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चरित्रहीन राजनीति में कोई किसी का स्थाई दुश्मन नहीं ,अब कई दल एनडीए में जा सकते हैं!

politics news: नए संसद भवन का उद्घाटन हो गया। बड़ा ही भव्य आयोजन किया गया। इस समारोह को पूरी दुनिया ने भी देखा। प्रचार की सभी व्यवस्थाएं की गई थी। लेकिन इस समारोह से राष्ट्रपति ,उपराष्ट्रपति और विपक्षी दल दूर रहे। अगर ये सब एक साथ खड़े होते तो उद्घाटन का इतिहास और ही कुछ हो होता। लेकिन नियति को भला कौन रोक सकता था। आगे भी क्या होगा इसे कौन जानता है? लेकिन रविवार का इतिहास तो दर्ज हो ही गया। आज से कुछ वर्षों के बाद जब अगली पीढ़ी इस कहानी को जानेगी और पड़ेगी तब उसे लोकतंत्र की असली कहानी का भी पता चलेगा। तब अगली पढ़ी संभव है कि हम पर हंसे और लोकतंत्र पर भी सवाल उठाये। संसद के भीतर और बहार के दृश्यों को देखने बाद लगा मानो यह सब बीजेपी का कोई बड़ा आयोजन हो रहा है।


अब राजनीति की बात। विपक्ष ने एक जायज मुद्दे को उठाकर समारोह का बहिष्कार किया लेकिन उसके इस बहिष्कार में राजनीति भी शामिल है। विपक्ष इस विरोध के जरिये विपक्षी एकता की मजबूती का तानाबाना बन रहा है। इसके क्या परिणाम होने यह भी देखने की बात होगी। इधर उद्घाटन समारोह में जिस तरह कुछ दलों को शामिल किया गया उससे बीजेपी की अगली राजनीति के भी संकेत मिल रहे हैं। बीजेपी भी विपक्ष की राजनीति को समझ रही है तो विपक्ष भी बीजेपी की राजनीति को पढ़ रहा है। उद्घाटन समारोह में जो कुछ भी दिखा ,बड़ा ही विचित्र था। जब प्रधानमंत्री मोदी संसद में अपना पहला सम्बोधन दे रहे थे उस दौरान संसद भवन में अगली कतार में कई ऐसे चेहरे देखे गए जिनके बारे कहा जा रहा है कि वे अगले लोकसभा चुनाव में एनडीए में जा सकते हैं।


बीजेपी भी अगले चुनाव को लेकर बेचैन है। कर्नाटक चुनाव की हार के बाद तो बीजेपी काफी बेचैन है और उग्र भी। उसे लगने लगा है कि अगर सब कुछ दुरुस्त नहीं किया गया तो सत्ता चली जाएगी और सत्ता गई तो अगली राजनीति भी मुश्किल हो जाएगी। यह वजह है कि सरकार भी अपनी तैयारी भी कर रही है और कई नेताओं को साथ लाइने का जुगत भिड़ा रहा है। जानकार कह रहे हैं कि जिन गैर बीजेपी नेताओं को संसद में अगली कतार में बैठाया गया था ,बीजेपी की रणनीति का हिस्सा थी। बीजेपी भी इसे दिखाने के लिए ऐसा सब किया था। जो लोग अगली कतार में बैठे थे उनमे देवगौड़ा थे ,जगन रेड्डी थे और नवीन पटनायक भी थे। इसके साथ ही लोजपा ,बसपा और तेदेपा के नेता भी शामिल थे।


कहा जा रहा है कि मायावती पर जांच एजैंसियों की पकड़ है और यही वजह है कि वह बीजेपी के खिलाफ नहीं जा सकती। ऐसे में बसपा और बीजेपी का साथ हो तो इसमें कोई परेशानी नहीं होगी। इससे बीजेपी को तो लाभ होगा लेकिन बसपा को क्या मिलेगा अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। लेकिन बसपा अभी अकेला चुनाव लड़ने की बात कर रही है लेकिन वह जानती है कि अकेले चुनाव लड़कर उसे कुछ भी हाथ नहीं लगने वाला। ऐसे में इस बात की सम्भावना अब बढ़ गई है कि मायावती एनडीए का हिस्सा हो सकती है। उदार चिराग पासवान की भी यही कहानी है। वे भी एनडीए का हिस्सा होंगे और बिहार में बीजेपी के साथ मिलाकर विपक्ष को चुनौती देंगे।

तेदेपा और जगन रेड्डी की गजब कहानी है। आंध्र की राजनीति में मुख्य लड़ाई जगन रेड्डी और चंद्रबाबू नायडू की है लेकिन खेल देखिये दोनों नेता बीजेपी के साथ रहना चाहते हैं। संभव है कि दोनों ही दल एनडीए के साथ जाए। लेकिन इसका लाभ कांग्रेस को भी मिल सकता है। और कर्नाटक में जेडीएस की राजनीति आगे क्या होगी कहना मुश्किल है। अभी वह बीजेपी के खिलाफ ही मैदान में उतरी थी और फिर बीजेपी के साथ मैदान में जाएगी इसका असर कर्नाटक की जनता पर भी पड़ेगा। लेकिन तर्क हो सकता है कि लोकसभा और विधान सभा की राजनीति अलग अलग होती है।


उधर विपक्ष के साथ 20 दल हैं। कई राज्यों में इनकी सरकार भी है और राज्य की राजनीति में मजबूत पकड़ भी। लेकिन विपक्षी एकता कितनी मजबूत होती है और फिर वोट ट्रांसफर एक दूर को कितना हो पाता है इसे देखने की जरूत होगी। अभी पटना में अगले महीने विपक्ष की बैठक होने जा रही है। जिसमे एकता की रणनीति बनेगी और सीट शेयरिंग कैसे की जाए इस भी मंथन होगा। अगर यह सब ठीक से हो गया तो अगला लोकसभा चुनाव काफी मनोरंजक होगा।

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Ashok Kumar

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