Corruption in medical colleges India:”सफेद कोट पर काला दाग! जानें भारतीय मेडिकल सिस्टम की अंदरूनी कहानी”
जब MBBS की सीट सिर्फ एक कमोडिटी बनकर रह जाए, जब डॉक्टर बनना सेवा नहीं, सौदा बन जाए, और जब फर्जीवाड़े से निकला डॉक्टर ICU में जिम्मेदारी संभाले, तो समाज का इलाज कौन करेगा? यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, यह आने वाली पीढ़ियों के भरोसे की हत्या है।
Corruption in medical colleges India: भारत के मेडिकल शिक्षा सिस्टम का स्याह चेहरा एक बार फिर बेनकाब हुआ है। “ये कहानी एक सीट से शुरू होती है…” और 35 साल बाद भी वही दागदार कहानी नए चेहरों और नए तरीकों से खुद को दोहरा रही है। सवाल उठा है कि क्या हमारे स्वास्थ्य तंत्र में घुसी इस बीमारी का कोई इलाज है?
1990 का दशक: जब मंत्री बेचते थे सीटें!
अब बात करें आज से 35 साल पहले की, 1990 का दशक था। केंद्र में वीपी सिंह की सरकार में स्वास्थ्य राज्य मंत्री रशीद मसूद ने मेडिकल शिक्षा में भ्रष्टाचार की नींव रखी। त्रिपुरा के छात्रों के लिए आरक्षित 26 मेडिकल सीटों को उन्होंने अपने भतीजे, बेटी और करीबियों को दे दिया, जो न तो उस राज्य से थे और न ही मेरिट में थे। 2013 में, कोर्ट ने उन्हें भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी और साजिश का दोषी माना और 4 साल की सजा सुनाई। वे पहले ऐसे सांसद बने जिन्हें सजा के चलते संसद से बाहर होना पड़ा।
उस दौर में भी मेडिकल शिक्षा में भ्रष्टाचार एक गंभीर बीमारी की तरह फैला हुआ था।
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2025: जब ‘रसूख’ से बिक रही हैं सीटें!
अब टाइम मशीन से 35 साल आगे चलते हैं – साल 2025। स्थान है मेरठ और किरदार हैं डॉ. सरोजिनी अग्रवाल, जो मेरठ की सबसे रसूखदार महिला नेताओं में से एक हैं। कभी समाजवादी पार्टी की ताक़त रहीं, फिर बीजेपी में आकर MLC बनीं। खुद एक डॉक्टर होने के साथ-साथ समाजसेवा और शिक्षा के क्षेत्र में उनकी गहरी पैठ है।
लेकिन आज उन्हीं का मेडिकल कॉलेज सुर्खियों में है। CBI ने उनकी सबसे छोटी बेटी, जो खुद एक डॉक्टर हैं, के खिलाफ मेडिकल फर्जीवाड़े के एक बड़े मामले में शिकंजा कसा है। आरोप है कि कॉलेज में नियमों को ताक पर रखा गया, फर्जी फैकल्टी दिखाकर मान्यता ली गई और बड़े पैमाने पर अनियमितताएं की गईं।
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ये टाइमलाइन सब कुछ कहती है
| वर्ष | घटना | नेता |
| 1990 | त्रिपुरा सीट घोटाला | रशीद मसूद (स्वास्थ्य राज्य मंत्री) |
| 2013 | दोषसिद्धि और बर्खास्तगी | रशीद मसूद |
| 2025 | CBI जांच – मेडिकल सीट फर्जीवाड़ा | डॉ. सरोजिनी अग्रवाल की बेटी |
“साल बदले, सरकारें बदलीं, चेहरे बदले… लेकिन सिस्टम नहीं!”
यह कड़वा सच है कि 1990 में भी मेडिकल सीटें सिफारिश से मिलती थीं और 2025 में भी मेडिकल कॉलेजों में सीटें ‘सेटिंग’ से बिक रही हैं। एक समय में यह काम सीधे मंत्री करते थे, अब उनके अपने संस्थानों में उनके परिवार के लोग करते हैं। तब भी छात्रों का हक छीना गया था, आज भी एक मेहनती छात्र किसी रसूखदार की बेटी के नाम के आगे हार जाता है।
“ये सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, ये पीढ़ियों के भरोसे की लाश है!”
जब MBBS की सीट सिर्फ एक कमोडिटी बनकर रह जाए, जब डॉक्टर बनना सेवा नहीं, सौदा बन जाए, और जब फर्जीवाड़े से निकला डॉक्टर ICU में जिम्मेदारी संभाले, तो समाज का इलाज कौन करेगा? यह सिर्फ भ्रष्टाचार नहीं, यह आने वाली पीढ़ियों के भरोसे की हत्या है।
रशीद मसूद और सरोजिनी अग्रवाल – दो किरदार, एक कहानी!
एक ने केंद्र सरकार में रहकर मेडिकल सिस्टम को कलंकित किया, दूसरी ने मेडिकल कॉलेज चलाकर वही काम किया। फर्क सिर्फ इतना है कि रशीद मसूद को सजा मिल चुकी है, और अग्रवाल परिवार के ऊपर केस अभी नई जांच के दायरे में है।
क्या इस बीमारी की कोई दवा है?
जब तक मेडिकल शिक्षा जनता के पैसे और छात्रों की मेहनत से नहीं चलेगी, तब तक डॉक्टर ‘घोटाले का प्रतीक’ बनता रहेगा, ना कि समाज का सच्चा सेवक।
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