान में नहीं उतारा, बल्कि उसकी योग्यता को देखते हुए उसे योद्धाओं के लिए हथियारों और रसद की आपूर्ति व्यवस्था का प्रबंध देखने के लिए नियुक्त किया.
उसने अपने इस दायित्व को बहुत जिम्मेदारी के साथ निभाया और अभावों के बावजूद पांडव पक्ष को हथियारों और रसद की कमी नहीं होने दी. युद्ध के बाद भी उसकी भूमिका महत्वपूर्ण रही. महाराज युधिष्ठिर ने उसे अपना मंत्री बनाया.
धृतराष्ट्र के लिए जो भूमिका विदुर ने निभाई थी, लगभग वही भूमिका युधिष्ठिर के लिए युयुत्सु ने निभाई. इतना ही नहीं, जब युधिष्ठिर महाप्रयाण करने लगे और उन्होंने परीक्षित को राजा बनाया, तो युयुत्सु को उसका संरक्षक बना दिया. युयुत्सु ने इस दायित्व को भी अपने जीवने के अंतिम क्षण तक पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ निभाया.