National Doctor’s Day 2025: सफेद कोट का रहस्य और डॉक्टर्स डे का महत्व! 1 जुलाई को क्यों मनाते हैं ये खास दिन?
भारत में हर साल 1 जुलाई को राष्ट्रीय डॉक्टर्स दिवस मनाया जाता है, जो महान चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. बिधान चंद्र रॉय की जयंती और पुण्यतिथि के रूप में समर्पित है; यह दिन हमें उन डॉक्टरों के निस्वार्थ सेवा और अथक प्रयासों के प्रति सम्मान और आभार व्यक्त करने का अवसर देता है जो हमारी जान बचाते हैं और समाज के स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
National Doctor’s Day 2025: भारत में हर साल 1 जुलाई को हम नेशनल डॉक्टर्स डे मनाते हैं. ये दिन उन डॉक्टरों को सलाम करने का मौका है, जो अपनी जान की परवाह किए बिना हमारी सेहत का ख्याल रखते हैं. ये खास दिन महान चिकित्सक और पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. बिधान चंद्र रॉय की जयंती और पुण्यतिथि के तौर पर मनाया जाता है.
जब भी हम बीमार पड़ते हैं या कोई मुश्किल आ जाती है, तो सबसे पहले हमें डॉक्टर की याद आती है. वे सिर्फ दवाएं ही नहीं देते, बल्कि हमें फिर से मुस्कुराना सिखाते हैं. महामारी हो या कोई हादसा, डॉक्टर हमेशा आगे रहकर दिन-रात काम करते हैं.
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डॉक्टर बनना बच्चों का खेल नहीं!
एक अच्छा डॉक्टर बनना आसान नहीं होता. इसके लिए सालों की पढ़ाई और कड़ी मेहनत लगती है. चाहे आप सामान्य डॉक्टर हों, सर्जन हों या किसी एक अंग के विशेषज्ञ, सभी को लंबी ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है. और तो और, डॉक्टर हमेशा नई-नई चीजें सीखते रहते हैं ताकि वे मरीजों का बेहतर इलाज कर सकें.
डॉक्टर्स डे क्यों मनाते हैं?
हर साल 1 जुलाई को हम उन सभी डॉक्टरों को दिल से शुक्रिया कहते हैं, जो हमारी जान बचाते हैं और समाज की सेवा करते हैं. ये दिन उनके निस्वार्थ भाव और अथक प्रयासों को सम्मान देने का मौका है.
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डॉक्टर आखिर सफेद कोट ही क्यों पहनते हैं?
जब कोई छात्र मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर लेता है, तो उसे एक खास कार्यक्रम में सफेद कोट पहनाया जाता है. इसे “व्हाइट कोट सेरेमनी” कहते हैं. ये कोट इस बात का प्रतीक होता है कि अब वो छात्र एक जिम्मेदार डॉक्टर बन गया है. इसकी शुरुआत डॉ. अर्नोल्ड पी. गोल्ड ने की थी.
पहले काला, फिर सफेद: कोट का रंग क्यों बदला?
बता दें बहुत पहले डॉक्टर (doctors) सफेद नहीं, बल्कि काले कपड़े पहनते थे. ऐसा इसलिए क्योंकि उस वक्त डॉक्टर के पास जाना एक गंभीर बात मानी जाती थी, और काला रंग गंभीरता का प्रतीक था. उस समय मेडिकल साइंस भी इतना विकसित नहीं था, और लोग डॉक्टर को आखिरी उम्मीद मानते थे.
19वीं सदी के आखिरी और 20वीं सदी की शुरुआत में डॉक्टरों ने सफेद कोट पहनना की शुरूआत की. सफेद रंग को साफ-सफाई और पवित्रता का प्रतीक माना गया. जैसे-जैसे मेडिकल साइंस ने तरक्की की, डॉक्टरों और मरीजों के बीच भरोसा बढ़ा और सफेद कोट सम्मान और चिकित्सा के पेशे की पहचान बन गया.
सफेद कोट पहनने से क्या फर्क पड़ता है?
जब मरीज अस्पताल या क्लिनिक में डॉक्टर को सफेद कोट में देखते हैं, तो उन्हें तुरंत भरोसा हो जाता है कि ये व्यक्ति उनकी मदद करेगा. ये कोट डॉक्टर की पहचान और उसकी जिम्मेदारी का निशान बन चुका है.
क्या सभी डॉक्टर सफेद कोट पहनते हैं?
नहीं, कुछ डॉक्टर सफेद कोट नहीं पहनते. जैसे कि बच्चों के डॉक्टर (pediatrician) या मनोचिकित्सक (Psychologist). ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ मरीज, खासकर बच्चे, सफेद कोट देखकर डर जाते हैं. इसके अलावा, डेनमार्क और इंग्लैंड जैसे कुछ देशों में डॉक्टरों के लिए सफेद कोट पहनना जरूरी नहीं होता.
इस नेशनल डॉक्टर्स डे पर, आइए हम सब मिलकर उन डॉक्टरों को धन्यवाद दें जो हमारे स्वास्थ्य के लिए अथक प्रयास करते हैं!
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