Uttarakhand roads: रुद्रप्रयाग के सीमांत गांवों को नहीं मिली सड़क की सौगात, लकड़ी के पुल पर चलने को मजबूर ग्रामीण
रुद्रप्रयाग के ऊखीमठ विकासखंड के सीमांत गांव गौण्डार, तोषी और चिलौण्ड अब तक सड़क सुविधा से वंचित हैं। पुल निर्माण न होने से ग्रामीणों को उफनते गदेरे और लकड़ी के अस्थायी पुल से गुजरना पड़ रहा है। वर्षों से अधूरे पड़े मोटर मार्गों ने जनजीवन को कठिन बना दिया है।
Uttarakhand roads: ऊखीमठ विकासखंड के अंतर्गत आने वाले सीमांत गांव गौण्डार, तोषी और चिलौण्ड आज भी मूलभूत यातायात सुविधाओं से वंचित हैं। वर्षों पहले जिन मोटर मार्गों के निर्माण की शुरुआत की गई थी, वह अब तक अधूरी ही पड़ी हैं। इन गांवों को जोड़ने वाले मार्गों पर काम की रफ्तार बेहद धीमी है। खासकर तोषी गांव का हाल सबसे चिंताजनक है, जहां पुल के अभाव में ग्रामीणों को उफनते गदेरे पर बनी लकड़ी की अस्थायी पुलिया से होकर गुजरना पड़ रहा है।
इस क्षेत्र में यातायात सुविधा की उम्मीदें तब जगी थीं जब राज्य योजना के अंतर्गत अकतोली-गौण्डार मोटर मार्ग को स्वीकृति मिली। लेकिन सात दशकों के बाद भी यह मार्ग अब तक पूरा नहीं हो सका है। परिणामस्वरूप, गौण्डार गांव के ग्रामीणों और मद्महेश्वर धाम की ओर जाने वाले श्रद्धालुओं को आज भी 6 किलोमीटर का सफर पैदल तय करना पड़ता है।
दो वोटर लिस्ट वाले प्रत्याशियों को रोकने के हाईकोर्ट आदेश से चुनाव आयोग असमंजस में
ग्रामीणों का कहना है कि जब मोटर मार्गों के निर्माण की घोषणा हुई थी, तब उन्हें यह उम्मीद जगी थी कि अब उनकी पीठ पर राशन और सामान ढोने की मजबूरी खत्म होगी। लेकिन निर्माण की धीमी गति और लचर कार्य प्रणाली ने इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
शिक्षा और स्वास्थ्य भी प्रभावित
सड़क सुविधा न होने का असर सिर्फ आवाजाही पर नहीं, बल्कि बच्चों की शिक्षा और लोगों की स्वास्थ्य सुविधाओं पर भी पड़ रहा है। आठवीं कक्षा पास करने के बाद बच्चों को राइंका रांसी, कोटमा या त्रियुगीनारायण जैसे दूरदराज स्कूलों में पढ़ाई के लिए जाना होता है। लेकिन यातायात साधनों के अभाव में यह यात्रा बेहद कठिन हो जाती है।
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चुनाव ड्यूटी में भी मुश्किलें
पंचायत चुनाव की तैयारियों के बीच भी इस सड़क संकट ने अधिकारियों को परेशानी में डाल दिया है। हाल ही में एक सेक्टर मजिस्ट्रेट को चुनाव पूर्व निरीक्षण के दौरान लकड़ी के पुल से होकर उफनते गदेरे को पार करना पड़ा। इससे यह साफ हो गया कि सिर्फ ग्रामीण ही नहीं, बल्कि सरकारी व्यवस्था भी इस समस्या से जूझ रही है।
तोषी गांव की सड़क अधूरी, पुल की DPR अटकी
त्रियुगीनारायण-तोषी मोटर मार्ग का प्रथम चरण लगभग 90 प्रतिशत तक पूर्ण हो चुका है। यह 7 किलोमीटर लंबा मार्ग ग्रामीणों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है, लेकिन सोन नदी पर प्रस्तावित पुल की DPR शासन में लंबित है। इस पुल पर लगभग दो करोड़ 25 लाख रुपये की लागत आने वाली है। बारिश के मौसम में यह पुल नहीं होने से तोषी गांव के लिए स्थिति और भी खराब हो जाती है।
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चिलौण्ड मार्ग भी अधूरा
इसी प्रकार जाल तल्ला बैण्ड-चिलौण्ड मोटर मार्ग का निर्माण कार्य भी अधूरा है। कार्य की शुरुआत हुए महीनों हो चुके हैं, लेकिन अब तक पूरा नहीं हो पाया है। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि निर्माण एजेंसियों की उदासीनता और प्रशासन की लापरवाही ने सीमांत गांवों को विकास से कोसों दूर कर दिया है।
विभाग का जवाब
वहीं, संबंधित विभागीय अधिकारियों का कहना है कि अकतोली-गौण्डार मोटर मार्ग के निर्माण में कटिंग के दौरान कठोर चट्टानें आने से कार्य में बाधा उत्पन्न हो रही है। अधिकारियों ने यह भी बताया कि त्रियुगीनारायण-तोषी मार्ग का शेष निर्माण कार्य मानसून समाप्त होने के बाद पूर्ण कर लिया जाएगा।
सवाल यह है कि जब तक ये सड़कों का निर्माण पूरा नहीं होता, तब तक ग्रामीणों की आवाजाही, शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन उठाएगा? जब शासन स्तर पर योजनाएं बनती हैं तो क्या उनका अमल समय पर होना जरूरी नहीं है? इस क्षेत्र के लोग आज भी सड़क को लेकर उतने ही बेसब्र हैं, जितने आज़ादी के शुरुआती वर्षों में थे।
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