Gujarat Politics: कांग्रेस के लिए विचारधारात्मक युद्धभूमि क्यों बना यह राज्य
पिछले तीन दशकों से गुजरात कांग्रेस के लिए एक बड़ा चुनावी और वैचारिक संघर्ष बना हुआ है, जहां भाजपा ने मजबूत संगठन और प्रभावी नैरेटिव के ज़रिए अपनी पकड़ बनाई है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में विकास और हिंदुत्व की राजनीति ने राज्य की दिशा बदल दी। कांग्रेस जमीनी संगठन की कमजोरी, स्पष्ट नेतृत्व की कमी और जातीय-सांप्रदायिक रणनीतियों का जवाब न दे पाने के कारण पिछड़ती रही है।
Gujarat Politics: गुजरात भारतीय राजनीति में एक ऐसा राज्य बन गया है जहां कांग्रेस पार्टी पिछले तीन दशकों से जीत का स्वाद नहीं चख सकी है। 1995 से लेकर अब तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने गुजरात में अपनी पकड़ लगातार मजबूत की है और कांग्रेस की उपस्थिति धीरे-धीरे कमजोर होती गई है। यह केवल चुनावी हार नहीं, बल्कि विचारधारात्मक स्तर पर भी एक गहरा संघर्ष बन गया है।
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व ने बदला राज्य की राजनीतिक पहचान
गुजरात की राजनीति में 2001 के बाद से बड़ा बदलाव तब आया जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री बने। उन्होंने न केवल भाजपा को संगठित किया, बल्कि हिंदुत्व और विकास के मॉडल को जोड़कर एक प्रभावशाली नैरेटिव तैयार किया। इस विचारधारा ने गुजरात की जनता को व्यापक स्तर पर आकर्षित किया और कांग्रेस उस संदेश का कोई ठोस जवाब नहीं दे सकी। इससे भाजपा की जड़ें और भी मजबूत होती गईं।
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कांग्रेस की रणनीतिक कमजोरी और जमीनी संगठन का अभाव
गुजरात में कांग्रेस की हार का एक बड़ा कारण उसकी रणनीतिक कमजोरी और जमीनी संगठन की कमजोरी भी है। पार्टी ने समय-समय पर नेतृत्व बदला, लेकिन कार्यकर्ताओं में स्पष्टता और जोश की कमी बनी रही। युवा मतदाता, जो बदलाव की चाहत रखते हैं, उन्हें कांग्रेस ने न तो दिशा दी और न ही उम्मीद। यही कारण है कि भाजपा का संगठनात्मक ढांचा और कैडर-आधारित राजनीति कांग्रेस पर भारी पड़ी।
जातीय और सांप्रदायिक समीकरणों का जटिल खेल
गुजरात में चुनावी राजनीति केवल विकास के मुद्दों पर नहीं चलती, बल्कि जातीय और सांप्रदायिक समीकरणों का भी गहरा प्रभाव होता है। भाजपा ने ओबीसी, पाटीदार और अन्य समुदायों को अपने साथ जोड़ने में सफलता हासिल की, जबकि कांग्रेस इन वर्गों को स्थायी रूप से अपने पक्ष में लाने में विफल रही। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के मुद्दों पर भाजपा ने जिस तरह का नैरेटिव खड़ा किया, कांग्रेस उसका जवाब देने में लगातार पिछड़ती रही।
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शहरी और ग्रामीण वोट बैंक में भाजपा की बढ़त
कांग्रेस परंपरागत रूप से ग्रामीण वोट बैंक पर निर्भर रही है, लेकिन बीते वर्षों में भाजपा ने ग्रामीण क्षेत्रों में भी योजनाओं और लाभार्थी मॉडल के ज़रिए अपनी पकड़ मजबूत की है। शहरी क्षेत्रों में भाजपा की पकड़ पहले से ही मजबूत थी, जिससे कांग्रेस को कहीं भी निर्णायक बढ़त नहीं मिल सकी। नतीजतन, कांग्रेस लगातार जनाधार खोती गई।
युवा नेतृत्व और नए प्रयोगों की कमी
राज्य में कांग्रेस ने युवा नेतृत्व को उतनी जगह नहीं दी जितनी जरूरत थी। जब-जब नए चेहरों को मौका दिया गया, तब-तक उनके पास पूरा समर्थन नहीं रहा। हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी जैसे नामों के साथ कांग्रेस ने नए प्रयोग किए, लेकिन वे भी टिकाऊ साबित नहीं हुए। इसके विपरीत, भाजपा ने नए चेहरों को आगे लाकर भरोसा कायम रखा।
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क्या 2027 में बदलेगा समीकरण?
अब सवाल यह है कि क्या कांग्रेस आने वाले विधानसभा चुनावों में कुछ नया कर पाएगी? इसके लिए उसे केवल रणनीति ही नहीं, बल्कि वैचारिक तौर पर भी खुद को फिर से परिभाषित करना होगा। एक मजबूत संगठन, स्पष्ट नेतृत्व और ज़मीनी स्तर पर विश्वसनीयता कांग्रेस को फिर से गुजरात की राजनीति में प्रासंगिक बना सकती है।
गुजरात कांग्रेस के लिए केवल एक राज्य नहीं, बल्कि एक वैचारिक चुनौती बन चुका है। यहां जीत हासिल करने के लिए नारेबाजी से आगे बढ़कर एक गहन और दीर्घकालिक दृष्टिकोण की ज़रूरत है।
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