Trump news updates: ट्रंप की सराहना से नहीं सुधरेंगे अमेरिका-पाकिस्तान संबंध, रिश्ते बने रहेंगे महज लेन-देन तक सीमित
Trump news updates:डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पाकिस्तान की आतंकवाद विरोधी भूमिका की सराहना से इस्लामाबाद में उत्साह है, लेकिन इससे अमेरिका-पाकिस्तान संबंध मजबूत नहीं होंगे। विशेषज्ञ इसे महज कूटनीतिक रणनीति मानते हैं, जहां अमेरिका अपनी जरूरत के अनुसार सहयोग ले रहा है।
Trump news updates: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अपने पहले संयुक्त संबोधन में पाकिस्तान का उल्लेख किए जाने पर पाकिस्तान की सैन्य और राजनीतिक संस्थाएं बेहद उत्साहित हैं। ट्रंप ने अपने भाषण में पाकिस्तान की उस भूमिका की सराहना की, जिसमें उसने इस्लामिक स्टेट – खुरासान प्रोविंस (ISKP) के आतंकवादी शरीफुल्लाह को पकड़ने में मदद की थी। यह वही आतंकी था, जो 2021 में काबुल एयरपोर्ट हमले में शामिल था, जिसमें 13 अमेरिकी सैनिकों और दर्जनों अफगान नागरिकों की मौत हुई थी।
यह सराहना इसलिए भी अहम मानी जा रही है क्योंकि ट्रंप ने अपने भाषण में भारत और यूरोपीय संघ जैसे अन्य सहयोगियों की बहुत अधिक प्रशंसा नहीं की। हालांकि, यह उत्साह तभी तक सीमित रहेगा, जब तक अमेरिका-पाकिस्तान के संबंधों की जमीनी हकीकत पर ध्यान नहीं दिया जाता।
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क्या पाकिस्तान अब अमेरिका का विश्वास जीत रहा है?
2018 में डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान पर “झूठ और धोखे” का आरोप लगाया था और उसे दी जाने वाली आर्थिक सहायता पर सवाल उठाए थे। अब जब ट्रंप ने पाकिस्तान की आतंकवाद विरोधी भूमिका को स्वीकार किया है, तो इस्लामाबाद इसे अपनी जीत मान रहा है। लेकिन व्हाइट हाउस के अधिकारी जॉन किर्बी ने साफ कहा है कि “पाकिस्तान कभी भी अमेरिका का सामरिक सहयोगी नहीं रहा है।”
इस बदलाव को लेकर कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह मात्र एक कूटनीतिक संकेत है, जिससे अमेरिका पाकिस्तान से अपनी जरूरत के हिसाब से मदद ले सके। वास्तव में, पाकिस्तान और अमेरिका के संबंध अब भी लेन-देन के आधार पर टिके हुए हैं।
अमेरिका-पाकिस्तान आतंकवाद विरोधी सहयोग: वास्तविकता या दिखावा?
जो बाइडेन प्रशासन के दौरान अमेरिका और पाकिस्तान के बीच आतंकवाद विरोधी सहयोग फिर से शुरू हुआ था, लेकिन दोनों देशों की प्राथमिकताएं अलग-अलग थीं। अमेरिका की प्राथमिकता ISKP और उन आतंकियों को पकड़ने की थी, जो अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचाते हैं। वहीं, पाकिस्तान चाहता था कि अमेरिका तालिबान पर दबाव डाले, ताकि वह तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को नियंत्रित करे।
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ट्रंप के ताजा बयान के बाद पाकिस्तान को उम्मीद है कि अमेरिका अब तालिबान को काबू करने में उसकी मदद करेगा। लेकिन यह उम्मीद कितनी सार्थक होगी, यह कहना मुश्किल है। दरअसल, शरीफुल्लाह के खिलाफ पहली खुफिया जानकारी खुद अमेरिका ने दी थी और पाकिस्तान के पास सहयोग करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। इसके बावजूद पाकिस्तान की सेना और सरकारी संस्थाएं इसे अपनी उपलब्धि के रूप में पेश कर रही हैं।
क्या पाकिस्तान को अमेरिकी निवेश मिल सकता है?
पाकिस्तान अब इस अवसर का इस्तेमाल करते हुए अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की योजना बना सकता है। इसमें दो प्रमुख पहलू शामिल हैं—
- सैन्य सहयोग: पाकिस्तान चाहता है कि अमेरिका उसे सीमाई सुरक्षा तकनीक उपलब्ध कराए, जिससे पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर हमलों को रोका जा सके।
- खनिज संसाधन: पाकिस्तान विशेष रूप से बलूचिस्तान के खनिज संसाधनों में अमेरिकी निवेश आकर्षित करने की कोशिश कर सकता है। हालांकि, यह एक जटिल रणनीति होगी क्योंकि इस क्षेत्र में पहले से ही चीन का प्रभाव है। अगर पाकिस्तान अमेरिका को यहां निवेश के लिए आमंत्रित करता है, तो उसे चीन के साथ संभावित तनाव का भी सामना करना पड़ सकता है।
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अमेरिका-पाकिस्तान संबंध: सैन्य, खनिज और राजनीतिक जोखिम
ट्रंप के भाषण के बाद खबरें आईं कि अमेरिका पाकिस्तान और अफगानिस्तान के नागरिकों पर संभावित यात्रा प्रतिबंध लगा सकता है। इससे साफ जाहिर होता है कि अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों में कोई गहरी मजबूती नहीं आई है।
इसके अलावा, एक अटकल यह भी है कि अमेरिका पाकिस्तान की सेना को भविष्य में गाजा में शांति स्थापना मिशन के लिए इस्तेमाल कर सकता है। हालांकि, इस्लामाबाद के लिए यह एक जोखिम भरा कदम होगा।
पाकिस्तान की सेना भी इस मौके का इस्तेमाल अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करने में करेगी। ट्रंप द्वारा पाकिस्तान का जिक्र किए जाने को पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर और सरकार अपने घरेलू मोर्चे पर एक जीत के रूप में पेश कर सकती है। खासतौर पर यह पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) के समर्थकों के लिए एक झटका है, जो इमरान खान की रिहाई के लिए अमेरिकी समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहे थे। ट्रंप के बयान से पाकिस्तान की सत्ता में बैठे लोगों को राहत मिली है, क्योंकि इससे यह स्पष्ट हो गया है कि नई अमेरिकी सरकार इमरान खान के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगी।
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