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Uttar Pradesh News:”छोटे कद, बड़ी चाल”: राजपाल त्यागी की कहानी का अंत

उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री और मुरादनगर से छह बार विधायक रहे राजपाल त्यागी का निधन हो गया। उनके बेटे अजीतपाल त्यागी ने सोशल मीडिया पर यह जानकारी दी। राजपाल त्यागी ने कांग्रेस, सपा और बसपा समेत कई दलों में रहकर राजनीति की, और क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई।

Uttar Pradesh News:"Small stature, big move": The end of Rajpal Tyagi's story

Uttar Pradesh News: आज सुबह मुरादनगर ने अपने एक दिग्गज नेता को खो दिया। गाजियाबाद के यशोदा अस्पताल में कुछ दिन भर्ती रहने के बाद छह बार विधायक और तीन बार उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे राजपाल त्यागी का निधन हो गया। उनके विधायक बेटे अजित पाल त्यागी ने सोशल मीडिया पर इस खबर की पुष्टि की। शाम चार बजे हिंडन घाट पर उनका अंतिम संस्कार होगा। राजपाल त्यागी के निधन से मुरादनगर की राजनीति में एक बड़ा शून्य पैदा हो गया है।

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बागपत के मुकारी से मुरादनगर के सियासी सम्राट तक


राजपाल त्यागी की कहानी बागपत के छोटे से गांव मुकारी से शुरू होती है। उनके पिता परशुराम एक साधारण किसान थे। पांच भाइयों में से राजपाल ने कानून की राह चुनी और फिर राजनीति में कदम रखा। उनके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूटा। एक भाई टीपीएस त्यागी, जो कई प्राधिकरणों में इंजीनियर थे, कानपुर में उनकी हत्या हो गई। दूसरे भाई यशपाल त्यागी नोएडा अथॉरिटी में ओएसडी रहे। तीसरे भाई कुशलपाल त्यागी, एक जाने-माने वकील, जिनके पास पश्चिम यूपी के तमाम गैंगस्टरों के मुकदमे आते थे, उन्हें भी रंजिश में मार दिया गया। इन घटनाओं ने राजपाल त्यागी को एक मजबूत, व्यवहारिक और दूरदर्शी नेता बना दिया।


राजपाल त्यागी ने पहले गाजियाबाद बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के तौर पर अपनी पहचान बनाई। इसके बाद वे आठ साल तक जिला कांग्रेस अध्यक्ष रहे। 1989 में, जब कांग्रेस कमजोर हो रही थी और राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स मामले में वीपी सिंह का आंदोलन चल रहा था, राजपाल त्यागी ने हालात को भांपते हुए कांग्रेस छोड़ी और मुरादनगर से निर्दलीय चुनाव लड़कर पहली बार विधायक बने।


हर दल से जीते, पर भाजपा से दूरी


राजपाल त्यागी का सियासी सफर दिलचस्प रहा। उन्होंने कांग्रेस, सपा और बसपा जैसी हर बड़ी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीते भी, लेकिन भाजपा से वे कभी नहीं जुड़े।

1989: निर्दलीय विधायक

1991: कांग्रेस से जीते

1996: सपा से विधायक

2002: फिर कांग्रेस

2007: निर्दलीय

2008: मायावती के कहने पर बसपा के टिकट पर उपचुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे

वे दो बार मुलायम सिंह यादव की सरकार में राज्य मंत्री रहे और एक बार मायावती की सरकार में कैबिनेट मंत्री का
दबदबा ऐसा कि विरोधी भी डरते, अफसर भी सुनते

राजपाल त्यागी को एक प्रभावशाली और जनता से जुड़े नेता के रूप में जाना जाता था। वे प्रशासनिक अफसरों से काम निकालना बखूबी जानते थे। जनता से सीधा संवाद उनका सबसे बड़ा राजनीतिक हथियार था। वे विरोधियों के प्रति सख्त थे, लेकिन आम लोगों के लिए उनके दिल में नरमी थी।

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राजनीतिक विरासत का उलझा सपना

राजपाल त्यागी चाहते थे कि उनका बड़ा बेटा गिरीश उनकी राजनीतिक विरासत संभाले। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। वे गिरीश की पत्नी को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाना चाहते थे, लेकिन वे सदस्य का चुनाव ही हार गईं। इसके बाद उन्होंने छोटे बेटे अजित पाल को जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़वाया, और वे जीत गए। 2013 में अजित गाजियाबाद के जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध बने। फिर 2017 में अजित भाजपा के टिकट पर मुरादनगर से विधायक बन गए, और इस तरह राजपाल की विरासत छोटे बेटे के हाथ आ गई।


नरेश त्यागी हत्याकांड: घर में ही सियासी बवाल

2020 में राजपाल त्यागी के साले नरेश त्यागी की हत्या हो गई। जब पुलिस ने मामले की जांच की तो आरोप गिरीश पर लगे। राजपाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके अपने ही बेटे अजित पर गिरीश को फंसाने का आरोप लगाया। अजित ने इसके जवाब में पुलिस और मीडिया को कटघरे में खड़ा किया। यह मामला भले ही शांत हो गया, लेकिन इस घटना ने परिवार में सियासी कड़वाहट घोल दी थी।


जब लुटियंस दिल्ली में दिखी वो मुस्कान…

2016 के विधानसभा चुनाव से पहले की बात है। चौधरी अजित सिंह के दिल्ली स्थित आवास पर राजपाल त्यागी और प्रो. किरणपाल सिंह पहुंचे थे। राजपाल के चेहरे पर गुलदस्ता लिए एक उम्मीद भरी मुस्कान थी। लेकिन जल्द ही अजित सिंह ने भाजपा का दामन थाम लिया। राजपाल की वो मुस्कान आज भी याद आती है — शायद एक नई पारी की उम्मीद थी, शायद आखिरी।


मुरादनगर का नाम बचाया, अपनी जमीन खो बैठे

2009 में मुरादनगर सीट का नाम बदलकर “नया गाजियाबाद” किया जा रहा था। यह राजपाल त्यागी की राजनीतिक समझ थी कि उन्होंने इसे दोबारा “मुरादनगर” करवा दिया। यह उनकी राजनीतिक समझ और पहचान की जीत थी।
लेकिन समय बदला। शहरीकरण बढ़ा, उनकी ग्रामीण पकड़ कमजोर हुई। और भाजपा के उदय के साथ, उनके बेटे की सियासत चमकने लगी और खुद राजपाल हाशिए पर चले गए।


एक कहानी जो अधूरी रह गई

राजपाल त्यागी कभी भाजपा में नहीं रहे, लेकिन उनके बेटे भाजपा विधायक हैं। राजपाल की चाहत गिरीश को आगे लाने की थी, लेकिन वक्त ने अजित को चमकाया। उनकी जिंदगी एक सियासी महाभारत थी, जिसमें परिवार, पार्टी, प्रशासन और जमीनी राजनीति — सब साथ चलते रहे। राजपाल त्यागी उन नेताओं में गिने जाएंगे जो सत्ता में रहें या बाहर — हमेशा चर्चा में बने रहे।


छोटा कद, तेज चाल और बड़ा असर — यही थे राजपाल त्यागी। मुकारी गांव से मुरादनगर विधानसभा तक, राजनीति के हर मोर्चे पर जीत हासिल करने के बावजूद, उन्हें अपने ही घर में मुश्किल वक्त देखना पड़ा। यह एक श्रद्धांजलि है उस नेता को, जिसकी विरासत अब राजनीति के साथ-साथ परिवार की दास्तान में भी दर्ज हो चुकी है।

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Ravindra Rana

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