गढ़वाल विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग द्वारा छात्रों और किसानों को मछली उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे उन्हें स्वरोजगार के अवसर मिल रहे हैं। पारंपरिक खेती से होने वाली आय में कमी के चलते, अब विश्वविद्यालय के इस कदम से पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों को मछली पालन के जरिए आर्थिक मुनाफा होने की उम्मीद जगी है।
इस साल, जंतु विज्ञान विभाग ने अपनी फिश हैचरी में लगभग 3 क्विंटल पंगास, रोहू, ग्रास कार्प और कॉमन कार्प मछलियों का उत्पादन किया है। विभाग ने न केवल छात्रों को बल्कि किसानों को भी मछली पालन का प्रशिक्षण दिया है ताकि वे पारंपरिक खेती के साथ इस क्षेत्र में भी अपने कदम जमा सकें।
स्वरोजगार की दिशा में अहम कदम
विभाग के प्रमुख प्रोफेसर आर.एस. फर्त्याल ने बताया कि उनके द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों को मछली पालन की ओर प्रोत्साहित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि पंगास, जयंती रोहू और कॉमन कार्प जैसी मछलियों का उत्पादन यहां किया जा रहा है, जिससे किसानों को अतिरिक्त आमदनी के स्रोत मिल सकें। इसके साथ ही, विश्वविद्यालय के छात्रों को भी मछली पालन के बारे में सिखाया जा रहा है, ताकि वे अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद खुद का व्यवसाय शुरू कर सकें।
छात्रों को मिल रहा प्रैक्टिकल अनुभव
एमएससी के छात्र अजय भूषण ने बताया कि विभाग में उन्हें मछली पालन और तालाब प्रबंधन के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है। हैचरी होने के कारण उन्हें यहां पर प्रैक्टिकल अनुभव प्राप्त होता है, जिससे वे न केवल तकनीकी ज्ञान बल्कि बाजार में मछलियों की बिक्री के संबंध में भी जानकारी हासिल कर रहे हैं।
पंगास मछली से जल्दी मुनाफा
प्रोफेसर फर्त्याल ने कहा कि पंगास मछली लगभग 6 महीने में बाजार के लिए तैयार हो जाती है, जिससे किसानों को जल्दी मुनाफा होता है। उन्होंने बताया कि वे अब तक 2 से 3 दिनों में 40 किलो मछलियां बाजार में बेच चुके हैं। मछली पालन करने वाले किसानों को इससे जल्दी लाभ मिल सकता है और जो किसान इस क्षेत्र में प्रशिक्षण लेना चाहते हैं, वे विश्वविद्यालय में आकर इस विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
किसानों के लिए नया अवसर
उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में जहां पारंपरिक खेती से पर्याप्त आमदनी नहीं हो पा रही है, ऐसे में गढ़वाल विश्वविद्यालय का यह प्रयास किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर बन रहा है। मछली पालन के जरिए किसान न केवल अपने आर्थिक हालात सुधार सकते हैं, बल्कि कृषि और मत्स्य पालन के मेल से नई संभावनाओं का निर्माण कर सकते हैं।