UTTARAKHAND CIVIC ELECTIONS 2025: उत्तराखंड निकाय चुनाव 2025: पांच बड़े नगर निगमों में सियासी समीकरण और चुनावी संघर्ष
UTTARAKHAND CIVIC ELECTIONS 2025: उत्तराखंड में निकाय चुनाव को लेकर तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। राज्य के पांच बड़े नगर निगमों - देहरादून, हरिद्वार, श्रीनगर, हल्द्वानी और काशीपुर में चुनावी समीकरण खासे रोचक हैं। इन नगर निगमों में राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतारने और मतदाताओं को लुभाने के लिए पूरी कोशिश कर रही हैं। उत्तराखंड निकाय चुनाव के तहत 23 जनवरी को मतदान होगा, जबकि 25 जनवरी को चुनाव परिणाम घोषित किए जाएंगे। इन चुनावों का परिणाम राज्य की स्थानीय राजनीति पर गहरा प्रभाव डाल सकता है
UTTARAKHAND CIVIC ELECTIONS 2025: उत्तराखंड में आगामी निकाय चुनाव 23 जनवरी 2025 को होने जा रहे हैं, और इसके परिणाम 25 जनवरी को घोषित किए जाएंगे। राज्य की राजनीति के इस महत्वपूर्ण चरण में देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी, काशीपुर और श्रीनगर के नगर निगम चुनाव पर खास नजर है। इन नगर निगमों के चुनावी समीकरणों और उम्मीदवारों के संघर्ष से स्पष्ट है कि इस बार मुकाबला बेहद रोचक और पेचीदा रहने वाला है।
देहरादून: राजनीतिक युवा बनाम अनुभवी आंदोलनकारी
देहरादून नगर निगम में भाजपा ने युवा मोर्चा के पूर्व अध्यक्ष सौरभ थपलियाल को मैदान में उतारा है। उनकी लोकप्रियता युवाओं के बीच खासतौर पर उल्लेखनीय है। 2022 में डोईवाला विधानसभा चुनाव में टिकट कटने के बाद भी वह पार्टी के भरोसेमंद चेहरों में बने रहे।
वहीं कांग्रेस ने राज्य आंदोलनकारी और वरिष्ठ नेता वीरेंद्र पोखरियाल पर दांव खेला है। पोखरियाल डीएवी कॉलेज के अध्यक्ष और सहकारिता के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं। उनके पास संगठनात्मक अनुभव के साथ ही आंदोलनकारी छवि भी है।
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7.65 लाख मतदाताओं और 100 वार्डों वाले देहरादून नगर निगम में इस बार कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी। यह क्षेत्र करीब पांच विधानसभा क्षेत्रों को कवर करता है, जिससे इस चुनाव का राज्य राजनीति पर भी व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।
हरिद्वार: आरक्षण का प्रभाव और पारिवारिक दांव
हरिद्वार नगर निगम में 1.93 लाख मतदाता और 60 वार्ड हैं। इस बार महिला ओबीसी आरक्षण ने राजनीतिक दलों को चुनौती दी है। भाजपा ने दो बार पार्षद रह चुकी किरण जैसल को उम्मीदवार बनाया है। उनके परिवार का गहरा राजनीतिक जुड़ाव है, जिससे उनका आधार मजबूत माना जा रहा है।
वहीं कांग्रेस ने अमरेश बालियान को मैदान में उतारा है। बालियान कांग्रेस से जुड़े रहे हैं और उनके बेटे वरुण बालियान यूथ कांग्रेस में सक्रिय हैं। हरिद्वार की मिश्रित जनसंख्या और आरक्षण के प्रभाव के कारण यहां मुकाबला दिलचस्प रहेगा।
श्रीनगर: निर्दलीय प्रत्याशियों का खेल बिगाड़ने का खतरा
श्रीनगर नगर निगम, जो हाल ही में नगर पालिका से अपग्रेड हुआ है, इस बार महिला सीट के लिए आरक्षित है। भाजपा ने आशा उपाध्यक्ष को उम्मीदवार बनाया है, जो पिछले चुनाव में दूसरे स्थान पर रही थीं।
वहीं कांग्रेस ने मीना रावत को टिकट दिया है, जो सक्रिय और अनुभवी नेता मानी जाती हैं। लेकिन चुनाव का सबसे रोचक पहलू निर्दलीय प्रत्याशी पूनम तिवारी हैं। पूनम का राजनीतिक अनुभव और शैक्षणिक पृष्ठभूमि उन्हें एक मजबूत दावेदार बनाती हैं। इससे भाजपा और कांग्रेस दोनों के समीकरण बिगड़ सकते हैं।
हल्द्वानी: नए चेहरे बनाम पुराने दिग्गज
हल्द्वानी नगर निगम में इस बार 2.41 लाख मतदाता मेयर चुनेंगे। भाजपा ने गजराज बिष्ट को टिकट दिया है, जो फायर ब्रांड नेता माने जाते हैं। वहीं कांग्रेस ने सुमित हृदयेश की पसंद ललित जोशी को उम्मीदवार बनाया है।
भाजपा ने अपने मौजूदा मेयर जोगिंदर रौतेला का टिकट काटकर गजराज पर भरोसा जताया है। वहीं ललित जोशी के पास कांग्रेस के मजबूत संगठन और विधायक सुमित हृदयेश का समर्थन है।
काशीपुर: अल्पसंख्यकों की भूमिका महत्वपूर्ण
काशीपुर नगर निगम में 1.28 लाख मतदाता हैं, जिनमें अल्पसंख्यक समुदाय की अहम भूमिका होगी। भाजपा ने दीपक बाली को उम्मीदवार बनाया है, जबकि कांग्रेस ने संदीप सहगल को मैदान में उतारा है।
नए परिसीमन के तहत यहां 40 वार्ड बनाए गए हैं, जिनमें से 10 महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। अल्पसंख्यकों के वोट किस ओर जाएंगे, यह इस क्षेत्र में चुनावी परिणाम को प्रभावित कर सकता है।
राजनीतिक दलों की चुनौतियां और संभावनाएं
भाजपा की सबसे बड़ी ताकत उसका संगठित ढांचा है, जो बूथ स्तर तक मजबूत है। वहीं कांग्रेस को अपने उम्मीदवारों के व्यक्तिगत आधार पर अधिक निर्भर रहना होगा।
इन पांच नगर निगमों के परिणाम राज्य की राजनीति की दिशा तय करेंगे। देखना होगा कि भाजपा अपनी संगठनात्मक ताकत से जीत दर्ज करती है या कांग्रेस अपने अनुभवी नेताओं के दम पर वापसी करती है। 23 जनवरी को होने वाले मतदान और 25 जनवरी को घोषित होने वाले परिणाम इन सवालों का जवाब देंगे।