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UP Ghaziabad News: कलावा, माला और तिलक के सहारे छलकपट की खौफनाक दास्तान, दो मासूम युवतियों के जीवन से की गई घिनौनी साजिश

UP Ghaziabad News: A horrifying tale of deceit with the help of Kalava, Mala and Tilak, a disgusting conspiracy was hatched against the lives of two innocent girls

UP Ghaziabad News: गाजियाबाद की पवित्र भूमि पर, जहाँ धर्म और आस्था का निवास है, वहां दो मासूम युवतियों के साथ जो छल हुआ, वह किसी दानवी साजिश से कम नहीं। खोड़ा और क्रॉसिंग रिपब्लिक की गलियों में गूंजता यह मामला समाज के विश्वास पर गहरा आघात करता है। कलावा, माला और तिलक के नाम पर रची गई यह कहानी न केवल दिल दहला देती है, बल्कि एक भयावह यथार्थ को भी उजागर करती है।

धर्म के आवरण में छल

गोंडा से निकला एक युवक, जिसका असली नाम फैजान था, उसने अपनी असलियत को छिपाकर लखनऊ की एक मासूम युवती के जीवन से खिलवाड़ किया। उसने अपना नाम अक्षय बताया, माथे पर तिलक, हाथ में कड़ा और गले में माला पहने हुए वह युवती के समक्ष प्रकट हुआ। यह दृश्य किसी धार्मिक नाटक का हिस्सा नहीं था, बल्कि एक ऐसी शैतानी साजिश थी, जो इस युवती की पूरी दुनिया को उजाड़ने वाली थी।

फैजान ने बड़ी चतुराई से युवती को प्रेम जाल में फंसाया, फिर शादी का प्रस्ताव रखकर उसे लखनऊ के एक होटल में ले गया। जहां उसने न केवल उसके शरीर का बल्कि उसकी आत्मा का भी अपमान किया। कोल्ड्रिंक में जहर घोलकर उसने कई बार युवती का गर्भपात कराया और उसे क्रॉसिंग रिपब्लिक में बसाने की योजना बनाई। जब फैजान की मां और बहन गाजियाबाद आईं, तब इस कहानी का असली चेहरा सामने आया। शगुफ्ता और फ़ायजा के रूप में हेमलता और कंचन की पहचान उजागर हुई।

एक और छलावे की कहानी

खोड़ा की उन्हीं गलियों में एक और मासूम युवती को ऐसे ही एक और शातिर शख्स ने अपने धर्म की आड़ में छल लिया। समीर पुत्र मोहम्मद सगीर हुसैन ने अपनी पहचान छुपाकर युवती से विवाह किया, लेकिन जब उसका असली चेहरा सामने आया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। शादी के बाद, उसने पीड़िता को प्रताड़ित किया, और उसे एक अंधकारमय जीवन में धकेल दिया।

इन दोनों घटनाओं में पीड़िताओं ने साहस दिखाया और पुलिस की शरण ली। खोड़ा थाने में शिकायत दर्ज कराई गई और पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए फैजान और समीर को गिरफ्तार कर लिया। इन गिरफ्तारियों ने समाज को यह संदेश दिया कि चाहे जितना भी गहरा अंधकार हो, सच्चाई की रोशनी उसे खत्म करने के लिए पर्याप्त होती है। यह कहानी सिर्फ दो युवतियों की नहीं, बल्कि उन तमाम मासूमों की है जो विश्वास के छलावे में फंसकर अपनी जिंदगी को दांव पर लगा देती हैं। कलावा, माला, और तिलक जैसे पवित्र प्रतीकों का ऐसा दुरुपयोग किसी धर्म का अपमान नहीं, बल्कि मानवता पर एक गहरा आघात है। यह समाज के हर व्यक्ति के लिए एक चेतावनी है कि धर्म और आस्था का सम्मान करते हुए सतर्क रहें, क्योंकि जो दिखता है, वह हमेशा सच नहीं होता।

Praveen Mishra

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