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Uttarakhand Panchayat Elections: उत्तराखंड में पंचायत चुनाव से पहले बड़ा फैसला, मंत्रिमंडलीय उप समिति ने OBC आरक्षण पर लिया अंतिम निर्णय

उत्तराखंड सरकार ने पंचायत चुनावों में ओबीसी आरक्षण को लेकर उत्पन्न संवैधानिक संकट को सुलझाने के लिए कैबिनेट उप समिति का गठन किया। समिति ने पूर्व में बनी आयोग की रिपोर्ट की समीक्षा कर अंतिम निर्णय ले लिया है। यह निर्णय आगामी कैबिनेट बैठक में प्रस्तुत किया जाएगा, जिससे पंचायत चुनाव की राह साफ हो सकती है।

Uttarakhand Panchayat Elections: उत्तराखंड की त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था एक संवैधानिक संकट के दौर से गुजर रही है। चुनाव में लगातार देरी और आरक्षण को लेकर उठ रहे सवालों के बीच अब सरकार की ओर से बड़ा कदम उठाया गया है। ओबीसी आरक्षण को लेकर गठित मंत्रिमंडलीय उप समिति ने अपना कार्य पूरा कर लिया है और अंतिम निर्णय भी ले लिया गया है। समिति की सिफारिशें जल्द ही मुख्यमंत्री को सौंपी जाएंगी, जिसके बाद 11 जून को होने वाली कैबिनेट बैठक में प्रस्ताव लाकर अंतिम निर्णय लिया जा सकता है।

कोर्ट के दबाव और संवैधानिक संकट के बीच सरकार की तेजी

पंचायत चुनावों को लेकर कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों के बीच सरकार पर दबाव लगातार बढ़ता जा रहा था। एक तरफ प्रतिनिधियों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, वहीं दूसरी ओर चुनाव ना होने से पंचायतों की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठने लगे थे।इस कारण सरकार ने ओबीसी आरक्षण से जुड़ी चुनावी बाधा को दूर करने हेतु वन मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में एक कैबिनेट उप समिति का गठन किया।

पूर्व गठित आयोग की रिपोर्ट बनी आधार

गौरतलब है कि सरकार ने पहले ही पंचायत चुनावों में ओबीसी आरक्षण को लेकर एक एकल सदस्यीय समर्पित आयोग का गठन किया था, जिसने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी। लेकिन इस रिपोर्ट की सिफारिशों की गहन जांच के लिए मंत्रिमंडलीय उप समिति को जिम्मेदारी दी गई थी। अब समिति ने अपनी प्रक्रिया पूरी कर ली है और आयोग की रिपोर्ट के परीक्षण के आधार पर अंतिम निर्णय भी ले लिया गया है।

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आरक्षण की संवैधानिक सीमा का रखा गया ध्यान

भारत के संविधान के अनुसार, किसी भी स्तर पर 50% से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता। वर्तमान में अनुसूचित जाति और जनजाति को कुल मिलाकर 22% आरक्षण मिल रहा है। इस स्थिति को देखते हुए ओबीसी को अधिकतम 28% तक ही आरक्षण दिया जा सकता है। समिति ने इसी सीमा को ध्यान में रखते हुए अपनी सिफारिशें तैयार की हैं।

संभावित आरक्षण फार्मूला: अलग-अलग स्तर पर अलग मानक

जानकारों का मानना है कि उप समिति ने जो फार्मूला तैयार किया है, उसमें राज्य, जिला और ब्लॉक स्तर पर अलग-अलग आधार अपनाए जा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर:

जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए प्रदेश स्तर की ओबीसी जनगणना का आधार लिया जा सकता है।

जिला पंचायत सदस्य और ब्लॉक प्रमुख के लिए संबंधित जिले की ओबीसी जनसंख्या को ध्यान में रखा जाएगा।

बीडीसी सदस्य और ग्राम पंचायत स्तर के लिए संबंधित ब्लॉक की जनगणना के आंकड़े आधार बनेंगे।

हालांकि 2011 के बाद से कोई नई जनगणना नहीं हुई है, इसलिए सभी गणनाएं 2011 की जनगणना के आधार पर ही की जाएंगी।

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हरिद्वार को छोड़ अन्य जिलों में होंगे चुनाव

उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव हरिद्वार जिले को छोड़कर बाकी 12 जिलों में कराए जाते हैं। हरिद्वार में ये चुनाव अब भी उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग के अंतर्गत होते हैं, जबकि बाकी जिलों में राज्य सरकार के निर्देशन में चुनाव संपन्न होते हैं। राज्य में पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल पहले ही समाप्त हो चुका है और 6 महीने का विस्तार भी बीत चुका है। बावजूद इसके अब तक चुनाव नहीं कराए जा सके हैं, जिससे यह स्थिति एक संवैधानिक संकट का रूप ले चुकी है।

कैबिनेट की बैठक में हो सकता है अंतिम फैसला

मंत्रिमंडलीय उप समिति सोमवार को अपनी सिफारिशें मुख्यमंत्री को सौंपेगी। इसके बाद इन्हें 11 जून को प्रस्ताव के रूप में कैबिनेट बैठक में प्रस्तुत किया जाएगा। यदि कैबिनेट में सिफारिशें स्वीकृत होती हैं, तो ओबीसी आरक्षण को लेकर नीति स्पष्ट हो जाएगी और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव की राह भी साफ हो जाएगी।

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उत्तराखंड सरकार ने ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर गंभीरता दिखाते हुए जल्द निर्णय लेने की दिशा में अहम कदम उठाया है। यदि कैबिनेट में प्रस्ताव पारित होता है, तो पंचायत चुनाव की प्रक्रिया भी शीघ्र शुरू हो सकेगी, जिससे राज्य में लोकतांत्रिक ढांचे को फिर से मजबूती मिलेगी।

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