Kamakhya Temple: कामाख्या मंदिर, आस्था, प्रतीकवाद और मिथकों के बीच एक पवित्र यात्रा
असम के गुवाहाटी स्थित कामाख्या मंदिर में हर साल अंबुबाची मेले के दौरान लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। इस पर्व को देवी कामाख्या के मासिक धर्म और प्रजनन शक्ति का प्रतीक माना जाता है। मंदिर से जुड़े कई मिथकों जैसे ब्रह्मपुत्र का लाल होना और मानव बलि की अफवाहों को पुजारी ने सिरे से खारिज किया है।
Kamakhya Temple: असम की नीलाचल पहाड़ी पर स्थित कामाख्या मंदिर, भारत के प्रमुख शक्ति पीठों में से एक है। यह मंदिर न सिर्फ तांत्रिक परंपराओं का केंद्र है, बल्कि दिव्य स्त्री ऊर्जा की प्रतीक शक्ति की आराधना का प्राचीन स्थल भी है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहां अंबुबाची मेले के दौरान मां के दर्शन को आते हैं, जो प्रजनन, सृजन और प्रकृति के चक्र का उत्सव माना जाता है।
अंबुबाची मेला वह समय होता है जब मां कामाख्या का मासिक धर्म चक्र माना जाता है। इस दौरान मंदिर के गर्भगृह को तीन दिनों के लिए बंद कर दिया जाता है, और इसे देवी के विश्राम का काल माना जाता है। चौथे दिन मंदिर का पट खुलता है और श्रद्धालुओं को देवी का लाल वस्त्र प्रसाद के रूप में प्रदान किया जाता है, जिसे विशेष शक्ति और आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।
अफवाहों में ब्रह्मपुत्र के लाल होने की बात
हर साल मेला शुरू होते ही कुछ अफवाहें भी हवा पकड़ लेती हैं। सबसे प्रमुख मिथक यह है कि ब्रह्मपुत्र नदी का पानी अंबुबाची के दौरान लाल हो जाता है, जिसे कुछ लोग देवी के मासिक धर्म से जोड़ते हैं। कामाख्या मंदिर के कनिष्ठ मुख्य पुजारी हिमाद्री सरमा ने इस भ्रांति को स्पष्ट करते हुए कहा कि ब्रह्मपुत्र के रंग बदलने की बात पूरी तरह से काल्पनिक और वैज्ञानिक आधार से परे है।
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सरमा ने कहा कि अंबुबाची देवी की प्रजनन और सृजन शक्ति का प्रतीकात्मक उत्सव है, लेकिन नदी के रंग बदलने जैसी बातें सिर्फ जनश्रुति हैं, जिनका कोई ठोस प्रमाण नहीं है। उन्होंने आग्रह किया कि ऐसी गलत धारणाएं श्रद्धा और समझ के बीच की रेखा को कमजोर करती हैं।
लाल वस्त्र: शक्ति और प्रजनन का प्रतीक
मंदिर में तीन दिन तक गर्भगृह बंद रहने के दौरान देवी को लाल वस्त्र ओढ़ाया जाता है, जो मासिक धर्म के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। जब मंदिर दोबारा खुलता है, तो इस वस्त्र को महाप्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। यह कपड़ा देवी की दिव्यता, जीवन शक्ति और स्त्रीत्व का प्रतीक माना जाता है।
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सरमा ने यह स्पष्ट किया कि यह वस्त्र केवल प्रतीकात्मक है, इसमें कोई रक्त नहीं होता जैसा कि कुछ लोग कल्पना करते हैं। यह धार्मिक भावना और तांत्रिक परंपराओं का हिस्सा है, जिसे गलत व्याख्या करना श्रद्धालुओं के लिए अनुचित है।
अपने आप खुलने वाले दरवाजे: एक और भ्रम
एक अन्य प्रचलित मिथक यह भी है कि अंबुबाची काल के दौरान मंदिर के दरवाजे अपने आप बंद और फिर अपने आप खुल जाते हैं। सरमा ने इसे भी एक भ्रम करार देते हुए कहा कि दरवाजों को पारंपरिक विधियों के तहत पुजारी ही बंद और खोलते हैं। उन्होंने कहा कि यह शुद्ध धार्मिक अनुष्ठान है, न कि कोई चमत्कारी घटना।
मानव बलि का मिथक
कामाख्या मंदिर के साथ जुड़ा एक और भयावह मिथक है — मानव बलि का। हालांकि मंदिर प्रशासन और धार्मिक विद्वानों द्वारा बार-बार इसका खंडन किया गया है, फिर भी यह मिथक समय-समय पर लोगों के बीच उभरता रहता है। सरमा ने बताया कि मंदिर में कभी भी मानव बलि नहीं दी जाती। हालांकि कुछ विशेष तांत्रिक अनुष्ठानों के अंतर्गत बकरी, कबूतर, मछली या बत्तख की बलि दी जाती है, लेकिन यह हिंसा नहीं बल्कि परंपरा का अंग है।
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मंदिर की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाले उद्देश्य
सरमा ने यह भी चिंता जताई कि कुछ लोग अंबुबाची मेले के दौरान अपनी स्वार्थपूर्ण मंशाओं के साथ मंदिर आते हैं। वे वातावरण को अशुद्ध करने का प्रयास करते हैं, जिससे विवाद उत्पन्न होते हैं और मंदिर की पवित्रता पर आंच आती है।
जागरूकता और आस्था का संतुलन
कामाख्या मंदिर एक ऐसा स्थल है जहां आस्था और आध्यात्मिक ऊर्जा का संगम होता है। लेकिन सूचना के इस युग में यह आवश्यक है कि श्रद्धालु मिथकों और अंधविश्वास से ऊपर उठकर तथ्यों पर आधारित समझ विकसित करें। अंबुबाची जैसे पर्व प्रकृति, स्त्रीत्व और शक्ति के उत्सव हैं — इन्हें भय नहीं, बल्कि सम्मान और सत्य के साथ समझना आवश्यक है।
कामाख्या मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का प्रतीक है। इसे गलत धारणाओं, अफवाहों और भ्रांतियों से मुक्त रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। आस्था और जानकारी का संतुलन ही मंदिर की पवित्रता और प्रभाव को बनाए रखने में सहायक होगा।
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