Mango Export News: तुर्की को नहीं मिलेगा अब भारत का स्वाद, जवाहर बाग के आमों पर किसानों ने लगाया बैन
उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध जवाहर बाग के आम जो अब तक अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी मिठास और गुणवत्ता के लिए मशहूर थे, इस बार तुर्की नहीं भेजे जाएंगे। इसके पीछे कोई उत्पादन समस्या नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों का तुर्की के खिलाफ खुला विरोध है।
Mango Export News: उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध जवाहर बाग के आम जो अब तक अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी मिठास और गुणवत्ता के लिए मशहूर थे, इस बार तुर्की नहीं भेजे जाएंगे। इसके पीछे कोई उत्पादन समस्या नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों का तुर्की के खिलाफ खुला विरोध है। यह फैसला आम उत्पादकों और व्यापारियों ने मिलकर लिया है, जो तुर्की के हालिया बयानों और रुख से नाराज हैं।
क्या है मामला?
हाल ही में तुर्की सरकार द्वारा भारत के खिलाफ कुछ राजनीतिक मंचों पर दिए गए बयान को लेकर देशभर में नाराजगी देखी गई। कई संगठनों और नागरिक समूहों ने तुर्की के रवैये की आलोचना की और इसका विरोध विभिन्न माध्यमों से किया। उसी क्रम में, मथुरा के आम उत्पादकों ने तुर्की को आम निर्यात बंद करने का निर्णय लिया है। उनका मानना है कि जो देश भारत विरोधी रुख अपनाता है, उसे हमारे खेतों की मिठास नसीब नहीं होनी चाहिए।
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किसानों की भावनाएं
जवाहर बाग के किसानों ने इस निर्णय का समर्थन करते हुए कहा कि यह केवल आम का व्यापार नहीं, बल्कि देशभक्ति का विषय है। उनका कहना है कि वे अपने आम को उन देशों में नहीं भेजेंगे जो भारत की संप्रभुता और एकता पर सवाल उठाते हैं। कई किसानों ने सोशल मीडिया पर भी अपने स्टैंड को जाहिर किया है।
व्यापार पर असर
यह फैसला तुर्की के व्यापारियों के लिए एक बड़ा झटका हो सकता है, क्योंकि भारत से हर साल हजारों टन आम वहां भेजे जाते थे। जवाहर बाग के आम, विशेष रूप से दशहरी और लंगड़ा किस्म, तुर्की में काफी पसंद किए जाते थे। अब यह व्यापारिक संबंध एक ठहराव की ओर जाता दिख रहा है।
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स्थानीय समर्थन
मथुरा और आस-पास के क्षेत्रों में इस फैसले को व्यापक समर्थन मिल रहा है। व्यापार मंडल, किसान संगठन और स्थानीय जनता ने इस बहिष्कार को राष्ट्रहित में उठाया गया साहसिक कदम बताया है।
जवाहर बाग के आमों का तुर्की को निर्यात रोकना सिर्फ एक व्यापारिक फैसला नहीं है, बल्कि यह भारत के लोगों की सामूहिक भावनाओं का प्रतीक बन गया है। यह उदाहरण बताता है कि जब बात देश की अस्मिता और सम्मान की हो, तो किसान भी पीछे नहीं हटते। यह फैसला भले ही आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण हो, लेकिन आत्मसम्मान और राष्ट्रभक्ति की दृष्टि से यह एक मिसाल बन गया है।
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