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Bangladesh Students Protest :बांग्लादेश में क्यों उतारनी पड़ी सेना, पड़ोस में आपातकाल जैसी स्थिति क्यों?

Bangladesh Students Protest : भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए हैं। छात्र इन दिनों सड़कों पर उतर गए हैं। 2018 से आरक्षण का विरोध करने वाले 2 महत्वपूर्ण छात्र आंदोलन हुए हैं। आइए इस लेख के माध्यम से जानते हैं आरक्षण के खिलाफ़ बांग्लादेश में विरोध प्रदर्शनों के पीछे क्या कारण हैं। प्रधानमंत्री शेख हसीना के “रज़ाकार” कहने पर क्यों भड़के छात्र? छात्र किन मुद्दों पर सबसे ज़्यादा मुखर होकर विरोध कर रहे हैं?

आपको बता दें बांग्लादेश में आरक्षण का विरोध और भी उग्र होता जा रहा है। छात्र हिंसक विरोध प्रदर्शन में बसों और अन्य वाहनों में आग लगा रहे हैं। देश की इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं। सभी मेट्रो, ट्रेनें और बसें बंद हैं। नियंत्रण बनाए रखने के लिए सेना आगे बढ़ रही है। कहा जा रहा हैं इन हिंसक दंगों में 2500 से अधिक लोग घायल हुए हैं और कम से कम 39 लोगो की मौत हुई हैं। आरक्षण का विरोध करने वाले बांग्लादेशी छात्रों द्वारा हाल ही में किया गया प्रदर्शन तब हिंसक हो गया जब पीएम शेख हसीना (PM Sheikh Hasina) ने प्रदर्शनकारियों को “रजाकार” कहा।

दरअसल विरोध प्रदर्शनों के बारें मे जानने के लिए हमें 1947 के भारत में वापस जाना होगा। बता दें डॉ. के.एम. मुंशी, जिन्होंने आजादी से पहले हैदराबाद में भारत के एजेंट जनरल के रूप में काम किया था. उन्होने अपनी पुस्तक “द एंड ऑफ़ एन एरा (हैदराबाद मेमोयर्स)” में लिखा कि भारत की आजादी के बाद देश के सामने कश्मीर मुद्दे जैसी कई समस्याएं थीं। किसी तरह की फसाद से बचने के लिए निजाम हैदराबाद और भारत सरकार के बीच स्टैंडस्टिल समझौता हुआ। इसमें अलग देश की मांग कर रहे निजाम को कुछ छूट देने की बात थी। पूरे साल के इस समझौते के बीच उस्मान अली ( Usman Ali) के रजाकारों (Razakars) ने जमकर आतंक मचाया। निजाम के बोलने पर ये रजाकार कत्लेआम करते और हैदराबाद (Hydrabad) की 85% हिंदू आबादी की औरतों के साथ रेप करते। बहुत से लोगों को धर्मांतरण करने पर मजबूर करते।
रजाकारों के नेता ने भारत को दी थी धमकी

पूर्व राज्य सचिव वी.पी. मेनन द्वारा लिखी गई किताब ‘द इंटीग्रेशन ऑफ स्टेट्स’ में रजाकारों के नेता कासिम रिजवी द्वारा दिए गए भाषण से लिया गया एक अंश है। कासिम ने भड़काऊ तरीके से घोषणा की थी कि यदि भारत हैदराबाद में घुसने की कोशिश करेगा तो उसे 1.5 करोड़ हिंदुओं की राख और हड्डियों के अलावा कुछ नहीं मिलेगा। इसके बाद, 13 सितंबर, 1948 को भारतीय सेना ने ऑपरेशन पोलो को अंजाम दिया, जिससे निजाम के रजाकारों की बर्बर सेना को झुकना पड़ा। वास्तव में, “रजाकार” शब्द का फ़ारसी में अर्थ “स्वयंसेवक” होता है। हालाँकि, अब इसे अपमानजनक वाक्यांश के रूप में देखा जाता है।

56% कोटा सिस्टम का क्या हैं

1971 में बांग्लादेश मे 56% कोटा प्रणाली लागू की गई। स्वतंत्रता सेनानियों के रिश्तेदारों को सरकारी पदों में 56 प्रतिशत आरक्षण का 30 प्रतिशत मिला, महिलाओं को 10 प्रतिशत मिला, अविकसित क्षेत्रों के निवासियों को 10 प्रतिशत मिला, स्वदेशी लोगों को 5 प्रतिशत मिला और विकलांग व्यक्तियों को 1 प्रतिशत मिला। भारत की तरह, बांग्लादेश में भी सरकारी नौकरी को आय का एक विश्वसनीय स्रोत माना जाता है। हर साल, लगभग 4 लाख स्नातक सरकारी पदों में 3,000 पदों पर सरकारी नौकरी पाने के लिए परीक्षा देते हैं।

2018 में खत्म हुआ था 56 % कोटा

1971 से चली आ रही 56 प्रतिशत आरक्षण व्यवस्था के खिलाफ़ 2018 में छात्रों ने सड़कों पर उतरकर विरोध जताया। चार महीने तक चले इस प्रदर्शन ने अधिकारियों को झुकने पर मजबूर कर दिया। सरकार ने पूरा आरक्षण खत्म कर दिया था।
क्यों किया जा रहा है प्रदर्शन ?

पिछले साल यानि 2023 जून में बांग्लादेश की एक कोर्ट ने आरक्षण का समर्थन करते हुए एक फ़ैसला सुनाया था। उसी समय, ढाका सुप्रीम कोर्ट ने घोषणा की थी कि सभी वापस लिए गए आरक्षणों को फिर से बहाल किया जाना चाहिए। छात्रों ने अब अदालत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया है। छात्रों का दावा है कि 56% आरक्षण स्वीकार नहीं किया जाएगा। स्वतंत्रता सेनानियों को दिया गया 30% आरक्षण देना उचित नहीं है। दावा किया जा रहा है कि बांग्लादेश के जंग के हीरो अब बूढ़े हो चुके हैं। उनके बच्चे भी बड़े हो गए हैं। ऐसी स्थिति में उनके नाती-नातिनों को आरक्षण देना कोई मतलब नहीं रखता। सरकारी पद केवल योग्यता के आधार पर लोगों को दिए जाने चाहिए।

कोटा सिस्टम पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई अस्थायी रोक

देश के सुप्रीम कोर्ट ने प्रदर्शनों के जवाब में 10 जुलाई को सरकारी पदों पर आरक्षण नीति को अस्थायी रूप से रोक दिया। ऐसा माना जा रहा है कि जब तक यह व्यवस्था समाप्त नहीं हो जाती, तब तक विरोध प्रदर्शन जारी रहेंगे। बांग्लादेशी अदालत इस मामले की 7 अगस्त को फिर से सुनवाई करेगी।

Written By । Prachi Chaudhary । Nationa Desk । Delhi

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