International Trade Law: अमेरिकी अदालत ने ट्रंप के टैरिफ आदेशों पर लगाई रोक, व्यापार नीति में बड़ा बदलाव संभव
अमेरिकी अदालत ने ट्रंप द्वारा लागू किए गए टैरिफ को अवैध करार देते हुए उस पर रोक लगा दी है। अदालत ने कहा कि ट्रंप ने 1977 के अंतर्राष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्ति अधिनियम (IEEPA) का गलत उपयोग किया। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है, जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीति पर बड़ा असर पड़ सकता है।
International Trade Law: अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार न्यायालय ने हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अप्रैल 2025 में लगाए गए टैरिफों को अवैध करार दिया है। अदालत के अनुसार, ट्रंप ने राष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्ति अधिनियम (IEEPA) का दुरुपयोग करते हुए ये शुल्क लगाए, जो कि अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप नहीं हैं। इस फैसले से वैश्विक व्यापार व्यवस्था में बड़ा बदलाव आ सकता है और अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीतियों पर सवाल उठ सकते हैं।
टैरिफ पर विवाद और अदालत का फैसला
अमेरिका ने अप्रैल 2025 में कई देशों से आयातित वस्तुओं पर 10 प्रतिशत का बेसलाइन शुल्क लगाया था। इसके अतिरिक्त, कुछ देशों पर अतिरिक्त प्रतिशोधात्मक टैरिफ भी लगाए गए थे। ट्रंप प्रशासन ने इसे लागू करने के लिए IEEPA का सहारा लिया था, जो राष्ट्रपति को राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान व्यापारिक गतिविधियों को नियंत्रित करने की शक्ति देता है। लेकिन न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस अधिनियम का मकसद केवल असाधारण और तत्काल खतरों का मुकाबला करना है, न कि स्थायी और व्यापक टैरिफ लगाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाए।
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अदालत ने कहा कि 1977 में लागू इस अधिनियम के तहत राष्ट्रपति को केवल राष्ट्रीय सुरक्षा या गंभीर आर्थिक संकट के समय सीमित अधिकार प्राप्त हैं, और ट्रंप के आदेश इस दायरे से बाहर थे। इसलिए, अदालत ने ट्रंप के टैरिफों को अवैध करार देते हुए इसे वापस लेने का आदेश दिया।
अपील और वर्तमान स्थिति
हालांकि, ट्रंप प्रशासन ने इस फैसले के खिलाफ अपील दायर की है। अपील न्यायालय ने फिलहाल इन टैरिफों को लागू रखने की अनुमति दी है, जब तक कि अंतिम निर्णय नहीं हो जाता। इस कारण, अमेरिकी व्यापारिक नीति फिलहाल अस्थिर बनी हुई है, और व्यापारिक साझेदार देशों में इस विवाद को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मामला अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच सकता है, जहां इसका अंतिम निर्णय दिया जाएगा।
व्यापारिक और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव
टैरिफों पर इस विवाद ने अमेरिका और उसके प्रमुख व्यापारिक साझेदारों जैसे कनाडा, मेक्सिको, और यूरोपीय संघ के बीच तनाव बढ़ा दिया है। इन देशों ने बार-बार कहा है कि ये शुल्क उनके व्यापार को बाधित करते हैं और आर्थिक नुकसान पहुंचाते हैं। व्यापार विशेषज्ञों का मानना है कि इससे द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार समझौतों पर भी असर पड़ सकता है।
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टैरिफों के कारण अमेरिका में महंगाई बढ़ने का खतरा भी था, क्योंकि आयातित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि से उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचता है। साथ ही, घरेलू उद्योगों को भी विभिन्न प्रकार के आर्थिक दबावों का सामना करना पड़ सकता है।
राष्ट्रपति की शक्तियों की सीमा पर पुनर्विचार
यह मामला अमेरिकी राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियों की सीमा और उनका दायरा तय करने में अहम साबित होगा। अदालत ने इस बात पर जोर दिया है कि राष्ट्रपति को केवल तब ही व्यापार नियंत्रण का अधिकार प्राप्त है जब देश को असाधारण संकट का सामना हो। ट्रंप के आदेशों को इस सख्त परिभाषा में नहीं रखा जा सकता।
1974 के व्यापार अधिनियम की धारा 122 के तहत भी राष्ट्रपति को कुछ सीमित अधिकार प्राप्त हैं, लेकिन ये अधिकार भी केवल गंभीर आर्थिक परिस्थितियों के लिए हैं और इन्हें बिना शर्त लागू नहीं किया जा सकता।
ट्रंप प्रशासन का रुख और प्रतिक्रिया
ट्रंप ने सोशल मीडिया पर इस फैसले को राजनीतिक रूप से प्रेरित और गलत बताया है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि अमेरिका का सर्वोच्च न्यायालय इस फैसले को पलट देगा। प्रशासन ने यह भी कहा है कि वे राष्ट्रीय सुरक्षा और अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करेंगे।
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व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने कहा है कि यह मामला न्यायालयों के निर्णय का विषय है, लेकिन राष्ट्रपति की प्राथमिकता हमेशा अमेरिका को पहले रखना रही है। प्रशासन ने इस विवाद को जल्द से जल्द सुलझाने के लिए काम जारी रखने की बात कही है।
भविष्य की संभावनाएं
यह फैसला वैश्विक व्यापार नियमों के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इससे यह स्पष्ट होगा कि राष्ट्राध्यक्षों को आपातकालीन शक्तियों का उपयोग करते हुए किस हद तक व्यापार नीतियां बनानी चाहिए। यदि यह टैरिफ हटाए जाते हैं, तो अमेरिका को व्यापारिक साझेदारों के साथ नए समझौतों की ओर बढ़ना होगा, जिससे वैश्विक व्यापार में स्थिरता आएगी।
दूसरी ओर, यदि ये टैरिफ बरकरार रहते हैं, तो वैश्विक व्यापार में तनाव बढ़ सकता है, जिससे आर्थिक मंदी और अधिक गहरी हो सकती है।
अमेरिका के व्यापारिक नियमों और राष्ट्राध्यक्ष की शक्तियों को लेकर यह मामला इतिहास में महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। अदालत का निर्णय यह स्पष्ट करता है कि व्यापार नीति बनाने में राष्ट्रपति की शक्तियों की भी सीमाएं हैं, जिन्हें संविधान और कानून के दायरे में रहकर ही प्रयोग किया जाना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक स्थिरता के लिए यह जरूरी है कि सभी देश पारस्परिक सम्मान और नियमों का पालन करें। ऐसे में इस विवाद का निपटारा अमेरिका और विश्व के व्यापारिक माहौल के लिए अहम होगा।
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