Uttar Pradesh News: लखनऊ में मोहर्रम जुलूस में खुद को लहूलुहान करने वाले हिंदु संत कौन ?
लखनऊ में मुहर्रम की दसवीं तारीख को यौम-ए-आशूरा मनाया गया। इस मौके पर इमामबाड़ा नाजिम साहब से कर्बला तालकटोरा तक जुलूस निकाला गया, जिसमें कई अंजुमनों ने भाग लिया। स्वामी सारंग भी मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद के साथ गम में शामिल हुए। उन्होंने कर्बला के शहीदों को श्रद्धांजलि दी।
Uttar Pradesh News: इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम की दसवीं तारीख, जिसे यौम-ए-आशूरा कहा जाता है, पर लखनऊ में एक ऐसा दिल छू लेने वाला नजारा देखने को मिला, जिसने गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश की. शहर में इमामबाड़ा नाज़िम साहब से कर्बला तालकटोरा तक निकले मातमी जुलूस में, जहां मुस्लिम समुदाय के लोग इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत पर गमगीन थे, वहीं एक भगवा वस्त्रधारी स्वामी सारंग भी इस दुख में बराबर के शरीक हुए.
स्वामी सारंग, जो माथे पर तिलक लगाए और गले में रुद्राक्ष की माला पहने हुए थे, मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद के साथ जुलूस में शामिल हुए. उन्होंने ‘या अली’ और ‘या हुसैन’ के नारे लगाए, कर्बला के शहीदों को श्रद्धांजलि दी और तो और, खूनी मातम मनाकर अपना दुख भी व्यक्त किया. यह दृश्य वाकई चौंकाने वाला और प्रेरणादायक था, जिसने लोगों को झकझोर दिया.
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कौन हैं ये स्वामी सारंग?
प्रयागराज के एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे स्वामी सारंग एक आध्यात्मिक गुरु हैं. पिछले लगभग 8-10 सालों से वे लगातार मुहर्रम के जुलूस में शामिल होकर शांति और सद्भाव का संदेश दे रहे हैं. उन्होंने इमाम हुसैन पर गहरा अध्ययन भी किया है, जो उनकी इस धार्मिक सहिष्णुता की भावना को दर्शाता है. उनका मानना है कि मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है, और उनका यह कार्य इसी सोच का प्रतीक है.
कर्बला का संदेश और स्वामी सारंग का समर्पण
स्वामी सारंग ने बताया कि कर्बला एक विश्वव्यापी संदेश है, जो इमाम हुसैन ने अपनी शहादत से दिया है. यह शांति और न्याय का संदेश है जिसे पूरी दुनिया पसंद करती है. उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए अपनी पीठ पर कमां और जंजीर भी चलाई, जो मुहर्रम के दौरान मातम मनाने का एक तरीका है.
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मौलाना कल्बे जव्वाद ने इस मौके पर कहा कि इमाम हुसैन ने करीब साढ़े तेरह सौ साल पहले हिंदुस्तान में बसने की इच्छा जाहिर की थी, लेकिन वे कर्बला में शहीद हो गए. उनकी इस इच्छा को आज भी हिंदुस्तान के हर धर्म के लोग मातम और मजलिस के जरिए पूरा करने की कोशिश करते हैं.
लखनऊ का यह मुहर्रम जुलूस, जिसमें स्वामी सारंग जैसे लोग शामिल होते हैं, साबित करता है कि इमाम हुसैन का संदेश आज भी प्रासंगिक है. यह हमें सिखाता है कि अन्याय के खिलाफ लड़ना और सभी धर्मों के बीच प्यार और भाईचारा बनाए रखना कितना जरूरी है. स्वामी सारंग का यह कदम वाकई सराहनीय है और यह दिखाता है कि कैसे धार्मिक सीमाएं लांघकर इंसानियत को आगे बढ़ाया जा सकता है.
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