Uttarakhand Development: डेमोग्राफिक डिविडेंड पर उत्तराखंड का फोकस, अगले 10 साल होंगे निर्णायक, नीति आयोग की बैठक में सीएम धामी ने जताई चिंता
उत्तराखंड के पास अगले 10 वर्षों तक डेमोग्राफिक डिविडेंड का अधिकतम लाभ उठाने का सुनहरा अवसर है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नीति आयोग की बैठक में इस विषय पर विशेष जोर दिया। राज्य सरकार आत्मनिर्भरता और युवाओं को सशक्त बनाने के लिए विभिन्न योजनाओं पर कार्य कर रही है।
Uttarakhand Development: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हाल ही में आयोजित नीति आयोग की 10वीं शासी परिषद बैठक में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य की जनसांख्यिकीय स्थिति को लेकर महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए। उन्होंने खासतौर पर डेमोग्राफिक डिविडेंड यानी जनसांख्यिकीय लाभांश को लेकर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि उत्तराखंड के पास इस लाभ को प्राप्त करने के लिए अब सिर्फ अगले दस वर्ष ही शेष हैं।
क्या होता है डेमोग्राफिक डिविडेंड?
डेमोग्राफिक डिविडेंड उस स्थिति को कहा जाता है जब किसी क्षेत्र की कार्यशील उम्र (15-64 वर्ष) की आबादी आश्रित आबादी—जैसे बच्चे और वृद्धजनों—से अधिक हो जाती है। इस स्थिति में देश या राज्य को आर्थिक विकास का अवसर मिलता है क्योंकि अधिक लोग कार्यशील होते हैं, जिससे उत्पादकता, बचत और निवेश में वृद्धि होती है।
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उत्तराखंड की स्थिति क्यों है चिंताजनक?
उत्तराखंड में कार्यशील जनसंख्या अभी तो अधिक है, लेकिन घटती प्रजनन दर के चलते भविष्य में युवाओं की संख्या कम और वृद्धों की संख्या अधिक होने का खतरा बना हुआ है। रजिस्ट्रार जनरल द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, राज्य का कुल प्रजनन दर 2020 में 1.8 था, जो कि जनसंख्या स्थिरता के लिए आवश्यक 2.1 की दर से कम है।
क्यों हैं अगले 10 साल महत्वपूर्ण?
नीति आयोग की बैठक में सीएम धामी ने इस बात पर जोर दिया कि उत्तराखंड के पास डेमोग्राफिक डिविडेंड का अधिकतम लाभ उठाने का समय सीमित है। यदि इस अवधि में सही नीतियों और योजनाओं को लागू नहीं किया गया, तो राज्य इस जनसांख्यिकीय अवसर को गंवा सकता है। खासतौर पर तब जब देश में उम्रदराज लोगों की संख्या बढ़ रही हो।
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स्वरोजगार और कौशल विकास पर सरकार का जोर
सरकार का मानना है कि रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा कर और स्वरोजगार को बढ़ावा देकर राज्य डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ उठा सकता है। नियोजन विभाग के प्रमुख सचिव आर. मीनाक्षी सुंदरम ने बताया कि नीति और कार्यक्रम के माध्यम से युवाओं को प्रशिक्षित कर उत्पादक कार्यों में शामिल करना आवश्यक होगा।
विशेषज्ञों की चेतावनी
वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत के अनुसार, उत्तराखंड की प्रजनन दर में गिरावट राज्य के लिए एक दोधारी तलवार साबित हो सकती है। एक ओर जहां यह जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में अच्छी बात मानी जाती है, वहीं दूसरी ओर भविष्य में बुजुर्गों की बढ़ती संख्या आर्थिक विकास की रफ्तार को धीमा कर सकती है।
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राज्य के सामने प्रमुख चुनौतियां
उत्तराखंड की भौगोलिक जटिलताएं, आपदाओं की आशंका, सीमित औद्योगिक विकास और पलायन जैसी समस्याएं पहले से ही सामने हैं। इसके अतिरिक्त, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा ढांचे को भी मजबूत करने की जरूरत है ताकि जनसांख्यिकीय परिवर्तन का पूरा लाभ मिल सके।
अन्य राज्यों की तुलना में उत्तराखंड की स्थिति
देश के अन्य राज्यों जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल की तुलना में उत्तराखंड के पास डेमोग्राफिक डिविडेंड का लाभ उठाने का समय अपेक्षाकृत कम बचा है। दक्षिण भारतीय राज्य पहले ही इस अवसर का उपयोग कर चुके हैं। ऐसे में उत्तराखंड के लिए यह एक ‘अब नहीं तो कभी नहीं’ की स्थिति बन चुकी है।
राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह आगामी दशक में प्रभावी नीतियां बनाकर युवाओं को उत्पादक कार्यों से जोड़े। शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वरोजगार और कौशल विकास को प्राथमिकता देकर ही राज्य इस जनसांख्यिकीय अवसर को आर्थिक विकास में बदल सकता है। यदि यह सही दिशा में किया गया, तो उत्तराखंड न केवल अपनी आर्थिकी को मजबूती देगा, बल्कि भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में भी अहम योगदान देगा।
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