नई दिल्ली: समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव इन दिनों अपनों की ही आलोचनाओं के शिकार हो रहे हैं। बेशक आरोप-प्रत्यारोप लगना-लगाना, आलोचनाएं होना राजनीति का हिस्सा है। राजनीतिक विरोधियों का एक दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप लगाना, आलोचना करना आम बात है, लेकिन जब किसी पार्टी के नेता और समर्थक ही अपनी पार्टी के अध्यक्ष पर सवाल उठाने लगे, तो ये फिर मामला गंभीर हो जाता है।
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार बनाने के लिए विधान सभा चुनाव के दौरान रालोद, भारतीय सुहेलदेव समाज पार्टी, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी से समझौता करने के साथ ही भाजपा के तत्कालीन तीन मंत्रियों सहित दर्जन भर भाजपा विधायकों को अपने साथ लिया था। इन सबको यही उम्मीद थी, कि सपा सत्ता में आ जाएगी, लेकिन भाजपा की सत्ता में दोबारा शानदार वापसी से अखिलेश यादव और सहयोगी दलों के नेता काफी निराश हैं।
आज़म समर्थकों के बगावती तेवर
समाजवादी पार्टी ने विधान सभा चुनावों में मुस्लिम वर्ग और यादव मतदाताओं के बल पर ही 111 सीटें हासिल की थीं। सपा के बड़े मुस्लिम चेहरे आज़म खान ने जेल में रहते हुए भी रामपुर से अपनी सीट जीती थी। आज़म के सर्मथकों को उम्मीद थी कि अखिलेश यादव आज़म खान को पार्टी में उनके बड़े कद और वरिष्ठता को देखते हुए प्रतिपक्ष नेता बनाकर सम्मान देंगे, लेकिन अखिलेश ने यह पद खुद ही ले लिया। यही वजह है कि आज़म समर्थकों के अखिलेश यादव के खिलाफ बगावती तेवर देखने के मिल रहे हैं।
मुस्लिमों का सपा से छिटकना अखिलेश के लिए होगा बड़ा झटका
चाचा शिवपाल भी अखिलेश से ख़ासे खफ़ा
सपा मुखिया अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल भी सपा के विधायक हैं। शिवपाल भी यही चाहते थे कि पार्टी उन्हें प्रतिपक्ष नेता बना देती तो पार्टी में उनका कद बढ़ जाता। अखिलेश यादव का उन्हें कोई महत्व देना तो दूर, वे शिवपाल के सपा विधायक तक नहीं मान रहें। ऐसे में शिवपाल यादव न घर के रहे, न घाट के। अब वे खुद को प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर भी जनता के बीच नहीं जा सकते। शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के पदाधिकारी अब पहले की तरह उन्हें सपोर्ट नहीं कर रहे, क्योंकि विस चुनाव में शिवपाल उनके लिए कुछ नहीं कर सके थे।
अखिलेश के लिए ‘वाईएम’ फैक्टर रोकना बड़ी चुनौती
आज़म समर्थक ही नहीं, चाचा शिवपाल के साथ-साथ मुस्लिम वर्ग का एक बड़ा हिस्सा भी अखिलेश यादव से नाराज हैं। शिवपाल के भाजपा में जाने की अटकलें काफी से हैं वे कभी भी सपा से अपना रिश्ता तोड़ सकते हैं। उधर ये चर्चा भी जोरों पर है कि आज़म खान जैसे ही जेल से बाहर आयेंगे, वे अपनी अलग पार्टी बनाने की घोषणा करके अखिलेश यादव को बड़ा झटका दे सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो फिर आजम के समर्थक मुस्लिम और शिवपाल के समर्थक यादव समाजवादी पार्टी को अलविदा कर सकते हैं। इस स्थिति में अखिलेश यादव के लिए यादव-मुस्लिम यानी वाईएम फैक्टर को सपा से जोड़े रखना बड़ी चुनौती होगी। यदि सपा से यादव-मुस्लिम मतदाताओं को मोह भंग हुआ तो आगामी स्थानीय निकाय चुनावों में समाजवादी पार्टी को भारी क़ीमत चुकानी होगी ।