भारतीय संविधान और अदालतों पर जमीयत उलेमा-ए-हिन्द को भरोसा क्यों नहीं ? जमीयत के कई प्रस्ताव राष्ट्रीय एकता को खतरा !
देवबंद (सहारनपुर) जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी की अध्यक्षता में यहां ईदगाह मैदान में हुए दो दिवसीय सम्मलेन में देश भर से आये पांच हजार मुस्लिम बुद्धिजीवी और धर्मगुरुओं ने सम्मेलन के अंतिम दिन जो प्रस्ताव पास किये हैं, वे निश्चय ही राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा पैदा करने वाले हैं। जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के प्रस्तावों से देश में हिन्दू-मुस्लिम एकता, सद्भाव और सौह्रार्द पूर्ण माहौल बनाये रखने में परेशानी हो सकती है।
ऐसा लगता है कि जमीयत उलेमा-ए-हिन्द को भारतीय संविधान और अदालतों पर भरोसा नहीं है, तभी तो वक्ताओं ने कहा कि वे शरीयत के कानूनों में दखल बर्दाश्त नहीं करेगें। जब भारत में शरीयत कानून लागू ही नहीं है, उनका यह कहना भारतीय संविधान का अपमान है। बैठक में कहा गया है कि मुस्लिम किसी भी सूरत में समान नागरिक संहिता को बर्दाश्त नहीं करेंगे, इसका सीधा सा मतलब है कि यदि राज्य सरकारें अथवा केन्द्र सरकार समान नागरिक संहिता लागू करती है तो अल्पसंख्यक मुसलमान इसका विरोध करके सरकारों को खिलाफ आवाज उठायेंगे।
यहां पढें-मौलाना महमूद मदनी ने दिया विवादास्पद बयान, कहा- ‘हमारा मजहब बर्दाश्त नहीं, तो तुम पाकिस्तान चले जाओ’
जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के दो दिवसीय सम्मेलन के अंतिम दिन वक्ताओं ने कहा कि देश में धार्मिक मसलों पर गड़े मुर्दों को उखाड़ना सही नहीं है। शायद उन्हें डर सता रहा है कि जिस तरह से वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में अदालत के आदेश पर हुए सर्वे में मस्जिद के स्थान पर मंदिर होने के पुख्ता सबूत मिलने पर दूसरी जगहों पर सर्वे होने की मांग करने के लिए हिन्दू पक्ष के लोग अदालतों की शरण में जा रहे हैं, इससे मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा हिन्दू संस्कृति और मंदिरों को ध्वस्त करने की सच्चाई दुनिया के सामने आ सकती है।
उनकी ये दलील भी इस्लामिक सोच से प्रभावित है कि इतिहास के मतभेदों को जिंदा रखना ठीक नहीं, जबकि हिन्दू समाज इतिहास की पुरानी गलतियों को सुधारने जाने की वकालत कर रहा है।
ये मुस्लिम धर्मगुरु पूजा स्थल संबंधी 1991 एक्ट का समर्थन कर रहे हैं, जबकि इस एक्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं। याचिकाकर्ताओं ने सिख, बौद्ध, जैन आदि अल्प संख्यकों के धार्मिक अधिकारों को हनन बताया है। मुस्लिम धर्मगुरु केवल इस्लामिक सोच के साथ देश और भारतीय संविधान को चलाना चाहते हैं, जो कभी संभव नहीं हो सकता।