UP Ghazibad News: प्रेस स्वतंत्रता पर संकट! पत्रकारों और यूट्यूबर्स पर पुलिस का शिकंजा, लोकतंत्र की मौलिक धारा पर सवाल
UP Ghazibad News: Crisis on press freedom! Police clampdown on journalists and YouTubers, questions on the fundamentals of democracy
UP Ghazibad News: उत्तर प्रदेश में प्रेस की स्वतंत्रता पर उठे सवालों ने एक नई दिशा ले ली है, जहां हाल के घटनाक्रमों ने कानून और न्याय के संतुलन पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं। गाजियाबाद पुलिस द्वारा पत्रकार इमरान खान की गिरफ्तारी ने पूरे मीडिया जगत को झकझोर दिया है। बीते 12 अप्रैल को इमरान ने कांग्रेस की अधिकृत लोकसभा प्रत्याशी की प्रेस कांफ्रेंस में किए गए आरोपों को अपने अखबार में प्रकाशित किया था। कांफ्रेंस में बीजेपी सांसद अतुल गर्ग पर भूमाफिया होने का आरोप लगा था। इसके छह महीने बाद, अतुल गर्ग ने इस पर मानहानि की एफआईआर दर्ज कराई, और बिना देरी पुलिस ने इमरान को गिरफ्तार कर लिया।
प्रश्न यह उठता है कि क्या प्रेस कांफ्रेंस की रिपोर्टिंग पत्रकार का कर्तव्य नहीं है? यदि पत्रकारों को नेताओं के बयानों पर रिपोर्टिंग करने पर गिरफ्तार किया जाएगा, तो स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता का अस्तित्व कैसे संभव है? क्या इसी तरह का व्यवहार बड़े मीडिया घरानों और राष्ट्रीय अखबारों के साथ किया जाएगा? क्या लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को सिर्फ इसलिए निशाना बनाया जा सकता है क्योंकि वे एक स्थापित पार्टी के राजनीतिक प्रभाव का विरोध कर रहे हैं?
यही मामला यहीं नहीं रुकता। इससे पहले भी गाजियाबाद पुलिस ने जनरल वीके सिंह की शिकायत पर एक यूट्यूबर को भी गिरफ्तार किया था, जिसने एक वीडियो में उन पर लगाए गए आरोपों को प्रसारित किया था। ये घटनाएं उत्तर प्रदेश में एक नई प्रवृत्ति को जन्म दे रही हैं, जहां पत्रकारों और मीडिया कर्मियों को स्वतंत्र रूप से कार्य करने के अवसर से वंचित किया जा रहा है।
इन सबके बीच, गाजियाबाद कोर्ट में वकीलों पर पुलिस की बर्बरता के वीडियो भी वायरल हुए हैं, जिसके बाद यूपी बार काउंसिल ने राज्यव्यापी विरोध का ऐलान किया है। कोर्ट रूम के भीतर हुए इस ताबड़तोड़ लाठीचार्ज ने न्याय व्यवस्था के सामने एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या किसी को भी बुनियादी अधिकारों से वंचित किया जा सकता है?
प्रशासन और पुलिस का यह रवैया ना केवल स्वतंत्र पत्रकारिता पर रोक लगाने का एक प्रयास है, बल्कि समाज में अधिकारों के असीमित प्रयोग का भी एक उदाहरण प्रस्तुत करता है। सत्ता और अधिकारों के साथ संयम और विवेक का संतुलन बनाए रखना नितांत आवश्यक है, वरना यही अधिकार बेजा इस्तेमाल का शिकार बनकर किसी एक पक्ष को विक्टिम में बदल देते हैं।
मीडिया और पत्रकारिता स्वतंत्रता की इस चुनौती का सामना कर रहे हैं, जहां जिम्मेदारी से परे होकर फैसले लिए जा रहे हैं। यह घटना एक स्पष्ट संकेत है कि प्रशासनिक अधिकारों का सम्मान तभी तक है, जब तक उनका संयमित और न्यायसंगत प्रयोग हो।