Uttarakhand Panchayat Elections: उत्तराखंड की त्रिस्तरीय पंचायतें संकट में, प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त, चुनाव की राह धुंधली
उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद पंचायतें मुखिया विहीन हो गई हैं। अब सबकी नजरें 4 जून को होने वाली कैबिनेट बैठक पर टिकी हैं, जहां स्थिति स्पष्ट होने की उम्मीद है।
Uttarakhand Panchayat Elections: उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था गहरे संकट में है। प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है और पंचायत चुनावों की कोई ठोस तिथि अब तक घोषित नहीं की गई है। पहली बार राज्य में ग्राम पंचायतें, क्षेत्र पंचायतें और जिला पंचायतें पूरी तरह से मुखिया विहीन हो गई हैं।
प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त, पंचायती तंत्र बिना नेतृत्व के
एक जून 2025 को प्रदेश के 12 जिलों की पंचायतों में कार्यरत प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त हो गया, जिससे ये पंचायतें अब संवैधानिक रूप से शून्य स्थिति में हैं। हरिद्वार को छोड़कर सभी जिलों की पंचायतें प्रशासकों के हवाले थीं, जिन्हें नवंबर 2024 में पंचायतों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद नियुक्त किया गया था। अब इन प्रशासकों का समय भी पूरा हो गया है और सरकार ने अभी तक कोई वैकल्पिक निर्णय नहीं लिया है।
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प्रशासक नियुक्ति में देरी से प्रशासनिक गतिरोध
सामान्य रूप से पंचायत कार्यकाल समाप्त होते ही नए प्रशासकों की नियुक्ति की जाती रही है, लेकिन इस बार प्रशासकों के कार्यकाल को आगे नहीं बढ़ाया गया। इससे गांव से लेकर जिला स्तर तक विकास कार्य और योजनाओं का संचालन प्रभावित हो रहा है। अब चार जून को होने वाली राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में स्थिति स्पष्ट होने की उम्मीद की जा रही है।
राजभवन से अध्यादेश पर सहमति का इंतजार
सरकार ने पंचायती राज अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव बनाकर राजभवन को भेज दिया है ताकि प्रशासकों का कार्यकाल छह महीने तक बढ़ाया जा सके। हालांकि, राजभवन द्वारा अभी विधिक परीक्षण जारी है और अनुमति नहीं दी गई है। इस प्रक्रिया के पूरा होते ही सरकार प्रशासकों की पुनर्नियुक्ति कर सकेगी और चुनावी तैयारियों को गति दे पाएगी।
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ओबीसी आरक्षण को मिली मंजूरी, अब कैबिनेट बैठक पर नजर
पंचायती राज विभाग के अनुसार, ओबीसी आरक्षण से संबंधित प्रस्ताव को राज्यपाल की मंजूरी मिल चुकी है और अब विभाग ने पंचायत चुनावों के लिए आरक्षण प्रक्रिया लगभग पूरी कर ली है। इस प्रस्ताव को चार जून को कैबिनेट की बैठक में प्रस्तुत किया जाएगा। इससे पंचायत चुनावों की दिशा में स्थिति अधिक स्पष्ट हो सकेगी।
सरकार ने हाईकोर्ट में किया था वादा
राज्य सरकार ने नैनीताल हाईकोर्ट में शपथ पत्र देकर यह जानकारी दी थी कि 15 जुलाई 2025 तक हरिद्वार को छोड़कर शेष सभी 12 जिलों में पंचायत चुनाव करा लिए जाएंगे। अब देखना यह है कि सरकार अपने इस वादे को कैसे निभाती है।
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वरिष्ठ पत्रकार का दृष्टिकोण
वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत का कहना है कि संविधान के 73वें संशोधन का उद्देश्य ग्रामीण स्तर पर सशक्त स्थानीय शासन को बढ़ावा देना था। पंचायतों को संवैधानिक दर्जा और पांच साल का कार्यकाल दिया गया, साथ ही कार्यकाल खत्म होने पर छह महीने के लिए प्रशासक नियुक्त करने की व्यवस्था की गई थी। लेकिन अनिश्चितकाल के लिए प्रशासक नियुक्त करने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। यह स्थिति संविधान की भावना के खिलाफ है।
कांग्रेस का आरोप: सरकार कर रही है पंचायतों को कमजोर
पंचायत चुनावों में हो रही देरी पर कांग्रेस ने सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। पार्टी प्रवक्ता शीशपाल बिष्ट ने कहा कि भाजपा सरकार पंचायत चुनावों को लेकर गंभीर नहीं है। न समय पर नगर निकाय चुनाव हुए, न पंचायत चुनाव। अब प्रशासकों का कार्यकाल भी समाप्त हो गया है लेकिन चुनाव की तिथि अब तक घोषित नहीं की गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार पंचायतों को जानबूझकर कमजोर करना चाहती है।
मुख्यमंत्री ने दी सफाई, कहा- सरकार चुनाव को तैयार
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि राज्य सरकार पंचायत चुनाव कराने के लिए पूरी तरह से तैयार है। जैसे ही राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव की तिथि घोषित करेगा, सरकार प्रक्रिया को आगे बढ़ाएगी। सरकार की मंशा पंचायतों को मजबूत करने की है, न कि कमजोर करने की।
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