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Mahakumbh 2025 Naga Sadhu Snan: महाकुंभ में सबसे पहले नागा साधु क्यों करते है शाही स्नान? 265 साल पुरानी है कहानी

महाकुंभ में सबसे पहले शाही स्नान नागा साधुओं ने किया। उसके बाद बाकी लोगों ने गंगा में स्नान किया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सबसे पहले शाही स्नान नागा साधु ही क्यों करते हैं? इसके पीछे कई अलग-अलग मान्यताएं हैं। इसके अलावा 265 साल पुरानी एक कहानी भी है।

Mahakumbh 2025 Naga Sadhu Snan: प्रयागराज में 45 दिनों तक चलने वाले महाकुंभ के चौथे दिन श्रद्धालुओं ने त्रिवेणी संगम में आस्था की डुबकी लगाई। दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक समागम में 6 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। माना जा रहा है कि तीसरे शाही स्नान पर 10 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु प्रयागराज पहुंचेंगे। सबसे पहले शाही स्नान नागा साधु करते हैं। उसके बाद दूसरे लोगों को शाही स्नान की इजाजत दी जाती है। आपके मन में ये सवाल जरूर आया होगा कि आखिर सबसे पहले शाही स्नान नागा साधु ही क्यों करते हैं? तो चलिए आपको बताते हैं वो 265 साल पुरानी कहानी।

यदुनाथ सरकार अपनी पुस्तक ‘दशनामी नागा संन्यासियों का इतिहास’ में लिखते हैं- ‘कुंभ में सबसे पहले स्नान कौन करेगा, इस पर हमेशा विवाद रहा है। नागा साधुओं और वैरागी साधुओं के बीच खूनी युद्ध हुए हैं। 1760 के हरिद्वार कुंभ के दौरान नागा और वैरागी आपस में इस बात पर लड़ पड़े कि सबसे पहले स्नान कौन करेगा। दोनों तरफ से तलवारें निकल आईं। सैकड़ों वैरागी साधु मारे गए।’

1789 के नासिक कुंभ में फिर यही स्थिति बनी और वैष्णवों का खून बहा। इस खून-खराबे से परेशान होकर वैष्णवों के चित्रकूट खाकी अखाड़े के मुख्य पुजारी बाबा रामदास ने पुणे के पेशवा दरबार में शिकायत की। 1801 में पेशवा दरबार ने नासिक कुंभ में नागाओं और वैष्णवों के लिए अलग-अलग व्यवस्था करने का आदेश दिया। नागाओं को त्र्यंबक में कुशावर्त-कुंड और वैष्णवों को नासिक में रामघाट दिया गया। उज्जैन कुंभ में वैष्णवों को शिप्रा के किनारे रामघाट और नागाओं को दत्तघाट दिया गया।

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ब्रिटिश शासन के बाद हुआ इसका समाधान

इसके बाद भी हरिद्वार और प्रयाग में सबसे पहले स्नान कौन करेगा, इस पर विवाद जारी रहा। कुंभ पर ब्रिटिश शासन के बाद यह तय हुआ कि सबसे पहले शैव नागा साधु स्नान करेंगे और उसके बाद वैष्णव स्नान करेंगे। इतना ही नहीं, शैव अखाड़े आपस में न लड़ें, इसके लिए अखाड़ों का क्रम भी तय किया गया। यह परंपरा तब से लेकर आज तक चली आ रही है।

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हम सबसे पहले क्यों करते हैं नागा स्नान?

वहीं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब समुद्र मंथन से निकले अमृत कलश की रक्षा के लिए देवता और दानव आपस में लड़ रहे थे, तब कुंभ के 4 स्थानों (प्रयागराज, उज्जैन, हरिद्वार और नासिक) पर अमृत की 4 बूंदें गिरी थीं। इसके बाद से यहां महाकुंभ मेले की शुरुआत हुई। नागा साधुओं को भोले बाबा का अनुयायी माना जाता है और भोले शंकर की तपस्या और पूजा के कारण ही नागा साधुओं को यह स्नान सबसे पहले करने वाला माना गया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि अमृत स्नान पर पहला अधिकार नागा साधुओं का होता है। नागा स्नान को धर्म और आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र माना जाता है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार, ऐसा भी कहा जाता है कि जब आदि शंकराचार्य ने धर्म की रक्षा के लिए नागा साधुओं की टोली बनाई तो अन्य साधुओं ने आगे आकर धर्म की रक्षा करने वाले नागा साधुओं को पहले स्नान करने के लिए आमंत्रित किया। चूंकि नागा भोले शंकर के उपासक हैं, इसलिए उन्हें पहले स्नान का अधिकार दिया गया। तब से यह परंपरा चली आ रही है।

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संस्कृति का महाकुंभ

14 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर साढ़े तीन करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने पवित्र डुबकी लगाई। दस देशों का 21 सदस्यीय दल डुबकी लगाने संगम पहुंचा। इससे पहले विदेशी दल ने रात्रि में अखाड़ों के संतों के दर्शन भी किए। महाकुंभ में 16 जनवरी से 24 फरवरी तक ‘संस्कृति का महाकुंभ’ लगेगा। मुख्य मंच गंगा पंडाल का होगा, जिसमें देश के नामचीन कलाकार भारतीय संस्कृति की छटा बिखेरेंगे।

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Written By। Chanchal Gole। National Desk। Delhi

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